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कृषि सलाह: आलू और सरसों की फसल को कीट-व्याधि से बचाव के सरल उपाय, पढ़ें पूरी डिटेल

Agricultural Advice: मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन के चलते कृषि विभाग, सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग बिहार ने आलू और सरसों की फसल में लगने वाले कीट-व्याधि से बचाव के लिए जरूरी सलाह जारी की है. ताकि किसान अपनी फसल से अधिक पैदावार प्राप्त कर सकें.

लोकेश निरवाल
आलू एवं सरसों फसल में कीट के उचित प्रबंधन
आलू एवं सरसों फसल में कीट के उचित प्रबंधन

Crop Protection: देशभर के विभिन्न राज्यों में इस समय घना कोहरा और तापमान में उतार-चढ़ाव एवं उच्च सापेक्ष आर्द्रता की स्थिति बनी हुई है, जिस कारण किसानों के खेत में लगी आलू की फसल में झुलसा रोग और सरसों में लाही एवं आरा मक्खी कीट लगने की संभावना अधिक बढ़ जाती है. ऐसे में कृषि विभाग, सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग बिहार ने किसानों के लिए जरूरी सलाह जारी की है. ताकि किसान रोग एवं कीटों से आलू और सरसों फसल का बचाव सरलता से कर सके और फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकें.  

बिहार कृषि विभाग ने राज्य के किसानों के लिए आलू एवं सरसों फसल में कीट के उचित प्रबंधन / नियंत्रण हेतु निम्न प्रकार से उपाय बताए हैं-

आलू में झुलसा रोग दो तरह के पाए जाते हैं

  1. पिछात झुलसा रोग

  2. अगात झुलसा रोग

पिछात झुलसा-

कृषि विभाग, सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग बिहार के मुताबिक, आलू में यह रोग फाइटोपथोरा इन्फेस्टान्स नामक फफूंद के कारण होता है. वायुमंडल का तापमान 10 से 19° सेल्सियस रहने पर आलू में पिछात झुलसा रोग के लिए उपयुक्त वातावरण होता है. किसानों के द्वारा इस रोग को 'आफत' भी कहा जाता है. फसल में रोग का संक्रमण रहने पर और वर्षा हो जाने पर बहुत कम समय में यह रोग फसल को बर्बाद कर देता है. इस रोग से आलू की पत्तियां किनारे से सूखती है. सूखे भाग को दो उंगलियों के बीच रखकर रगड़ने से खर खर की आवाज होती है.

प्रबंधन - फसल की सुरक्षा के लिए किसान 10-15 दिन के अंतराल पर मैंकोजेब 57% घु०चू० 2 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. संक्रमित फसल में मैंकोजेब एवं मेटालैक्सिल अथवा कार्बेंडाजिम और मैंकोजेब संयुक्त उत्पाद का 2.5 ग्राम प्रति लीटर या 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.

अगात झुलसा -

आलू में यह रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद के कारण होता है. प्रायः निचली पत्तियों पर गोलाकार धब्बे बनते हैं जिसके भीतर में कॉन्सन्ट्रिक रिंग बना होता है. धब्बा युक्त पत्ती पीली पड़कर सूख जाती है. बिहार राज्य में यह रोग देर से लगता है, जबकि ठंडे प्रदेशों में इस फफूंद के उपयुक्त वातावरण पहले बनता है.

प्रबंधन : फसल में इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या मैंकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.

सरसों के प्रमुख कीट एवं उनका प्रबंधन:-

लाही (Aphid)

यह सरसों का एक प्रमुख कीट है. लाही कीट पीला, हरा या काले भूरे रंग का मुलायम, पंखयुक्त या पंखहीन कीट होता है. इस कीट का वयस्क और शिशु- कीट दोनों ही मुलायम पत्तियों, टहनियों, तनों, पुष्प क्रमों तथा फलियों से रस चुसते हैं. इसके आक्रान्त पत्तियां मुड़ जाती है. पुष्पक्रम पर आक्रमण की दशा में फलियां नहीं बन पाती है. यह मधु जैसा पदार्थ का त्याग भी करता है, जिस पर काले फफूंद उग जाते हैं. इसके कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है. इसकी मादा बिना नर से मिले शिशु कीट पैदा करती है, जो कि 5-6 दिनों में परिपक्व होकर प्रजनन शुरू कर देते हैं. इस प्रकार, इसके आक्रमण की अधिकता होने पर पूरा पौधा ही लाही कीट से ढका दिखाई देता है.

प्रबंधन:

(1) फसल की बुआई समय पर करनी चाहिए.

(2) नेत्रजनीय उर्वरक का प्रयोग अनुशंसित मात्रा में करें.

(3) खेत को खरपतवार से मुक्त रखें.

(4) खेत में प्रति हेक्टेयर 10 पीला फन्दा का प्रयोग करें.

(5) नीम आधारित कीटनाशक एजाडिरेक्टिन 1500 पी०पी०एम० का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए.

(6) प्रकोप अधिक होने पर रासायनिक कीटनाशक के रूप में ऑक्सी डेमेटान मिथाइल 25 ई०सी० एक मिली प्रति लीटर अथवा थायोमेथाक्साम 25% डब्लू०जी०@ 1 ग्राम प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस०एल० का 1 मिली० प्रति 3 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.

आरा मक्खी (Sawfly)

यह सरसों के वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था का एक प्रमुख कीट है. वयस्क कीट नारंगी पीले रंग तथा काले सिर वाले होते हैं. इसकी मादा का ओभिपोजिटर, आरी के समान होता है, इसलिए इसे आरा मक्खी कहते हैं. यह पत्तियों के किनारे पर अंडा देती है, जिससे 3-5 दिनों में पिल्लू निकल आते हैं. इसके पिल्लू पत्तियों को काटकर क्षति पहुंचाते हैं.

प्रबंधन:

(1) फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी में उपस्थित इस कीट का प्यूपा मिट्टी से बाहर आ जाये तथा नष्ट हो जाये.

(2) नीम आधारित कीटनाशक एजाडिरेक्टिन 1500 पी०पी०एम० का 5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए.

(3) रासायनिक कीटनाशकों में ऐनवेलरेट 0.4% डी०पी० अथवा मेलाथियान 5% घूल का 25 किग्रा प्रति हे० की दर से भुरकाव करना चाहिए अथवा ऑक्सीडेमाटॉन मिथाईल 25 ई०सी० का 1 मिली० प्रति लीटर की दर के हिसाब से फसल पर छिड़काव करें.

English Summary: Potato and mustard crop measures to protect the crop bihar Agricultural advice Scorching disease krishi salah crop protection farming Published on: 14 January 2024, 11:18 AM IST

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