तिल की खेती को लेकर हमारे समाज और ग्रामीण इलाकों में कई प्रकार की गलत अवधारणाएं हैं, जो किसानों को इसकी खेती करने से रोकती हैं. आज इसी कड़ी में हम बात करेंगे कि आखिर क्या वजह है, जो किसानों को तिल की उन्नत खेती नहीं करवने से रोकती है.
पहली गलत अवधारणा
अगर कोई किसान तिल की खेती करता है, तो उसे आसानी से मजदूर खेती करने के लिए नहीं मिलते हैं. जिस वजह से फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक में देरी या फिर नुकसान उठाना पड़ता है. ऐस इसलिए है, क्योंकि मजदूरों का ऐसा मानना है कि अगर हम किसी के लिए तिल की खेती या इस फसल में कोई भी काम करते हैं, तो जिंदगी भर उनका कर्जदार रहना पड़ेगा.
दूसरी गलत अवधारणा
ऐसा मानना है कि ऊपजाऊ भूमि पर तिल की खेती की जाएगी, तो जमीन बंजर हो जाती है. जब की कृषि वैज्ञानिकों द्वारा यह पुष्टि की गयी है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. आपको बता दें कि किसी भी किसान या फिर साधारण व्यक्ति जो कृषि कार्य में अपनी दिलचस्पी रखता है उसके लिए तिल की खेती किसी सोने की चिड़ियाँ से कम नहीं है. तिल की खेती सिर्फ बंजर या गैर उपजाऊ भूमि पर ही की जाती है. वहां तिल की फसल लहलहा सकती है.
फिर वह जमीन बंजर कैसे हो सकती है, यह समझना बेहद जरुरी है. आखिर बंजर भूमि दोबारा बंजर कैसे होगी? इन अन्धविश्वाश को लेकर काफी हद तक कम किया गया है. किसानों को शिक्षित किया गया है, लेकिन देशभर के किसानों में आज भी ऐसा सोचते हैं, जिस पर काम करना बेहद जरूरी है. तो चलिए आज हम बात करेंगें कि कैसी किसान भाई तिल की उन्नत खेती कर ना सिर्फ लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं, बल्कि समाज में फैल रहे इस अन्धविश्वाश को भी कम कर सकते हैं.
किस प्रकार के जमीन पर की जाती है खेती?
किसानों को तिल की खेती के लिए रेतीली जमीन की जरुरत होती है. यानि ऐसी जमीन, जहां पानी का ज्यादा ठहराव ना हो और पानी निकलने की सही व्यवस्था हो. तिल की फसल को उतना ही पानी चाहिए, जितने में फसल की जड़ में जल पहुंच सके. उससे अधिक पानी फसल के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. तो अगर आपके पास बेकार किस्म की, उबड़-खाबड़, रेतीली जमीन है, तो आप उसे बेकार ना समझें. वहां आप थोड़ी सी मेहनत करके तिल की खेती कर सकते हैं.
तिल के प्रकार
तिल के तीन प्रकार होते हैं. पहला-उजला तिल, दूसरा-काला तिल और तीसरा-लाल तिल. लाल तिल बड़ी मुश्किल से पाई जाती है. ये तीनों किस्म के तिल अलग-अलग बीजों से होते हैं पर उनकी खेती का तरीका एक जैसा होता है. जो खेती का तरीका लाल तिल का होता है, वही काले तिल का और वही सफेद तिल का भी होता है. अब यह किसानों की बारी है कि उन्हें लाल, काला और सफेद में से कौन सा तिल उपजाना है, क्योंकि बाजार में तीनों किस्म के तिल के रेट अलग-अलग हैं.
कैसे करें इसकी तैयारी
अगर आप काले तिल की खेती करना चाहते हैं, तो आपको बस यह काम करना होगा. सबसे पहले अपने खेतों की मिट्टी को भुरभुरी कर लें. मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हल या ट्रैक्टर से पूरी जमीन को एक बार जोत लें.
ध्यान रहे कि काला तिल या किसी भी किस्म का तिल तब बोएं, जब मौसम शुष्क हो. तिल की खेती के लिए शुष्क वातावरण सबसे सटीक माना जाता है. इसके लिए गर्मी का मौसम सबसे उपयुक्त है. माना जाता है कि मई-जून के माह में तिल की बुवाई सबसे बेहतर होती है. बता दें कि तिल के बीज कई प्रकार के होते हैं. बाजार में जो तिल उपलब्ध हैं, उनमें पी 12, चौमुखी, छह मुखी और आठ मुखी बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं.
तिल की खेती से बंपर पैदावार का राज
यह माना जाता है कि एक एकड़ में डेढ़ किलोग्राम बीज का छिड़काव अथवा रोपण करना चाहिए. एक एकड़ में अगर आप डेढ़ किलो बीज का इस्तेमाल कर अगर सही तरीके से फसल की देखभाल करते हैं, तो आपकी उपज 5 क्विंटल या उससे भी ज्यादा हो सकती है.
बीज उपचार है जरुरी
बीज उपचार किसी भी फसल के लिए अत्यंत जरुरी है. ऐसे में तिल का बीज उपचार करने के लिए ट्राइकोडर्मा दवा सबसे उपयुक्त है. इस दवा को तिल के बीज के साथ मिला लें. बढ़िया से मिलाने के बाद उसे छांव में कई दिनों तक रख कर सुखाएं. जब तक बीज पूरी तरह ना सूख जाए, उसका रोपण ना करें. जब दवा मिश्रित बीज सूख जाए, तो उसे खेत में रोपना ज्यादा फायदेमंद माना जाता है. बीजारोपण तभी करें, जब उसमें ट्राइकोडर्मा नामक दवा अच्छा मिल जाए.
बुवाई करने की सही विधि
तिल के फसल की बुवाई का सही समय जून-जुलाई में जैसे ही थोड़ी सी बारिश हो, आप खेत की जुताई कर डालें. जब जुताई हो जाए, मिट्टी भुरभुरी हो जाए तो उसे एक दिन सूखने दें. जब मिट्टी थोड़ी सूख जाए तब तिल के मेडिकेटेड बीज का आप छिड़काव कर सकते हैं.
खरपतवार नियंत्रण
बुवाई के चंद दिनों के बाद खरपतवार पर नियंत्रण करना होगा. तिल के पौधे के चारों तरफ खरपतवार बहुत तेजी से निकलते हैं. उन्हें उतनी ही हटाना होगा अन्यथा आपकी फसल का विकास रूक जाएगा. खर-पतवार को रोकने के लिए लासों नामक केमिकल का भी छिड़काव कर सकते हैं. ये खर-पतवार को जला देता है. इसके साथ ही अगर आप समय रहते निराई-गुड़ाई करते रहेंगे, तो भी खरपतवार नहीं उगेंगे.
फसल की सुरक्षा
तिल के पौधों में एक महक होती है, जो जंगली पशुओं को अपनी तरफ आकर्षित करती है. अब यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप फसल की सुरक्षा जानवरों से कैसे करते हैं. आवार पशु तिल के फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है. इनमें छुट्टा गाय-बैल तो होते ही हैं, जंगली सुअर, नीलगाय भी होते हैं. ये एक ही रात में पूरी खेत चट कर जाने की क्षमता रखता है.
4 माह में तैयार होती है फसल
माना जाता है कि काला तिल 120 दिनों में तैयार हो जाता है, लेकिन, ये 120 दिन किसानों के बड़े सिरदर्दी वाले होते हैं. खासकर आवारा पशुओं से फसल की रक्षा करना बहुत मुश्किल काम होता है.
कटाई
120 दिनों के बाद जब आपकी फसल तैयार हो जाए, तो उसकी कटाई कर दें. आप तिल काटने के लिए कटर का उपयोग कर सकते हैं.
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