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आलू की फसल में झुलसा रोग होने की संभावना

मौसम में हो रहे बदलाव और तापमान गिरने से आलू, मटर सरसों, अरहर, चना की फसल न सब्जियों की फसल में कई तरह के रोग लग सकते हैं।

KJ Staff
potato crop
आलू की फसल में झुलसा रोग होने पर ऐसे करें बचाव (Image Source - AI generate)

मौसम में लगातार हो रहे बदलाव और तापमान गिरने से इस समय आलू की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनती जा रही है। इसमें झुलसा रोग का डर किसानों को प्रमुख रूप से सता रहा है। लेकिन मौसम की आकलन के आधार पर आलू की फसल में झुलसा की बीमारी निकट भविष्य में आने की संभावना है। ऐसे में किसान भाइयों को अपने आलू की फसल को बचाने को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है।

ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों को कहना है कि बादल होने पर आलू की फसल में फफंदू का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। जोकि झुलसा रोग का प्रमुख कारण होता है। झुलसा रोग प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है। अगेती झुलसा और पछेती झुलसा, आगेती  झुलस दिसंबर महीने के अंत में, और पछेती झुलसा जनवरी महीने में वैसे तो मौसम के बदलाव के वजह से यह रोग कभी भी लग सकता है। जिस तरह से मौसम में बदलाव चल रहा है आलू की फसल में झुलसा रोग लग सकता है।

पछेती झुलसा आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। यह आलू की सबसे भयानक बीमारी है, जो फफंदू जनित होती है। इस रोग के प्रकोप से पत्तियों के किनारे वह सिरे से झुलसना प्रारंभ होती है। जिसके परिणाम स्वरुप पूरा पौधा सूख जाता है।

आलू वैज्ञानिकों का कहना है कि बदली के मौसम में तथा वातावरण में नमी होने पर यह रोग उग्र रूप से धारण कर लेता है व दो-तीन दिन में पूरी पती झुलस जाती है। जिस पति तने वह आलू सड़ने लगते हैं। प्रतिकूल मौसम में विशेष कर बदली युक्त बूंदाबांदी एवं नाम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप अधिक रहता है इस वातावरण में इसका प्रकोप बहुत अधिक बढ़ता है। तथा फसल को भारी क्षति पहुंचती है। पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियों के सिरों में झुलसना प्रारंभ होती है, जो तीव्र गति से फैलती है पत्तियों पर भूरे काले रंग के धब्बे बनते हैं तथा पतीयों के निचले सतह पर रूई की तरह फफूंद दिखाई देती है। 80% बदली युक्त वातावरण में, एवं 10 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है। इस रोग से एक सप्ताह के अंदर ही पूरी तरह से फसल नष्ट हो जाती है।

आलू और टमाटर की फसल को आगेती  झुलसा और पैछती झुलसा रोग से बचने के लिए 12 प्रतिशत करबानडाजीम 63%मैकोजेब दवा का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। दूसरा छिड़काव मैंकोजेब करना चाहिए।

पछेती झुलसा का नियंत्रण के लिए सर्वागी तथा संपर्कों की फफंदू नाशकों का प्रयोग आवश्यक है। इस रोग की रोकथाम के लिए पहले कॉपर साल्ट तथा बोर्डो मिश्रण जैसे अकार्बनिक आणिवकों का इस्तेमाल किया जाता था परंतु डिथियोकार्बामेट की खोज के उपरांत कापर सालट की जगह डिथियोकार्बामेट का प्रयोग अधिक किया जा रहा है।अब फिनाइल अमाइडस विशेषकर मेटालिकस नामक सर्वागी फफंदूनाशक का प्रयोग बेहतर सिद्ध हो रहा है।

यह फफूंदनाशक इतना अधिक कारगर रहा की कुछ बरसों में आलू के पछेती झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए इसका प्रयोग विश्व भर में किया जाने लगा है। मेटालेक्सल प्रतिरोधी पी,इनफेस्टांस के प्रभेद भारत तथा विश्व के अन्य देशों में है। रोग कारकों में रोग प्रतिरोधाता विकसित न हो इसलिए मेटालेक्सल का प्रयोग मैंकोजेब जैसे संपर्क की फुफूंदनाशकों  को साथ मिलकर किया जाता है।मेटालेक्सल प्रतिरोधी पर प्रभेदों पर नियंत्रण पाने के लिए सर्वागी फफंदूनाशक साइमोजैनिल तथा सम्पर्की फफूंदनाशक मैंकोजेब के मिश्रण का फसल पर छिड़काव अधिक प्रभावी पाया गया है।

लेखक -रबीन्द्र नाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश।

English Summary: potato crop blight disease Here to protect Published on: 30 December 2025, 04:50 PM IST

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