निरंतर घटते जल संसाधनों और लगातार बढ़ती खाद्यान्न मांग को ध्यान में रखते हुए जल संसाधनों का उपयोग उच्च दक्षता के साथ करना अति आवश्यक हो गया है । हमारे देश में किसान मुख्यतः पारंपरिक/ सतही सिंचाई विधि ही अपनाते हैं। इसमें पानी बहुत अधिक लगता है, जिसकी वजह से जल उपयोग दक्षता बहुत कम हो जाती है। खेती में पानी की बचत एवं सिंचाई जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिए क्यारी एवं नाली विधि, सूक्ष्म सिंचाई जैसे पफव्वारा एवं ड्रिप बूंद-बूंद सिंचाई विधियां आदि प्रचलित हैं।
उप-सतही बूंद-बूंद सिंचाई / भूमिगत बूंद-बूंद सिंचाई में पानी को उचित मात्रा में फसल की मांग के अनुसार उपलब्ध करवाने का सबसे प्रभावी तरीका है। सतही सिंचाई की जल उपयोग दक्षता केवल 50–60 प्रतिशत होती है। इसके विपरीत, उपसतही बूंद बूंद सिंचाई में सतह प्रवाह और अन्य प्रकार के नुकसान नहीं होने के कारण जल उपयोग दक्षता 80-90 प्रतिशत तक रहती है। विश्व स्तर पर केवल 4 प्रतिशत किसान सूक्ष्म / ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं।
उप–सतही बूंद-बूंद सिंचाई विधि
इस सिंचाई विधि में पाइप लाइनों को तय गहराई पर ट्रेक्टर चालित ड्रिप इंस्टॉलर उपकरण की सहायता से टुँच/नालियां बनाकर दबा दिया जाता है। सिंचाई की पाइप को भूमि की सतह के नीचे मिटटी, और फसल के प्रकार, जलवायु और प्रबंधन प्रक्रिया के आधार पर 6 से 8 इंच की गहराई में दबाया जाता है। पाइप को भूमिगत रखने से फसल को जल की उचित मात्रा और पोषक तत्वों की जरूरत सीधे फसल जड़ क्षेत्रा में स्पून फीड की तरह मिलती रहती है। ड्रिप पाइप सीधी धूप न लगने के कारण लंबे समय जैसे 15-20 वर्ष तक चलता रहता है। उप सतही बूंद-बूंद सिंचाई के घटक इस सिंचाई प्रणाली का डिजाइन विशेष रूप से हाइड्रोलिक विशेषताओं के संबंध में सतह ड्रिप सिंचाई के समान है। उप–सतही बूंद-बूंद सिंचाई सिस्टम के लिए दबाव विनियमन, प्रवाह माप, फिल्टर और फ्रलशिंग पर विशेष ध्यान दिया जाता है। एक सम्पूर्ण ड्रिप सिस्टम कई घटकों से मिलकर बनता है।
इनमें इलेक्ट्रिक पम्प, मुख्य नियंत्रक यूनिट, फिल्टर यूनिट, फर्टिगेशन यूनिट, प्रेशर गेज, वाटर मीटर, मुख्य एवं उप मुख्य पाइप पंक्ति, हाइड्रेट, लेटरल लाइनें, ड्रिपर, फ़्लैश वाल्व इत्यादि मुख्य है। लेटरल्स की पंक्ति से पंक्ति की दूरी फसल के प्रकार पर निर्भर करती है। मक्का में यह दूरी 60-65 तथा गेहूं एवं घान में 45-50 सें.मी. रखते हैं। इनमें निश्चित दूरी 30 या 40 सें. मी. पर ड्रिप एमिटर लगे होते हैं। ये निश्चित मात्रा में पानी फसल / पौधों की जड़ों के आसपास छोड़ते रहते हैं। पानी कम दूर 1.25-2.50 लीटर प्रति घंटा दर पर लगभग एक बार वायुमंडलीय दबाव पर ड्रिपर में प्रवेश करता है और शून्य दबाव पर निरंतर बूंदों के रूप में बाहर गिरता रहता है। ड्रिप पाइप पंक्तियों में मिट्टी न रुक पाए इसके लिए मेन पाइप लाइनों की दूसरी तरफ सब पाइप लाइन में फ्रलश वाल्व लगाये जाते हैं। इससे समय-समय पर पाइप पंक्तियों को फ्रलश कर दिया जाता है। इससे पाइप लाइन में जमी मिट्टी एवं गंदगी बाहर निकल जाती है। उप–सतही बूंद बूंद सिंचाई प्रणाली से फसल का बोया गया क्षेत्र 3-5 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। इस प्रणाली में सतही ड्रिप लाइन सिंचाई विधि की अपेक्षा कम टूट फूट व बार-बार हटाने की आवश्यकता नहीं होती है। यह विधि वाष्पीकरण और सतह सिंचाई के अन्य नकारात्मक प्रभावों से पानी के नुकसान को रोकती है।
सब-सरफेस ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लाभ
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सब सरफेस ड्रिप सिंचाई प्रणाली से फसल का शुद्ध बोया गया क्षेत्र 6-8 प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है
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इस प्रणाली में सतह डिपलाइन सिंचाई विधि की अपेक्षा कम टूट-फूट बार-बार हटाने की आवश्यकता नहीं होती है। सतही सिंचाई की तुलना में 40-50 प्रतिशत पानी की बचत होती है। पारंपरिक सिंचाई की तुलना में 40-50 प्रतिशत पानी की बचत, 25-30 प्रतिशत नाइट्रोजन की बचत 15-20 प्रतिशत अधिक उपज के साथ ही साथ 25 से 30 प्रतिशत अधिक आय एवं मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।
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मक्का, गेहूं एवं मूंग में 40 प्रतिशत खरपतवार की संख्याओं एवं खरपतवार नाशको में कमी की जा सकती है।
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उर्वरकों के सटीक उपयोग के कारण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को भी कम किया जा सकता है।
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वाष्पीकरण और सतह सिंचाई के अन्य नकारात्मक प्रभावों से पानी के नुकसान को रोकती है।
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लेखक-
विशाल अहलावत, ज्योति शर्मा
मृदा विज्ञान विभाग
आर एस दादरवाल
शस्य विज्ञान विभाग
दीपिका ढांडा
पर्यावरण विज्ञान विभाग
चौ० चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय हिसार हरियाणा
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