छत्तीसगढ़ में अन्य फसलों की तुलना में मसाले की खेती का रकबा बेहद ही कम है. केवल मिर्च को ही यहां ज्यादा हेक्टेयर में उगाया जाता है. वहीं पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ हल्दी 2 की नई किस्म को तैयार कर लिया है जोकि पूर्व में विकसित छत्तीसगढ़ हल्दी -1 से गुणवत्ता की दृष्टिकोण से काफी बेहतर पाई गई है. नई किस्म विकास क्लोनल सलेक्शन पद्धति से तार किया गया है. यह प्रजाति छ्ततीसगढ़ के ऊंचे भाग के लिए काफी उपयुक्त मानी गई है. यहां के अनुसंधान एवं पादप प्रजनन विभाग के कृषि वैज्ञानिकों की माने तो इस नई प्रजाति में 30 फीसद ज्यादा उपज पाई गई है. इसमें 27 फीसदी हल्दी गुणवत्ता वाली पाई जाती है.
215 दिनों में पककर तैयार होती
छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली हल्दी 2 की किस्म के पौधे ऊंचे और पत्तियां चौड़ी होती है. इसके लंबे पतले राइजोम फिंगर बनते है. यह मध्यम किस्म के होते है साथ ही यह 210 से 215 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इससे पहले विकसित छत्तीसगढ़ हल्दी से 1 नई विकसित किस्म गुणवत्ता की दृष्टिकोण से अच्छी होती है.इस तरह की किस्म में4.1 प्रतिशत कुरकुमिन, 6.3 फीसद तेल, 11.54 फीसद ओलियोरेसिन पाया जाता है.
20 से 22 टन प्रति हेक्टेयर पैदावार
इस हल्दी की किस्म की औसत उपज 20 से 22 टन प्रति हेक्टेयर आता है. यह तुलनात्मक स्थानीय किस्म छत्तीसगढ़ी हल्दी 1 और राष्ट्रीय तुलनात्मक किस्म बीएसआर एवं प्रतिमा से 30 फीसद ज्यादा है. इस किस्म में 27 फीसद तक हल्दी पाई गई है.
दोमट मिट्टी में बेहतर उत्पादन
हल्दी की यह किस्म कोलेटोट्राइकम पर्ण धब्बा, टेफरिना पत्ता झुलसा रोग, सहनशील जोम स्केल कीट के लिए आंशिक प्रतिरोधी है. इस तरह की किस्म के कंद काफी बेहतर चमक वाले,सुडौल लंबी गांठे, अंदर से गहरे नीले रंग की ही होती है. इस किस्म की खेती के लिए भूमि जीवांश युक्त 6.0 से 6.5 पीएच मान की जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी अच्छा उत्पादन लेने में सहायक होती है.
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