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कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी एवं प्रमुख कीटों का कारगर उपाय

सफेद सोने के नाम से प्रसिद्ध कपास एक प्रमुख रेशा फसल है. इसमें नैचुरल फाइबर पाया जाता है, जिसके सहारे कपड़े तैयार किया जाता है. देश के विभिन्न हिस्सों में कपास की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इसकी खेती देश के सिंचित और असिंचित क्षेत्र में की जा सकती है. तो आइए जानते हैं कपास की खेती की पूरी जानकारी-

श्याम दांगी
Cotton Cultivation
Cotton Cultivation

सफेद सोने के नाम से प्रसिद्ध कपास एक प्रमुख रेशा फसल है. इसमें नैचुरल फाइबर पाया जाता  है, जिसके सहारे कपड़े तैयार किया जाता है. देश के विभिन्न हिस्सों में कपास की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इसकी खेती देश के सिंचित और असिंचित क्षेत्र में की जा सकती है. तो आइए जानते हैं कपास की खेती की पूरी जानकारी-

कपास की खेती के लिए जलवायु

कपास की खेती देश के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में की जाती है. इसकी खेती के लिए निम्नतम तापमान 21 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस उत्तम माना जाता है.

कपास की खेती के लिए मिट्टी

इसकी खेती के लिए गहरी काली मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. वहीं मिट्टी में जीवांश की पर्याप्त मात्रा हो तथा जलनिकासी की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए.

कपास की खेती के लिए प्रमुख किस्में

कपास की प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं -

बीटी कपास की किस्में- बीजी-1, बीजी-2.

कपास की संकर किस्में- डीसीएच 32, एच-8, जी कॉट हाई. 10, जेकेएच-1, जेकेएच-3, आरसीएच 2 बीटी, बन्नी बीटी, डब्ल्यू एच एच 09बीटी.

कपास की उन्नत किस्में- जेके-4, जेके-5 तथा जवाहर ताप्ती आदि.

कपास की खेती के लिए बुवाई का समय तथा विधि

वैसे तो कपास की बुवाई वर्षाकाल में मानसून आने पर की जाती है, लेकिन यदि आपके पास सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, तो आप मई महीने में कपास की बुवाई कर सकते हैं. कपास की खेती से पहले खेत को रोटावेटर या कल्टीवेटर की मदद से मिट्टी को भुरभुरा बना लिया जाता है. उन्नत प्रजातियों का बीज प्रति हेक्टेयर 2 से 3 किलोग्राम और संकर तथा बीटी कपास की किस्मों का बीज प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम पर्याप्त होता है. उन्नत प्रजातियों में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखी जाती है. जबकि संकर और बीटी किस्म में कतार से कतार की दूरी 90 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 120 सेंटीमीटर रखी जाती है. सघन खेती के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखी जाती है.

कपास की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

कपास की उन्नत किस्मों की अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 80-120 किलोग्राम, फास्फोरस 40-60 किलोग्राम, पोटाश 20-30 किलोग्राम तथा सल्फर 25 किलोग्राम देना चाहिए. जबकि संकर व बीटी किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 150 किलोग्राम, फास्फोरस 75 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम एवं सल्फर 25 किलोग्राम पर्याप्त होता है. सल्फर की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा नाइट्रोजन की 15 फीसदी मात्रा बुवाई के समय तथा बाकी मात्रा ( तीन बराबर भागों में) 30, 60 तथा 90 दिन के अंतराल पर देना चाहिए. वहीं फास्फोरस एवं पोटाश की आधी मात्रा बुआई के समय तथा आधी मात्रा 60 दिन के बाद देना चाहिए. अच्छी पैदावार के लिए 7 से 10 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर अंतिम जुताई के समय डालना चाहिए.

कपास की खेती के लिए निराई गुड़ाई एवं सिंचाई

पहली निराई-गुड़ाई अंकुरण के 15 से 20 दिनों के बाद करना चाहिए. वहीं यदि फसल में सिंचाई की जरूरत पड़ रही है तो हल्की सिंचाई करना चाहिए. इससे कीट एवं रोगों का असर कम रहता है एवं अच्छी पैदावार होती है. 

कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट  

गुलाबी सुंडी- कपास की फसल के लिए अगर कोई सबसे बड़ा दुश्मन कीट है, तो वह गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) है. जो अपना पूरा जीवन इसके पौधे पर बिताता है. यह कपास के छोटे पौधे, कली व फूल को नुकसान पहुंचाकर फसल को नष्ट कर देता है. इसका प्रकोप हर साल  होता है.

प्रबंधन- इसके नियंत्रण के लिए कोरोमंडल के कीटनाशक फेन्डाल (Phendal 50 ई.सी.) का छिड़काव करें. फेन्डाल एक बहुआयामी कीटनाशक है. यह कीड़े पर लंबे समय तक नियंत्रण रखता है। इसके अलावा, इसमें तेज तीखी गंध होती है, जो वयस्क कीट को अंडा देने से रोकती है. फेन्डाल के बारे में अधिक जानकारी के लिए  दिए गए लिंक https://bit.ly/3gU5Wt0 पर क्लिक करें. 

सफेद मक्खी- यह कीट दिखने में पीले रंग का होता है, लेकिन इसका शरीर सफेद मोम जैसे पाउडर से ढंका होता है. यह पौधे की पत्तियों पर एक चिपचिपा तरल पदार्थ छोड़ता है एवं पत्तियों का रस चूसता है.

प्रबंधन- सफेद मक्खी कीट प्रबंधन के लिए कोरोमंडल का फिनियो (Finio) कीटनाशक का प्रयोग करें. फिनियो में दो अनोखी कीटनाशकों की जोड़ी है, जोकि दो विभिन्न कार्यशैली से काम करते हैं. इसके अलावा, यह पाइटोटॉनिक प्रभाव से युक्त है, जिसमें कीटों को तुरंत और लंबे समय तक समाप्त करने की क्षमता है. यह सफेद मक्खी के सभी चरणों जैसे- अंड़ा, निम्फ, वयस्क को एक बार में समाधान उपलब्ध कराता है. इसकी प्रति एकड़ 400 से 500 मिली की मात्रा की जरुरत पड़ती है. फिनियो के बारे में अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक https://bit.ly/3x0TyNv   पर क्लिक करें.

माहू (एफिड) कीट - यह बेहद कोमल कीट होता है जो दिखने में मटमैले रंग का होता है. माहू कीट कपास की पत्तियों को खुरचकर उसका रस चूस लेता है. इसके बाद पत्तियों पर एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है.

प्रबंधन- इस कीट की रोकथाम के लिए भी कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक का छिड़काव करें.  यह कीटनाशक कीटों को तुरंत और लंबे समय तक नष्ट करने में कारगर है. फिनियो के बारे में अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक https://bit.ly/3x0TyNv  पर क्लिक करें.

तेला कीट - काले रंग का यह कीट पौधे की पत्तियों को खुरचकर उसका रस पी जाता है.

प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक का प्रयोग करें. फिनियो के बारे में अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक https://bit.ly/3x0TyNv   पर क्लिक करें.

थ्रिप्स- यह रस चूसक कीट है जो कपास की फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है.

प्रबंधन- थ्रिप्स की रोकथाम के लिए भी कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक छिड़काव कारगर है. फिनियो के बारे में अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक https://bit.ly/3x0TyNv  पर क्लिक करें.

हरा मच्छर- यह दिखने में पांच भुजाकर और पीले रंग का होता है. इस कीट के आगे के पंखों पर एक काला धब्बा पाया जाता है. जो कपास की शिशु एवं वयस्क अवस्था में पत्तियों का रस चुसता है. जिससे पत्तियां पीली पड़कर सुखने लगती है.

प्रबंधन- इस कीट के प्रबंधन के लिए पूरे खेत में प्रति एकड़ 10 पीले प्रपंच लगाना चाहिए. इसके अलावा 5 मिली.नीम तेल को 1 मिली टिनोपाल या सेन्डोविट को प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करें.

मिलीगब - इस प्रजाति के कीट की मादा पंख विहीन होती है. वहीं इसका शरीर सफेद पाउडर से ढका होता है. हालांकि इस कीट के शरीर पर कालेरंग के पंख होते हैं. तो शाखाओं, तने, फूल पूड़ी, पर्णवृतों तथा घेटों का रस चूस जाता है. इसके बाद इस मीठा चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है. 

कीट प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए लिए भी पूरे खेत के आसपास पिले प्रपंच लगाए.

कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग

जीवाणु झुलसा एवं कोणीय धब्बा रोग-

यह रोग पौधे के वायुवीय भागों को नुकसान पहुंचाता है. जहां छोटे गोल धब्बे बन जाते है जो बाद पीले पड़ जाते हैं. यह कपास की सहपत्तियों और घेटों को भी नुकसान पहुंचाता है. इस रोग के कारण घेटा समय से पहले ही खुल जाता है जिससे रेशा खराब हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशक का प्रयोग करें. 

मायरोथीसियम पत्ती धब्बा रोग- इस रोग के कारण पत्तियां पर हल्के और बाद में बड़े भूरे धब्बे बन जाते हैं, इसके बाद पत्तियां टूटकर नीचे गिर जाती है. इससे 25 से 30 फीसदी उत्पादन में कमी आती है. रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशक का प्रयोग करें.  

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग- मौसम में अत्यधिक नमी के समय पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बनते हैं. जिनके कारण आखिर में पत्तियां टूटकर गिर जाती है. ठंडे में मौसम में इस रोग उग्रता अधिक होती है. इसकी रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशक का प्रयोग करें. 

पौध अंगमारी रोग- यह रोग पौधे की मूसला जड़ों को छोड़कर मूल तंतूओं को नुकसान पहुंचाता है. जिसके कारण पौधा मुरझा जाता है. रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशक का प्रयोग करें.  

कपास की खेती से उत्पादन

कपास की उन्नत किस्मों की चुनाई नवंबर से फरवरी, हाइब्रिड किस्मों की अक्टूबर से जनवरी एवं बीटी किस्मों की अक्टूबर से फरवरी तक की जाती है. उत्पादन की बात करें तो उन्नत किस्में प्रति हेक्टेयर 10 से 15 क्विंटल, संकर किस्मों की 13 से 18 क्विंटल एवं बीटी किस्मों की 15 से 20 क्विंटल होती है.    

 

English Summary: pest and disease control in cotton Published on: 26 June 2021, 01:27 PM IST

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