जैसे -जैसे जमाना बदलता जा रहा है वैसे ही किसान वर्ग भी खेती के तरीकों को बदलता जा रहा है. वह भी अब आधुनिकता के साथ में कदम से कदम मिलाकर चल रहा है. खेतीबाड़ी में नए-नए प्रयोगों को अपनाकर अपनी आर्थिकी की चाल को तेज करने में जुट चुका है. सूबे में ज्यादातर किसान जहां रिवायती फसलों के कारण आर्थिक नुकसान का सामना कर रहे है, वही अमरोह के गांव तूरां का जगदेव सिंह नई तकनीक से तीन लाइनों में आलू की बीजाई करके अपने साथियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन रहे है.
उन्होंने आज से तीन वर्ष पहले पराली को आग के हवाले करने के बजाय खेत में ही मिलाने को पहल दी है. इस तरह से करने पर खाद में कम खर्चा हुआ हैसाथ ही फसल की पैदावार में बढ़ोतरी भी हुई है.
1980 से कर रहे आलू की खेती (Potato farming since 1980)
जगदेव सिंह के अनुसार वह वर्ष 1980 से आलू की खेती करते हुए आ रहा है, साथ ही उनके पास 20 एकड़ अपनी और 60 एकड़ जमीन के पर है. एक वर्ष में तीन फसलों की पैदावार होता है. उसने बताया कि पहले वह आलू के बाद सूरजमुखी की खेती करता था, लेकिन पिछले कई वर्ष से सूरजमुखी के भाव कम होने के कारण मक्की की खेती करनी शुरू की है.
40 से 50 हजार होती आलू की खेती से कमाई (40 to 50 thousand earned from potato cultivation)
जगदेव सिंह ने बताया कि वह आलू से प्रति एकड़ 50 हजार से एक लाख , मक्की से 40-45 हजार और धान की किस्म की पीआर से प्रति एकड़ 51 हजार की आमदनीहुई है। उसने बताया कि एक फसल जमीन का ठेका निकाल देती है, एक खर्च पूरा कर देती है, जबकि सतीसरी फसल से उसको 40 से 50 हजार रूपये बच जाते है. उसके पास मल्चर, रोटावेटर, प्लाओ, हैरो, बैड बनाने की मशीन है. इनमें से कई मशीनों पर खेती बाड़ी और किसान भलाई विभाग से पूरी तरह से सब्सिडी को हासिल कर रहा है.
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सफल किसान का कहना है कि माहिरों की सलाह से नई तकनीक को अपनाकर खेती कर खर्च घटाए जा सकते है और आमदनी में भी बढ़ोतरी की जा सकती है. उसने बताया कि पहले वह आलू के बाद सूरजमुखी की खेती करता था, लेकिन पिछले कई वर्ष से सूरजमुखी के भाव कम होने के कारण मक्की की खेती करनी शुरू की है.
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