ग्रीष्मकालीन सब्जी भारत के विभिन्न भागों जैसे उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, बिहार एंव छत्तीसगढ में प्रमुख रूप से उगाई जाती है. ग्रीष्मकालीन सब्जियाँ पोषक तत्व के रूप में तथा आर्थिक रूप से लाभकारी फसल है. व्यापक रूप से कीटनाशकों का प्रयोग करने से धीरे-धीरे कीटो में प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न होने लगी और वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा. किसान ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कीटनाशकों के असर को खत्म करने के लिए समय नहीं देते और जल्द ही फसल को बाजार में बिक्री कर देते हैं जो कभी-कभी हानिकारक सिद्ध होती हैं. इन सभी घटकों से बचने के लिए समेकित कीट प्रबंधन की उपयोगिता बढ़ जाती है.
कीटनाशकों के उपयोग सम्बंधी समस्याएं
इन कीटों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए बैंगन पर कीटनाशकों की एक बड़ी मात्रा में प्रयोग किया जाता है –
जो सब्जियां कम अंतराल पर तोड़ी जाती हैं, उनमें टाले न जा सकने वाले कीटनाशक के अवशेष उच्च स्तर पर बाकी रह जाते हैं. जो उपभोक्ताओं के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं .
रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से प्रतिरोध, पुनरूत्थान, पर्यावरण प्रदूषण और उपयोगी पशुवर्ग और वनस्पति की तबाही की समस्या जनित हुई है .
कीटनाशकों के लगातार प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम होती जा रही है.
समेकित कीट प्रबन्धन :
यह कीट प्रबंधन की वह विधि है जिसमें की संबंधित पर्यावरण तथा विभिन्न कीट प्रजातियों के जीवन चक्र को संज्ञान में रखते हुए सभी उपयुक्त तकनीकों एंव उपायों का समन्वित उपयोग किया जाता है ताकि हानिकारक कीटों का स्तर आर्थिक नुकसान के स्तर से नीचे बना रहे .
समेकित कीट प्रबंधन का लक्ष्य
- न्यूनतम लागत के साथ-साथ अधिकतम फसल उत्पादन .
- मिटटी, पानी व वायु में कीटों, रोगों एंव खरपतवारों से 30-50% तक नुकसान होता है.
ग्रीष्मकालीन सब्जियों में लगने वाले प्रमुख कीट निम्नलिखित हैं –
सफेद मक्खी
यह कीट मुख्य रूप से टमाटर, लौकी, कद्दू खीरा, तरबूज, करेला इत्यादि को हानि पहुंचाते हैं. सफ़ेद मक्खी का प्रकोप पत्तियों की निचली सतह पर शिराओं के बीच में होता है और यह पत्तियों से रस चूसती हैं. इस कीट का प्रकोप शुष्क मौसम के दौरान अधिक होता है और वर्षा के साथ इसकी गतिविधियाँ कम हो जाती हैं. इसके प्रभाव से पत्तियां पीली पड़कर सिकुड़कर नीचे की ओर मुड़ने लगती हैं. यह कीट विषाणु जनित रोगों के वाहक का काम करते हैं।
लीफ माइनर:
यह कीट सभी ग्रीष्मकालीन सब्जियों को हानि पहुंचाते हैं. यह पत्तियों के उपरी भाग पर टेढ़े –मेढ़े सफ़ेद रंग की रेखा बना देते हैं. इसका मैगट पत्तियों को अधिक नुकसान पहुँचाता हैं.
लीफ माइनर- पत्ती भेदक सुंडी
यह कीट प्रमुख रूप से लौकी, खीरा, तरबूज, टिंडा, बैंगन आदि की फसल को नुकसान पहुँचाता है. इस कीट की सुंडी व कैटरपिलर पौध की पत्तियों को नुकसान करती हैं. अंडे निकलने के बाद सुंडी रेशमी धागे के साथ पत्तियों को रोल करती हैं और शिराओं के बीच से पत्ती को खाती हैं. इस कीट की सुंडी फूल एवं फलों को भी नुकसान पहुँचाती हैं, प्रभावित बाद में सड़ने लगते हैं.
कद्दू का लाल कीड़ा
यह कीट प्रमुख रूप से कददूवर्गीय फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं. इस कीट का व्यस्क एवं ग्रब दोनों फसल को हानि पहुंचाते हैं. व्यस्क पत्तियों एवं फूलों को नुकसान पहुंचाता है, जबकि ग्रब पौधे की जड़ों को खाता है.
कद्दू का लाल कीड़ा- तना और फल छेदक
यह कीट प्रमुख रूप से टमाटर, भिंडी, बैंगन आदि की फसल को नुकसान पहुँचाता है. आरम्भिक चरणों में लार्वा तने में छेद कर देते हैं जिससे विकास का बिंदु मर जाता है| मुरझाये झुके हुए तने का दिखाई देना इसका प्रमुख लक्षण है| बाद में लार्वा फल में छेद कर देते हैं जिससे वह खपत के लिए अयोग्य हो जाते हैं|
तना और फल छेदक- लाल मकड़ी :
यह कीट प्रमुख रूप से कद्दूवर्गीय फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं. लार्वा, युवा और वयस्क मुख्य रूप से पत्तियों की निचली सतह पर हजारों की संख्या में चिपककर रस चूसते हैं| पत्तियों में मकड़ी के जाल जैसा दिखाई देता है और पत्तियां पीली हो जाती हैं|
लाल मक लाल मकड़ी-फल मक्खी
यह सभी ग्रीष्मकालीन फसल को हानि पहुंचाता है. इस फल मक्खी के व्यस्क के पंख भूरे रंग के होते हैं. इस कीट का मैगट ही क्षति पहुंचाता है. इस कीट का प्रकोप फरवरी से लेकर नवम्बर माह तक होता है. ग्रसित फल के छेद से लसदार हल्के भेरे रंग का तरल निकलता है और फलों में सड़न होने लगती है.
हड्डा बीटल :
यह कीट मुख्य रूप से बैंगन, टमाटर, लौकी, करेला, तरोई इत्यादि को हानि पहुंचाता है. हड्डा बीटल के व्यस्क एवं ग्रब दोनों पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं, यह एक विशेष तरीके से पत्तियों एंव फलों को कुरेंदता है और धीरे-धीरे पत्तियों एवं फलों को सुखा देता है.
हड्डा बीटल-चेपा :
यह कीट प्रमुख रूप से टमाटर, भिन्डी एवं सभी कद्दूवर्गीय फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. ये छोटे आकर के काले एवं हरे रंग के होते हैं तथा कोमल पत्तियों, पुष्प कलिकाओं का रस चूसते हैं.
चेपा
ग्रीष्मकालीन सब्जियों में समेकित कीट प्रबंधन हेतु प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं
कीट आकर्षण ट्रैप :
कीट आकर्षण ट्रैप फल मक्खी के प्रबंधन में प्रभावशाली हैं. यह नर कीट को आकर्षित कर उसे मार देता है. खेत में प्रकाश बल्व लगाकर उसके नीचे किसी बर्तन में चिपकने वाला शीरा, कीटनाशक का घोल अथवा गुड़ घोल आदि भरकर रख देने से फल मक्खी के प्रबंधन में उपयुक्त होता है.
जैविक नियंत्रण
कीटों का प्रबंधन जैविक तरीकों से करना समेकित कीट प्रबंधन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है. यह किसी भी प्रतिकूल पर्यावरण प्रभाव से पैदा नहीं होता है और किसानों को कोई अतिरिक्त लागत नहीं आती है. ग्रीष्मकालीन सब्जी फसल में कीट प्रतिरोधी किस्में निम्नलिखित हैं –
बैंगन– पूसा पर्पल लॉन्ग, मंजरी गोटा, अर्का महिमा
मिर्च – एन. पी. 46 ए., पंजाब लाल, कल्याणपुर रेड
करेला – आई. एच . आर.- 81, आई. एच . आर.- 213
कद्दू- आई.एच.आर.-35, आई. एच . आर.- 48, आई. एच . आर.- 83
तरोई – एन. आर.-2, एन. आर. -5, एन. आर. -7
टिंडा – अर्का टिंडा
रासायनिक नियंत्रण :
तने, पत्तियों एंव फूल भेदक कीटों के लिए रासायनिक कीटनाशक जैसे कि डायमीथियोएट 30 इ.सी. @ 1.5-2.0 मिली./ली. अथवा एडोक्सिकार्ब 14.5 इ.सी. @ 0.5-0.7 मिली./ली. मात्रा के अनुसार प्रयोग प्रभावी पाया गया है. जबकि तने, पत्तियों एंव फूल चूसक कीटों के लिए रासायनिक कीटनाशक के रूप में एसिफेट 75 एस. पी. @ 1.5-2.0 मिली./ली. अथवा इमिडाक्लोराप्रिड 17.8 एस.एल. @ 0.5 -0.7 मिली./ली. की दर से प्रयोग उपयोगी साबित होता है.
प्रमुख सुझाव :
आवश्यकतानुसार ही कीटनाशकों का प्रयोग करें.
रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करते समय चेहरे पर मास्क पहनकर करें तथा छिड़काव के तु्रन्त बाद साफ पानी से हाथ एंव चेहरे की धुलाई भली – भांति करें.
एक ही कीटनाशक लगातार न दोहराये.
कीटनाशकों के प्रयोग के बाद 3-4 दिन तक फल न तोड़ें.
लेखक:
- निधि त्यागी1* एवं प्रवीण कुमार मौर्य2
- पी. एच. डी. स्कॉलर ¼सब्जी विज्ञान विभाग½
- 1* डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश
- 2* बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, मोहनपुर, नादिया, पश्चिम बंगाल
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