Sunflower Farming: सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है. इसका तेल दिल के मरीजों के लिए अच्छा माना जाता है. यह एक ऐसी फसल है जो साल भर उगायी जा सकती है. उत्तर भारत में इसे बसंत ऋतु में फरवरी से जून के मध्य उगाया जाता है. इसके बीजों में 40-50 प्रतिषत तेल पाया जाता है. इसके तेल में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है. इसका तना जलाने के काम आता है. इसकी खली पषुओं एवं मुर्गियों का अच्छा भोजन है. ऐसे में किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. आइए आपको इसकी खेती के बारे में विस्तार से बताते हैं.
मिट्टी
सूरजमुखी की खेती सभी प्रकार की मृदाओं (मिट्टी) में की जा सकती है. किन्तु उचित जल निकास व उदासीन अभिक्रिया वाली दोमट से भारी मृदाएं अच्छी समझी जाती है. मृदा की जलधारण क्षमता एवं कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अच्छी होनी चाहिए. सामान्यः खरीफ में असिंचित एवं रबी-जायद में इसे सिंचित क्षेत्रों में उगाया जाता है.
प्रजातियां
सूरजमुखी की संकर एवं सामान्य प्रजातियां आजकल बाजार में उपलब्ध है, किन्तु उनकी उपज क्षमता एवं तेल की मात्रा में काफी भिन्नता पाई जाती है. अतः अधिक उत्पादन एवं तेल की मात्रा वाली प्रजातियां सारणी 1 में दी गई है.
बीज एवं बीज शोधन
सूरजमुखी की खेती के लिए प्रति हैक्टर 5-6 कि.ग्रा. संकर एवं 7-8 कि.ग्रा. सामान्य प्रजातियों के बीज का जरूरत होती है. बुआई से पहले बीज को 12 घंटे पानी में भिगोकर छाया में 3-4 घंटे रखें. पानी में 2 प्रतिशत जिंक सल्फेट भी मिलाएं. ऐसा करने से जमाव अच्छा होता है तथा सूखे को सहन की क्षमता भी बढ़ जाती है. इसके अलावा पौधे को विभिन्न बीमारियों से बचाया जा सकता है.
बुवाई का समय
सूरजमुखी की बंसतकालीन फसल को बोने का उचित समय फरवरी का प्रथम से द्वितीय पखवाड़ा है, लेकिन इसकी बुआई मार्च के प्रथम से द्वितीय पखवाड़ा तक की जा सकती है. देर से बुआई करने पर फसल देर तक पकती है और मानसून की बारिश शुरू हो जाती है, जिससे फसल कटाने एवं मुड़ाई में समस्या हो सकती है. इसीलिए फसल को फरवरी के अतं तक अवष्य बो देना चाहिए. बुआई सदैव लाइनों में करें सामान्य एवं बौनी प्रजातियों को 45 से.मी. तथा संकर और लंबी प्रजातियों को 60 सं.मी. दूरी पर बनी लाइनों में बोयें पौधे से पौधे की दूरी 20-30 से.मी. रखें. बीज की गहराई 3-4 से.मी. रखें. बुआई के 15-20 दिन बाद विरलीकरण कर पौधे से पौधे की दूरी 20-30 सं.मी कर देनी चाहिए.
उर्वरक तथा खाद
सूरजमुखी की सफल खेती करने के लिए 80-120 किग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 40 कि.गा. पोटाष प्रति हैक्टर की आवष्यकता होती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोते समय तथा शेष बची हुई मात्रा को दो बराबर भागों में बांट कर एक भाग 20-25 दिन बाद तथा दूसरा भाग 35–40 दिन बाद या पहली एवं दूसरी सिंचाई के बाद खड़ी फसल में छिड़क दें. फॉस्फोरस एवं पोटाष की पूरी मात्रा बुआई के समय दें. 200 कि.ग्रा./ हैक्टर जिप्सम का भी प्रयोग बुआई के समय अवश्य करें अथवा फॉस्फोरस को सिंगल सुपर फॉस्फेट के रूप में दें. जिससे पौधो को सल्फर तत्व की उपलब्धता बढ़ जाती है और दानों की चमक बढ़ जाती है. सल्फर तेल की मात्रा भी बढ़ाता है.
सिचांई
सूरजमुखी के खेती के दौरान सिचांई बेहद जरूरी है. ऐसे में पहली सिंचाई, बोने के 20-25 दिन बाद करें. उसके बाद सामान्यतः 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें. वैसे 4-5 सिंचाईयां वानस्पतिक कली, फूल एवं दाने पड़ते समय खेत में नमी की कमी होने पर करनी आवष्यक है.
खरपतवारों का नियंत्रण
बुवाई के 15-20 दिन पहली निराई-गुड़ाई करें तथा दूसरी गुड़ाई 30-35 दिन बाद. इस दौरान पौधों पर मिटटी भी चढा दें, ताकि पौधा तेज हवा के कारण गिर नहीं. इसके अलावा, पेन्डीमेथलीन की 1 कि.ग्रा. एक्टिव मात्रा 600-800 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 2-3 दिन बाद इसका छिड़काव करें. ऐसा करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं.
कटाई एवं मुड़ाई
जब मुंडक का पिछला भाग भूरे सफेद रंग का होने लगे तभी फसल के मुण्डकों को काटकर 5-6 दिन तेज धूप में सुखाकर डंडे से पीटकर दाने निकाल लिए जाते हैं. आजकल बाजार में सूरजमुखी गहाई यंत्र या थ्रेसर उपलब्ध है, जिनकी सहायता से सूरजमुखी की मड़ाई की जा सकती है.
उपज
सूरजमुखी की खेती करने पर लगभग 22-28 क्विंटल बीज एवं 800-100 क्विंटल डंठल प्रति हैक्टर पैदा किए जा सकते हैं.
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