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मालवा की माटी से रुखसत हो रहा शरबती गेहूं, ये है बड़ी वजह

पूरे देश में मध्य प्रदेश के शरबती गेहूं ने अपनी मिठास, पौष्टिकता और चमक के कारण अलग पहचान बनाई हुई है. द गोल्डन ग्रेन के नाम से विख्यात शरबती गेहूं अब मालवांचल की माटी से धीरे-धीरे रुखसत हो रहा है. वैसे, शरबती खाने योग्य गेहूं की सबसे बेहतरीन वैरायटी मानी जाती है. वहीं देशभर में इसकी अच्छी मांग भी रहती है. लेकिन इसके बावजूद प्रदेश के मालवा क्षेत्र में इसका रकबा सिमटता जा रहा है. तो आइए जानते हैं कि आखिर क्या वजह है कि इससे किसानों का मोहभंग हो गया.

श्याम दांगी
wheat
Wheat Crop

पूरे देश में मध्य प्रदेश के शरबती गेहूं ने अपनी मिठास, पौष्टिकता और चमक के कारण अलग पहचान बनाई हुई है. द गोल्डन ग्रेन के नाम से विख्यात शरबती गेहूं अब मालवांचल की माटी से धीरे-धीरे रुखसत हो रहा है. वैसे, शरबती खाने योग्य गेहूं की सबसे बेहतरीन वैरायटी मानी जाती है. वहीं देशभर में इसकी अच्छी मांग भी रहती है. लेकिन इसके बावजूद प्रदेश के मालवा क्षेत्र में इसका रकबा सिमटता जा रहा है. तो आइए जानते हैं कि आखिर क्या वजह है कि इससे किसानों का मोहभंग हो गया.

शरबती गेहूं का रकबा सिर्फ 10 हेक्टेयर (Sharbati wheat area is only 10 hectares)

मालवा के प्रमुख जिले उज्जैन में पांच साल पहले शरबती गेहूं का रकबा 70 हजार हेक्टेयर के आसपास था. लेकिन अब नए आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. जिले में अब शरबती का रकबा महज 10 हजार हेक्टेयर ही बचा है. जिले के किसान शरबती गेहूं की बजाय अब गेहूं कि अन्य किस्मों जैसे हर्षिता और पूर्णा की पैदावार ले रहे हैं. 

शरबती गेहूं की महानगरों में डिमांड (Sharbati wheat demand in metro Cities)

अगर उज्जैन जिले की बात करें तो रबी सीजन में तक़रीबन 90 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूं की बुवाई की जाती है. वहीं 10 प्रतिशत क्षेत्र में चना और अन्य फसलों की उपज ली जाती है. यहां की काली मिट्टी में शरबती गेहूं का बंपर उत्पादन हुआ करता था. जो जिले की मंडी से ग्रेडिंग के बाद मुंबई, बेंगलुरु, पुणे और चेन्नई जैसे महानगरों में 5 हजार रुपये क्विंटल बिक जाता था. वहीं किसानों को भी नीलामी के बाद 2500 से 3000 हजार रुपये क्विंटल तक के दाम मिल जाते थे. लेकिन अब मंडियों में शरबती की आवक बेहद कम है. 

क्यों है किसानों की शरबती गेहूं से बेरुखी (Why farmers are dissatisfied with Sharbati wheat)

1. शरबती गेहूं का यूं तो कोई जवाब नहीं है लेकिन इसके बेहद नाजुक होने के कारण इस मौसम की मार जल्दी पड़ती है. वहीं कटाई के दौरान हार्वेस्टर मशीन भी इसे नुकसान पहुंचाती है.

2. इसमें ज्यादा पानी की जरुरत पड़ती है बावजूद अपेक्षित मुनाफा नहीं मिल पाता है. यही वजह है कि इसका रकबा बेहद कम हो गया.

3. किसानों का रुझान अब शरबती की जगह हर्षिता और पूर्णा जैसी किस्मों पर है. दरअसल, जहां शरबती गेहूं का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल तक ही होता है वहीं अन्य किस्मों से प्रति हेक्टेयर 40 से 45 क्विंटल तक का उत्पादन लिया जाता है.

4. वहीं कुछ सालों से अच्छी बारिश की वजह से किसानों में ज्यादा उपज देने वाली किस्मों और प्याज-लहसुन की खेती में बढ़ा है. इस वजह से भी रकबा काफी कम हो गया है.

शरबती की जगह हर्षिता गेहूं की किस्म की ज्यादा पैदावार (Higher yield of Harshita wheat variety instead of Sharbati)

कृषि वैज्ञानिक रेखा तिवारी का कहना है कि सीजन में शरबती गेहूं 3000 से 3500 रुपये क्विंटल बिकता है लेकिन हर्षिता किस्म का भी अच्छा भाव मिल जाता है. इसके दाम किसानों को 2800 से 3000 रुपये प्रति क्विंटल मिल जाते हैं. 

उनका कहना है कि हर्षिता किस्म शरबती का बेहतर विकल्प है. यह काफी पौष्टिक है और स्वाद में शरबती की तरह ही होता है. वहीं हर्षिता के अलावा जिले में लोकवान, पूर्णा, तेजस और पोषण किस्म है जिनकी शरबती की तुलना में अधिक पैदावार होती है.

English Summary: sharabati wheat growing from malwa soil has consistently reduced its area in ujjain district Published on: 03 November 2020, 03:49 PM IST

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