हलवा कद्दू जिसे हम आम बोलचाल में पेठा कहते है. इसमें कई तरह के पोषक तत्व मौजूद होते हैं. साथ ही यह कम समय में तैयार होने वाली अच्छी फसल है. कई फायदों के कारण कद्दू की खेती किसानों के लिए फायदेमंद मानी जाती है. आइए जानते हैं हलवा कद्दू की खेती की बेहतर किस्म के बारे में...
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हलवा कद्दू भारत की एक लोकप्रिय सब्जी है जो बरसात के मौसम में उगाई जाती है. हलवा कद्दू के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है. इसका उपयोग खाना पकाने और मिठाइयां आदि बनाने में किया जाता है. साथ ही इसमें विटामिन ए और पोटाश का अच्छा स्रोत पाया जाता है. हलवा कद्दू का उपयोग आंखों की रोशनी बढ़ाने, निम्न रक्तचाप के लिए किया जाता है और यह एक एंटीऑक्सीडेंट है. इसकी पत्तियां, तना, फलों का रस और फूलों का उपयोग औषधियां बनाने में किया जाता है. अगर आप भी कद्दू की खेती से अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आप अपने खेत में हलवा काद्दु की PPH-2 किस्म को लगा सकते हैं.
कद्दू की खेती पर एक नजर
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कद्दू की बुआई के लिए फरवरी-मार्च और जून-जुलाई उपयुक्त है.
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देश में वर्षा ऋतु में कद्दू की खेती अच्छी मानी जाती है.
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गर्मी का मौसम कद्दू के पौधों के विकास के लिए अच्छा माना जाता है, जबकि पाला फसल के लिए हानिकारक होता है.
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कद्दू के पौधों को फूल आने के दौरान ज्यादा बारिश की जरूरत नहीं होती. क्योंकि इससे फूल खराब होने का खतरा रहता है.
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बीज के अंकुरण के लिए 20 डिग्री तापमान तथा फलों की अच्छी वृद्धि के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान अच्छा माना जाता है.
कद्दू की लोकप्रिय किस्में पीपीएच-2 (PPH-2)
पीपीएच-2 (PPH-2): इस प्रकार का उत्पादन भी 2016 में किया गया था. यह बहुत जल्दी पकने वाली किस्म है. इसकी लताएँ ऊँचाई में छोटी होती हैं और पत्तियों का मध्य भाग छोटा होता है और पत्तियाँ गहरे हरे रंग की होती हैं. इसके फल छोटे और गोल आकार के होते हैं. इसके फल कच्चे होने पर हरे रंग के होते हैं, जो पकने पर नरम और भूरे रंग के हो जाते हैं. फल का गूदा सुनहरे पीले रंग का होता है. इसकी औसत उपज 222 क्विंटल प्रति एकड़ है.
बता दें कि इस किस्म के अलावा पीएयू मगज़ कद्दू-1 (PAU Magaz Kardoo-1), पीपीएच-1 (PPH-1), पंजाब सम्राट, CO2 (CO2), CO1, अर्का सूर्यमुखी, पूसा विश्वेश, TCR 011, अंबिल्ली और अर्का चंदन हलवा कद्दू की महत्वपूर्ण किस्में हैं.
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रोग और उनकी रोकथाम
कद्दु की खेती के लिए किसान भाइयों को हमेशा सतर्क रहने की आवश्यकता है. क्योंकि इसमें कई तरह के रोग लग जाते हैं, जिसका अगर समय पर बचाव नहीं किया गया तो यह आपकी पूरी फसल को नष्ट कर सकते हैं.
सफेद कवक: इस रोग से प्रभावित पौधे के मुख्य तने और पत्तियों की ऊपरी परत पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. इसके कीट पौधे का उपयोग भोजन के रूप में करते हैं. इस रोग के अधिक आक्रमण से पत्तियाँ गिरने लगती हैं तथा फल समय से पहले पक जाते हैं. यदि इसका आक्रमण दिखाई दे तो 20 ग्राम पानी में घुलनशील सल्फर (सल्फर 20 ग्राम) को 10 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें.
पत्तियों की निचली सतह पर धब्बे: यह रोग स्यूडोपेरोनोस्पोरा क्यूबेंसिस के कारण होता है. इसके कारण पत्तियों की निचली सतह पर काले धब्बे तथा बैंगनी रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं. यदि इसका आक्रमण हो तो 400 ग्राम डाइथेन एम-45 या डाइथेन जेड-78 का प्रयोग करें.
एन्थ्रेक्नोज: एन्थ्रेक्नोज से प्रभावित पत्तियां झुलसी हुई दिखाई देती हैं. इसकी रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करें. यदि खेत में इसका आक्रमण दिखे तो मैंकोजेब 2 ग्राम (Mancozeb 2 gm) या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम (Carbendazim 3 gm) को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
सूखा: यह रोग जड़ सड़न का कारण बनता है. यदि इसका आक्रमण दिखे तो 400 ग्राम एम-45 को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें.
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