Gehu ki Kheti: देश के ज्यादातर किसान अपने खेत में गेहूं की खेती/ Wheat Cultivation करते हैं. गेहूं की फसल से अच्छा उत्पादन पाने के लिए किसान को कई तरह के कार्यों को करना पड़ता है, जिसमें सबसे अधिक पट्टी रोली रोग का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है. गेहूं की फसल/ Wheat Crop में किसानों की इस परेशानी को समझते हुए राजस्थान कृषि विभाग/ Rajasthan Agriculture Department ने गेहूं की फसल में लगने वाले पट्टी रोली रोग से जुड़ी महत्वूपर्ण जानकारी साझा की है.
बता दें कि किसान अगर समय पर गेहूं की फसल में पट्टी रोली रोग का उपचार नहीं करते हैं, तो यह रोग उपज में भारी गिरावट का मुख्य कारण बन सकता है. ऐसे में इस रोग के बारे में विस्तार से जानते हैं-
गेहूं की फसल पट्टी रोली रोग लगने के लक्षण
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गेहूं की फसल में जब यह रोग लग जाता है, तो फसल कि पत्तियों का रंग फीका पड़ने लगता है.
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पत्तियों पर बहुत ही छोटे-छोटे पीले बिंदु नुमा फफोले भी दिखने लगते हैं.
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इस रोग के चलते फसल के पूरे पत्ते पाउडर नुमा बिंदुओं से ढक जाते हैं.
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गेहूं की फसल पट्टी रोली रोग पहले 10-15 पौधों में एक गोले के आकार में फैलते हैं और फिर धीरे-धीरे पूरी फसल में फैलने लगता है.
पट्टी रोली रोग प्रबंधन के उपाय
गेहूं की फसल को पट्टी रोली रोग से बचाने के लिए किसान को कई बातों का ध्यान रखना चाहिए. राजस्थान कृषि विभाग के द्वारा जारी की गई जानकारी के मुताबिक, किसान को अपने खेत में जल जमाव होने की स्थिति में नाइट्रोजन युक्त से अधिक मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. किसानों को बल्कि अपने खेत में विभागीय/खंडीय सिफारिश अनुसार की उर्वरक और कीटनाशक की मात्रा का उपयोग करना चाहिए.
इसके अलावा किसान को गेहूं की फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करना चाहिए. अगर किसान को फसल में किसी भी तरह का संदेह लगता हैं, तो तुरंत अपने नजदीकी कृषि विभाग/कृषि विज्ञान केंद्र/कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क करना चाहिए.
अगर फसल में पट्टी रोली रोग लग जाता है, तो किसान को अनुशिंसित फफूंद नाशक का छिड़काव करना चाहिए. जैसे कि प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या टेबुकोनाजोल 25.9 ईसी. का 1 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 200 लीटर घोल का प्रति एकड़ में जरूर छिड़काव करें. फिर किसान को 15 दिन के अंतराल पर दूसरा छिड़काव करना चाहिए. ऐसा करने से पट्टी रोली रोग का प्रभाव फसल पर कम होता है.
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