आज के समय में जैविक खेती किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है. रासायनिक उर्वरकों के लगातार उपयोग से मिट्टी की उर्वरता घट रही है और साथ ही फसलों की गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है. इसी समस्या के समाधान के लिए कृषि विशेषज्ञ लगातार किसानों को प्राकृतिक विकल्प अपनाने की सलाह दे रहे हैं. वर्मी कम्पोस्ट ऐसी ही प्राकृतिक विधि है, जो मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारती है और फसलों की पैदावार बढ़ाने में मदद करती है. यह विधि पूरी तरह से प्राकृतिक, सस्ती और सुरक्षित है. वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करने से न सिर्फ मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, बल्कि फसल की वृद्धि और स्वास्थ्य भी बेहतर होता है.
किसान भाई, यदि आप इस विधि को अपनाते हैं, तो आप अपनी खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन पा सकते हैं और रासायनिक उर्वरकों की लागत बचा सकते हैं. इसके अलावा, जैविक खेती की मांग बाजार में लगातार बढ़ रही है, जिससे आपको अपनी फसलों का बेहतर मूल्य भी मिल सकता है.
कितने दिनों में तैयार होता है वर्मी कम्पोस्ट?
वर्मी कम्पोस्ट की पारंपरिक विधि में 90 से 120 दिनों का समय लगता था, लेकिन नई आधुनिक विधि से यह खाद केवल 45 दिनों में तैयार हो जाती है. इस तकनीक में गोबर, सूखी पत्तियां और अन्य जैविक कचरे को विशेष ‘रेड वर्म’ केंचुओं की मदद से उच्च गुणवत्ता वाली खाद में बदला जाता है.
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की सरल प्रक्रिया
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स्थान का चयन: छायादार और समतल जगह चुनें. धूप कम और नमी बनी रहने वाली जगह केंचुओं के लिए सबसे उपयुक्त होती है.
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आधार परत डालना: जमीन पर रेत या बालू की पतली परत बिछाएं. यह अतिरिक्त नमी संतुलित रखती है और पानी की निकासी में मदद करती है.
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जैविक कचरा डालें: सड़ा हुआ गोबर, गिरे पत्ते और अन्य जैविक कचरे की परत डालें. यही मिश्रण आगे चलकर केंचुओं का भोजन बनेगा.
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केंचुए डालें: 1 क्विंटल जैविक मिश्रण के लिए लगभग 1 किलो रेड वर्म पर्याप्त होता है.
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नमी बनाए रखें: खाद में 50-60% नमी बनाए रखना जरूरी है. जूट की बोरियों से ढकें और प्रतिदिन पानी का छिड़काव करें.
तैयार खाद की पहचान
करीब 45 दिनों में वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाती है. इसकी पहचान इस प्रकार की जाती है:
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गहरा रंग
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महीन दानेदार बनावट
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बिना किसी बदबू के
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उच्च गुणवत्ता वाला, रासायनिक खाद का बेहतरीन विकल्प
वर्मी कम्पोस्ट के लाभ
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मिट्टी की उर्वरता और संरचना में सुधार
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जल धारण क्षमता में वृद्धि
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मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बढ़ना
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पौधों की जड़ों का बेहतर विकास
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फसल की पैदावार और गुणवत्ता में वृद्धि
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