लाखों लोग अपनी आजीविका बनाए रखने के लिए चावल पर निर्भर हैं और इसी कारण चावल को जीवन कहा जाता है. वर्तमान समय में पानी की स्थिति हमें इसकी खेती करने से डरा रही है. चावल अनाज के बीच एक अर्ध-जलीय फसल है. एक अनुमान के मुताबिक 1 किलो चावल के उत्पादन के लिए लगभग 4000-5000 लीटर पानी की खपत होती है.
पानी बचाने के लिए चावल की खेती की अलग तरीके से उपज को विकसित करने की आवश्यकता है. इसलिए एरोबिक चावल प्रणाली चावल उगाने का एक नया तरीका है, जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है. इसे मिट्टी में उर्ध्व फसल की तरह उगाया जाता है.
धान की खेती की एक ऐसी विधि है, जिसको एरोबिक विधि कहा जाता है. जिसमें न तो खेत में पानी भरना पड़ता है और न ही रोपाई करनी पड़ती है. इस विधि से बुवाई करने के लिए बीज को एक लाइन में बोया जाता है. बता दें कि इस विधि में चावल की फसल को गैर-पोखर खेत और गैर-बाढ़ वाले खेत की स्थिति में सीधे बोने (सूखे या पानी से लथपथ बीज) द्वारा स्थापित किया जाता है.
इस प्रकार की खेती को एरोबिक कहा जाता है, क्योंकि इसकी मिट्टी में बढ़ते मौसम के दौरान ऑक्सीजन पायी जाती है. किसानों के बीज धान की एरोबिक विधि भी बहुत प्रचलित होती नजर आ रही है, क्योंकि इस विधि से बुवाई करने में खेत भी तैयार नहीं करना पडता है और साथ ही पलेवा भी नहीं करना होता है. बता दें कि इसमें दूसरी विधियों के मुकाबले 40 से 50 प्रतिशत तक कम पानी की खपत होती है. क्योंकि दूसरी विधि में पहले तो नर्सरी में ज्यादा पानी लगाना पड़ता है और उसके बाद जब नर्सरी तैयार हो जाती है, तो रोपाई के समय भी पानी भरना पड़ता है, जबकि इस विधि में कम पानी की लागत है.
एरोबिक चावल उगाने के लिए उपयुक्त क्षेत्रों में शामिल हैं (Areas suitable for growing aerobic rice include)
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अपलैंड क्षेत्र और मध्य-अपलैंड जहां भूमि समतल है.
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गहरी मिट्टी, जो वर्षा की कमी के बीच फसल को पानी की आपूर्ति कर सकती है
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लहरदार क्षेत्रों में ऊपरी ढलान या छतें होती है
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एरोबिक चावल के लिए 50 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की सिफारिश की जाती है. बीजों को पंक्तियों के बीच 20 सेमी और पंक्तियों के भीतर 15 सेमी 3 से 5 सेमी गहराई के साथ बोया जाता है.
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एरोबिक विधि से खेती करने के लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा कि इस विधि से बुवाई के लिए सूखा बर्दाश्त करने वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए. इस विधि से बुवाई करने से पहले गर्मियों में गेहूं की कटाई के बाद जुताई कर देनी चाहिए, ताकि इससे बारिश का पानी खेत को अच्छी तरह से मिल सके.
इस प्रणाली के मूल सिद्धांत (Basic principles of this system)
एरोबिक चावल की खेती प्रणाली के लिए निर्धारित सिद्धांत हैं जिनका पालन करने की आवश्यकता है जैसे-
इस प्रकार की खेती के लिए उपचारित बीज की सीधी बिजाई विधि का प्रयोग किया जाता है.
इसे वर्षा सिंचित या पूरी तरह से सिंचित या पूरक सिंचित किया जा सकता है.
पानी को केवल पर्याप्त मात्रा के स्तर पर बनाए रखने की आवश्यकता है.
सफल खेती के लिए प्रभावी और समय पर खरपतवार नियंत्रण अनिवार्य है.
पंक्ति में 20 से 25 सेमी की दूरी का पालन करना चाहिए.
एरोबिक चावल की खेती के लाभ (Benefits of aerobic rice cultivation)
एरोबिक प्रणाली से चावल की खेती करने पर आवश्यक पानी की मात्रा तुलनात्मक रूप से कम होती है. एरोबिक चावल की खेती प्रणाली के कुछ अन्य लाभ नीचे दिए गए हैं-
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यह लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल है.
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खेती की लागत भी कम है और श्रम लागत भी कम है.
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बीज की बुवाई साधी की जाती है.
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वर्षा जल का कुशल उपयोग और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार
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इस प्रकार की खेती से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है.
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40-50 प्रतिशत तक पानी की बचत.
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उपलब्ध जल से अधिक क्षेत्र को सिंचित किया जा सकता है.
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श्रम की आवश्यकता कम होती है.
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