नीम शब्द की उत्पति निम्बा से हुई है, जिसका अर्थ बीमारी से छुटकारा पाना है. नीम की पत्ती, फूल, फल, जड़ व तने की छाल औषधि महत्व की होती हैं. पत्ती में निम्बिन,निम्बिनीन, निम्बेडिअल एवं क्वैसेंटिन, बीज एवं फल में गेडमिन, एजाडेरोन, निम्बिओल, एजाडिरेक्टिन यौगिक होते हैं.
नीम से प्राप्त रसायनों के द्वारा विभिन्न कीटों का नियंत्रण वैज्ञानिक दृष्टिकोण में उचित पाया गया है. इन रसायनों का उपयोग समन्वित कीट नियंत्रण (आई. पी. एम.) कार्यक्रम का एक प्रमुख घटक है. व्यावसायिक तौर पर इसके विभिन्न उत्पाद बाजार में उपलब्ध हो रहे हैं किन्तु किसान स्वयं भी इन रयायनों को तैयार कर कीड़ों के नियंत्रण हेतु प्रयोग कर सकते हैं.
कीट नियंत्रण:-
लिमोनायडस के कीट नियंत्रण पर प्रभावकारी असर पाए गए हैं. नीम रसायन के छिड़काव से कीटों के दुष्प्रभाव को रोका जा सकता है. इन रसायनों के उपयोग से पर्यावरण दूशित होने का खतरा कम हो जाता है. नीम रसायन कीटों को निम्नानुसार प्रभावित करता है-
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जिन पौधों पर छिड़काव किया गया है उसे कीट नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
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कीट की भोजन नली में अवरोध उत्पन्न हो जाता है जिससे उनको भोजन निगलने में कठिनाई होती हैं.
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कीटों का जीवन चक्र प्रभावित होता है जिससे कीट धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं.
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कीटों में अण्डे देने की क्षमता कम हो जाती है.
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कीटों में लैगिंक प्रक्रिया रुक जाती है.
कृमि नियंत्रण:-
कृमियों से होने वाले नुकसान की रोकथाम कृमिनाशकों से महंगी पड़ती है. यह मानव स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है.
नीम के प्रयोग से अंडे से लार्वा का निकलना एवं विकसित होना प्रभावित होता है. अतः नीम तेल एवं नीम खली के उपयोग से कृमियों की संख्या घटाई जा सकती है.
जलीय कीट नियंत्रणः-
जलीय कीट हेटेरोसिपीरस लूजोनेसिस, नील हरित शैवाल को खाकर नष्ट करते हैं. नील हरित शैवाल से वायुमण्डलीय नाइट्रोजन यौगिक के रुप में बदल कर खेतों की उर्वरता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है. नीम का प्रयोग इस कीट की रोकथाम में प्रभावशाली पाया गया है.
फफूंद नियंत्रण:-
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फफूंदों का प्रयोग फसलों पर विभिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न होता है. नीम बीज तेल का उपयोग, गेरुआ एवं भभूतिया रोग पर करने से इनकी रोकथाम में काफी हद तक सफलता मिलती है.
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नीम खली के मिट्टी में उपयोग से राइजोक्टोनिया सोलनी, सकेलरोक्टीयम रोलस्की व स्कलेरोटियोरम स्पी. आदि फफूंद के कुप्रभाव से बीज संरक्षित हो जाता है.
पौध विषाणु नियंत्रण:-
विषाणु पौधों को अत्याधिक नुकसान पहुंचाते हैं. पौधे में विषाणु फैलाने में कुछ कीट भी सहायक होते हैं. इन कीटों पर नीम द्वारा नियंत्रण किया जा सकता है. विषाणु के नियंत्रण पर आर्थिक सफलता नीम के प्रयोग से सर्वप्रथम पाई गई है.
खेती के अलावा नीम से मनुष्य में कैंसर ठीक हो जाता है. खाज खुजली, चर्म रोग, पीलिया, रक्ताल्पता, बुखार, हृदय रोग को रोकने में भी मददकारी नहीं है.
खेती में नीमेक्स नामक जैविक नीम खाद एवं कीट निवारक पदार्थ भी प्रयोग होता है. जिससे मृदा की उत्पादन क्षमता में बढोत्तरी, विष रहित, स्वास्थ्यवर्धक “जैविक भोजन” उत्पादित करता है. इसकी मात्रा धान्य, दलहनी, तिलहनी फसलो में 125 से 150 किग्रा/ हैक्टेयर बुवाई से पूर्व डालने से लाभ मिलता है. फल वृक्षों में 500 से 1000 ग्राम प्रति वृक्ष प्रति छमाही डालने से भी फायदा होता हैं.
निम्बोली सत् (एनएसकेई) बनाने की विधि
निम्बोली को घर में इस्तेमाल होने वाले बिजली से चलने वाले मिक्सर/ग्राइंडर से या चूने के लेप और मुसली का प्रयोग करते हुए बारीक कूट लें. निम्बोली से छिलके को अलग करने के लिए ओसाई करें. कूटी गई निम्बोली को 18 जालियों वाली छलनी से छान लें. छानने के बाद इस पाउडर को 100 ग्रा.: 30 मि.लि. के अनुपात में पानी के साथ मिला लें. फिर सहयोजक (साबुन/डिटर्जेन्ट पाउडर) को इस मिश्रण में प्रत्येक 100 ग्रा. के निम्बोली पाउडर में 5 मि.लि./ग्रा. सहयोजक के अनुपात में मिला दें. इस मिश्रण को रातभर रखें. सुबह इसे हिलाते हुए मलमल के कपड़े से छान लें. मलमल के कपड़े पर बचे अवकाष के माध्यम से इतना पानी गुजारा जाना चाहिए कि छान में निम्बौली के पाउडर जल का अनुपात 2 लिटर पानी में 100 ग्राम पाउडर रह जाए. इस छान को फिर हिलाएं जिससे कि एनएसकेई का क्रीमी विक्षेपण प्राप्त हो सके जिससे कि छिड़काव किया जा सकता है. छिड़काव शाम के समय किया जाना चाहिए जबकि यूवी किरणों की तीव्रता कम होती है और पूरी पत्तियों पर छिड़काव किया जाना अनिवार्य है.
निम्बोली बारीक कूट लें
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कपड़े में बांधकर रातभर पानी में भिगो दें
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सुबह इस घोल को बारीक कपड़े से छान लें
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इस घोल का 5 प्रतिषत की दर से छिड़काव करें
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एक हैक्टेयर के लिए 25 कि.ग्रा. निम्बोली
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500 लिटर पानी $ 5 कि.ग्रा. साबुन/सर्फ
लेखक: डा. प्रवीण दादासाहेब माने एवं डा. पंचम कुमार सिंह
वरिष्ठ वैज्ञानिक,कीट विज्ञान विभाग
नालन्दा उद्यान महाविधालय, नूरसराय
ईमेल: [email protected]
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