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सिक्किम चाय को मिलेगा जीआई टैग

भारतीय चाय बोर्ड सिक्किम चाय के लिए जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) देने का विचार कर रहा है. बोर्ड का मानना है कि इस कदम से एक ओर इस चाय को एक नए ब्रांड के रूप में पहचान मिलेगी और निर्यात बाजार में बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर इससे दार्जिलिंग ब्रांड के संरक्षण में भी मदद मिलेगी. चाय बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन 'अरूण कुमार रे' के अनुसार वह चाय उत्पादन करने वाले सभी क्षेत्रों के लिए जीआई टैग चाहते हैं.

भारतीय चाय बोर्ड सिक्किम चाय के लिए जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) देने का विचार कर रहा है. बोर्ड का मानना है कि इस कदम से एक ओर इस चाय को एक नए ब्रांड के रूप में पहचान मिलेगी और निर्यात बाजार में बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर इससे दार्जिलिंग ब्रांड के संरक्षण में भी मदद मिलेगी. चाय बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन 'अरूण कुमार रे' के अनुसार वह चाय उत्पादन करने वाले सभी क्षेत्रों के लिए जीआई टैग चाहते हैं. एक जीआई टैग सिक्किम चाय को देने पर विचार किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रयास से चाय की प्रत्येक किस्म-दार्जिलिंग, असम, डूअर्स, नीलगिरि, कांगड़ा और सिक्किम को अपनी खुद की पहचान स्थापित करने में मदद मिलेगी.

हर चाय की है खास पहचान

वर्तमान में चाय के सभी प्रमुख क्षेत्रों के पास जीआई टैग और लोगो है लेकिन सबसे अधिक मान्यता दार्जलिंग चाय को प्राप्त है. इसका इस्तेमाल दुनियाभर में इसकी प्रमाणिकता के लिए किया जाता है. दार्जिलिंग, सिक्किम और नेपाल की चाय दिखने और सुगंध में एक समान होती है और जब तक इन्हें पीने के लिए तैयार नहीं किया जाता है तब तक इन तीनों के बीच अंतर करना मश्किल रहता है. इसकी पहचान करने के लिए कई बार इन तीनों अलग-अलग क्षेत्रों की पत्तियों की गुणवत्ता को लेकर उलझन में पड़ जाते है और यही से परेशानी शुरू होती है।

अलग-अलग तरह की चाय उपलब्ध

अधिकारियों के मुताबिक कई बार दार्जिलिंग चाय के रूप में नेपाल और सिक्किम के कम गुणवत्ता वाले मिश्रण उत्पाद और पैक करने वालों को दे दिए जाते हैं. पैक करने वाले जाने-अनजाने में नेपाल और सिक्किम की चाय को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त दार्जिलिंग जीआई लेवल के साथ पैक करके इसी ब्रांड के रूप में देते हैं. खुली चाय पत्ती के विक्रेताओं के बीच यह समस्या आम होती है. वैश्विक स्तर पर चाय की सामाज्ञ्री- दार्जिलिंग चाय अन्य चाय की तुलना में भारी मुनाफा बटोरती है जिनमें चीन की हरी चाय और सिक्किम और नेपाल की चाय भी शामिल है. वहीं दूसरी तरफ सुगंध के मामले में सिक्किम की चाय दार्जिलिंग के समान होती है लेकिन जर्मनी, जापान और पश्चिमी यूरोप के मिलावट- पैकिंग बाजार में अति उच्च गुणवत्ता वाली परंपरागत नेपाल चाय को ही पसंद किया जाता है.  

टैग मिलने से रूकेगी मिलावट

उद्योग का मानना है कि अगर सिक्किम चाय को जीआई टैग दिया जाता है तो दार्जिलिंग और सिक्किम के ब्रांडों का संरक्षण करने के लिए पैकिंग करने वालों को इन तीनों क्षेत्रों की चाय की मिलावट से रोका जा सकता है. इसके अलावा जीआई पहचान के साथ विज्ञापन को ध्यान में रखकर किए जाने वाले प्रयासों से सिक्किम की परंपरागत चाय के लिए लाभप्रद निर्यात बाजार का रास्ता खुलने की भी उम्मीद है. इंडियन टी एसोसिएशन के अनुसार सिक्किम चाय को जीआई टैग दिया जाना काफी अच्छा रहेगा क्योंकि इससे दो स्पष्ट रूप से निर्धारित क्षेत्रों के बीच अंतर करने से दार्जिलिंग ब्रांड को भी संरक्षण मिलेगा.

छोटे किसानों का सिक्किम चाय पर प्रतिनिधित्व

सिक्किम चाय पर मुख्य रूप से सिक्किम सरकार के स्वामित्व वाले टेमी टी गार्डन और अन्य कई छोटे चाय किसानों का प्रभुत्व है. इस एकमात्र बागान और अन्य छोटे किसानों के साथ हर साल अनुमानित पांच लाख किलोग्राम सिक्किम चाय का उत्पादन होता है. इसकी तुलना में दार्जिलिंग में 87 बागानों और अन्य छोटे उत्पादकों का उत्पादन 80 लाख किलोग्राम के आसपास रहता है.

किशन अग्रवाल, कृषि जागरण

English Summary: Sikkim tea gets GI tag Published on: 07 December 2018, 09:48 AM IST

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