किसान बड़ी उम्मीदों के साथ अपनी फसल तैयार करता है, मगर कीट के प्रकोप से कई फसल बर्बाद होने लगती हैं. ऐसा ही कुछ भिंडी की फसल में देखने को मिलता है. इसमें लगने वाले रोग से फसल बर्बाद हो जाती है. तो आइए जानते हैं इसमें लगने वाले रोग और उसके प्रबंधन के बारे में.
भिंडी की फसल में लगने वाले कीट और उनका नियंत्रण
तना और फल छेदक
भिंडी की फसल में लगने वाला एक प्रमुख रोग तना और फल छेदक है. कीट के कारण टहनियों में छेद होने लगते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रभावित टहनियां गिर जाती हैं. इसके बाद फलों के अंदर लार्वा आ जाता है. इसके लिए ग्रसित भागों को नष्ट कर देना आवश्यक है. यदि कीटों की संख्या अधिक है, तो 1 मि.ली. स्पिनोसेड को प्रति लीटर पानी या 18.5% एस.सी. क्लोरैंट्रानिलिप्रोल को पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
भुरभुरी फफूंदी
नई पत्तियों और फलों पर सफेद चूर्ण बड़ी मात्रा में देखने को मिलता है. इसका प्रकोर अधिक होने पर समय से पहले पत्ते झड़ जाते हैं और फल गिर जाते हैं. फलों की गुणवत्ता खराब हो जाती है और वे आकार में छोटे रह जाते हैं.
यदि खेत में इसका हमला दिखे तो 25 ग्राम गीले टेबल सल्फर को 10 लीटर पानी में या 5 मि.ली. डाइनोकैप को 10 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर 4 बार छिड़काव करें.
एफिड
एफिड का सबसे अधिक असर नई पत्तियों और फलों पर देखा जा सकता है, जो कि पौधों का रस चूसते हैं, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है. इसका प्रकोप अधिक होने पर, नई पत्तियां मुड़ जाती हैं. एफिड से शहद जैसा पदार्थ स्रावित होता है और प्रभावित भागों पर काली फफूंद जम जाती है.
संक्रमण का पता चलते ही प्रभावित भागों को नष्ट कर दें. 300 मिली को डाइमेथोएट 150 लीटर पानी में बुवाई के 20 से 35 दिन बाद छिड़क दें. यदि आवश्यक हो तो दोबारा दोहराएं.
फफोला भृंग
भृंग पराग, पंखुड़ी और फूलों की कलियों को खाता है. यदि इसका हमला दिखे तो फूल पत्तों के ग्रसित भाग को नष्ट कर दें. हमला अधिक दिखाई देने पर 800 ग्राम कार्बरिल को 150 लीटर पानी में या 400 मि.ली. मैलाथियान को 150 लीटर पानी में या फिर 80 मि.ली. साइपरमेथ्रिन को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
येलो वेन मोजैक वायरस
इस रोग के कारण शिरों में पीलापन आने लगता है. जिसके कारण पौधे की वृद्धि रूक जाती है और पौधे बौने रह जाते हैं. यह रोग इतना खतरनाक होता है कि इससे उपज में 80-90% तक की हानि होती है. यह रोग सफेद मक्खी एवं लीफ होपर के कारण फैलता है. इसे रोकने के लिए प्रतिरोधी किस्म का इस्तेमाल करना चाहिए तथा रोगग्रस्त पौधों को खेत से नष्ट कर देना चाहिए. सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 300 मि.ली. डाइमेथोएट को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट
पत्तियों पर भूरे और लाल किनारों के धब्बे दिखाई देते हैं. इस संक्रमण से बचाव के लिए पहले ही थीरम से बीजोपचार करें. यदि खेत में रोग का हमला दिखे तो 4 ग्राम मैंकोजेब प्रति लीटर या 2 ग्राम कार्बेनडाज़ाइम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
जड़ सड़न
इस रोग के हमले के बाद प्रभावित जड़ें गहरे भूरे रंग की हो जाती हैं और गंभीर संक्रमण होने पर पौधे मर जाते हैं. इसके लिए किसानों को मोनोक्रॉपिंग से बचना चाहिए और फसल चक्र का पालन करना चाहिए. बुवाई से पहले 2.5 ग्राम कार्बेनडाज़िम को प्रति किलो बीज का उपचार के रूप में प्रयोग में लाएं.
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मुरझाना
अक्सर देखा जाता है कि पौधे शुरुआती अवस्था में मुरझाने शुरू हो जाते हैं और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं. जिससे किसानों को काफी नुकसान पहुंचता है.
यदि इसका हमला दिखे तो जड़ क्षेत्र के आसपास 10 ग्राम कार्बेनडाज़िम को 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
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