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नैनीताल बनेगा तेजपत्ता उत्पादन का हब, जानिए क्या है योजना ?

उत्तराखंड राज्य का नैनीताल नामक जगह तेजपात उत्पादन के मामले में मुख्य उत्पादक क्षेत्र बन रहा है. दरअसल उत्तराखंड के सात विकासखंडों में 3759 कृषक 250 हेक्टेयर क्षेत्रफल में तेजपात की खेती करने का कार्य कर रहे है. तेजपात उत्पादन में किसानों की रूचि को देखते हुए अब यहां के भीमतल और ओखलकांडा क्षेत्र में एरोमा कलस्टर को विकसित करने का कार्य किया जाएगा. जिसमें 786 कृषकों की 183 हेक्टेयर क्षेत्रफल भूमि को तेजपात की खेती से आच्छदित करने का पूरी तरह से प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही इस क्षेत्र में तेजपात उत्पादन का एक बाजार भी आसानी से तैयार होगा. इससे रोजगार के अवसर अच्छी तरह से विकसित होंगे.

किशन
Tepata

उत्तराखंड राज्य का नैनीताल नामक जगह तेजपात उत्पादन के मामले में मुख्य उत्पादक क्षेत्र बन रहा है. दरअसल उत्तराखंड के सात विकासखंडों में 3759 कृषक 250 हेक्टेयर क्षेत्रफल में तेजपात की खेती करने का कार्य कर रहे है. तेजपात उत्पादन में किसानों की रूचि को देखते हुए अब यहां के भीमतल और ओखलकांडा क्षेत्र में एरोमा कलस्टर को विकसित करने का कार्य किया जाएगा. जिसमें 786 कृषकों की 183 हेक्टेयर क्षेत्रफल भूमि को तेजपात की खेती से आच्छदित करने का पूरी तरह से प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही इस क्षेत्र में तेजपात उत्पादन का एक बाजार भी आसानी से तैयार होगा. इससे रोजगार के अवसर अच्छी तरह से विकसित होंगे.

बनेंगे 17 अरोमा कलस्टर

विकासखंड भीमताल के ग्राम मंगोली, भेवा, नलनी, जलालगांव,खमारी, सूर्यागांव, दोगड़ा, चोपड़ा, भल्यूटी, बडैत, हैड़ाखान, ओखलकांडा ब्लॉक के भदरेठा, मटेला, पुटपुड़ी, साल, डालकन्या,भद्रकोट, देवली, तुषराड सहित अन्य गांवों में कुल 17 तरह के अरोमा कलस्टर को विकसित किया जाएगा.

जैविक खेती हेतु किसान होंगे प्रशिक्षित

एरोम कलस्टरों में चयनित कृषकों को जैविक खेती करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आरंभ कर दिया गया है. इस योजना के तहत संगध पौधा केंद्र कृषकों को जैविक खाद और उर्वरक, वर्म कंपोस्ट पिट और स्प्रे मशीन मुफ्त में वितरित होगी. तेजपात की जैविक खेती से प्राप्त उत्पाद की विशिष्ठ पहचान स्थापित होगी, जिससे उत्पादकों को इसका मूल्य भी अधिक मिलेगा.

tejpata

तेजपात के फायदे

तेजपात की पत्ती और छाल दोनों का उपयोग किया जाता है.पत्तियों की सबसे अधिक खपत मसाला उद्योग में होती है. पत्तियों को सीधे मसाले के रूप में प्रयोग होता है और पत्तियों से मिलने वाले सुगंधित तेल का भी सौंदर्य प्रसाधान में उपयोग होता है. साथ ही बाजार में इसकी काफी ज्यादा मांग होती है. यह एक ऐसा सदाबहार वृक्ष है जो कि मृदारक्षण और रोकने व पर्यावरण संरक्षण में सहायक होता है.

प्रतिवर्ष 30 क्विंटल उत्पादन

पौध रोपण करने के पांच साल बाद से तेजपात की फसल मिलना शुरू हो जाती है. यहां एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही प्रतिवर्ष तकरीबन 30 क्विटंल पत्तियों का उत्पादन होता है. इससे किसानों को प्रति हेक्टेयर 1.50 लाख तक की आय प्राप्त हो जाती है. यहां पर 900 टन पत्तियों का उत्पादन प्रतिवर्ष हो रहा है.

English Summary: Rectified production of Tejpatta cultivation in this district of Uttarakhand Published on: 25 July 2019, 05:13 PM IST

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