भारत दलहनी फसलों का एक प्रमुख उत्पादक देश है. विश्व में दलहन उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है. भारत में विभिन्न प्रकार के दलहनी फसलों की खेती की जाती है जैसे चना, मूँग, उरद, अरहर, लोबिया, मूँगफली, सोयाबीन इत्यादि. दलहन प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत है. शाकाहारी भोजन में दलहन मुख्य रूप से शामिल है. दलहनी फसलों में जैव उवर्रकों के प्रयोग करने से वायुमंडल में उपस्थित नत्रजन पौधों को अमोनिया के रूप में सुगमता से उपलब्ध होती है तथा भूमि में पहले से मौजूद अघुलनशील फास्फोरस आदि तत्व घुलनशील होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं. चूंकि जीवाणु प्राकतिक है, इसलिए इनके प्रयोग से भूमि की उवर्रा शक्ति बढ़ती है और पर्यावरण पर विपरीत असर नहीं पडता. जैव उवर्रक रासायनिक उवर्रकों के पूरक है, रासायनिक उवर्रकों के पूरक के रूप में जैव उवर्रकों के प्रयोग से हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं.
जैव उवर्रक
वास्तव में जैव उवर्रक जीवित उवर्रक है जिनमें सूक्ष्मजीव जैसे जीवाणु, कवक किसी धारक नमी पदार्थ के साथ मिश्रित होते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने व फसलोत्पादन की वृद्धि में अनेक कार्य करते हैं. सूक्ष्मजीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ के साथ (चारकोल) तैयार किये जाते हैं यह प्रायः ’कल्चर’ के नाम से बाजार में उपलब्ध है.
राइजोबियम क्या है ?
फलीदार पौधों की जडों की ग्रंथिकाओं में राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की पैदावर बढ़ाने में सहायक है. राइजोबियम दलहनी फसलों में प्रयोग होने वाला एक जैव उवर्रक है.
दलहनी फसलों में प्रयोग होने वाली राइजोबियम की विभिन्न प्रजाति
राइजोबियम कल्चर फसल
राइजोबियम मेलीलोटी मेथी
राइजोबियम टा्रइफोली बरसीम
राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम मटर, मसूर
राइजोबियम फेसीयोली सेम
राइजोबियम जेपोनिकम अरहर, लोबिया, मूँगफली,,सोयाबीन
राइजोबियम कल्चर का प्रयोग
राइजोबियिम का प्रयोग बीज का उपचार करने में तथा बुवाई पूर्व गोबर खाद के साथ मिलाकर किया जाता है.
बीजोपचार 3 पैकेट 600 ग्राम राइजोबियिम प्रति हेक्टेयर के दर से प्रयोग करें. उपचार के लिए 1 लीटर पानी में 60 ग्राम गुड़ डालकर गरम कर के घोल बनाएँ और ठंडा होने पर इस में 3 पैकेट राइजोबियिम कल्चर मिलाएँ घोल को धीरे-धीरे लकड़ी के डंडे से हिलाते रहें. इतना घोल 1 हेक्टेयर में बोए जाने वाले बीजों के उपचार लिए पर्याप्त होता है. इस घोल को बीजों पर धीरे-धीरे इस तरह छिड़कना चाहिए कि घोल की परत सब बीजों पर समान रूप से चिपक जाए. इसके बाद इन बीजों को छायादार जगह पर सुखाएं फिर बुवाई करें. मृदा उपचार बुवाई पूर्व 10 पैकेट 2 किलो ग्राम राइजोबियिम प्रति हेक्टेयर के दर से 25 किलो ग्राम गोबर खाद तथा 25 किलो ग्राम मिटटी के साथ मिलाकर प्रयोग करें.
राइजोबियम कल्चर के लाभ
राइजोबियम जीवाणु वातावरण मे व्याप्त नत्रजन का स्थिरीकरण कर पौधों की जडों तक पहुचाते हैं. अतः दलहनी फसलों में रासायनिक खाद की कम आवष्यकता होती है.
राइजोबियम के प्रयोग से सोयाबीन की उपज में प्रतिशत तथा चना, मूँग ,उरद , अरहर, लोबिया, मूँगफली की उपज में कई प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है. राइजोबियम के प्रयोग से भूमि में नत्रजन की मात्रा बढ़ जाती है तथा उर्वरा बनी रहती है.
दलहनों की जड़ों में विद्यमान जीवाणुओं द्वारा संचित नत्रजन अगली फसल द्वारा ग्रहण किया जाता है. राइजोबियम द्वारा यौगिकीक्रत नत्रजन कार्बनिक रूप में होने के कारण पूर्ण रूप से पौधों को प्राप्त होता है.
सावधानियाँ
प्रत्येक दलहन को उसके विशेष कल्चर से उपचारित करना चाहिए. अन्य फसल के कल्चर का प्रयोग करने से जड़ों में गांठे नहीं बनेगी और कल्चर का फायदा फसल को नहीं मिलेगा.
पैकेट पर लिखी अंतिम तिथि के पूर्व कल्चर का प्रयोग करना चाहिए.
बीज उपचार की तैयारी करने के बाद अंत में राइजोबियम का पैकेट खोलना चाहिए.
बीज उपचार के तुरंत बाद बीज बो देना चाहिए या कुछ समय के लिए छायादार जगह पर सुखाएँ फिर बुवाई करें.
यदि बीजों को कीटनाशक व फफूंदनाशक रसायनों से उपचारित करना हो तो क्रमश: फफूंदनाशक, कीटनाशक और अंततः राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें.
गुड़ और पानी के गरम घोल के ठंडे होने के उपरांत धीरे-धीरे कल्चर को डालें.
बीज उपचार करते समय दस्ताने अवष्य पहने.
लेखक
चारूल वर्मा एम.एस.सी
पादप रोग विज्ञान विभाग
उद्यानिकी महाविद्यालय नौणी सोलन (हि.प्र.)
डॉ यशवन्त सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विष्वविद्यालय नौणी सोलन (हि.प्र)
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