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नींबू वर्गीय पौधों का सूत्रकृमि तथा इसकी रोकथाम

यह सूत्रकृमि सामान्यतः सभी जगहों जहां पर भी नींबू जाति के पौधे उगाए जाते हैं, वहां पाया जाता है. यह जड़ों पर खाने वाला अर्ध अन्तः परजीवी अर्थात शरीर का कुछ भाग अंदर तथा कुछ जड़ के बाहर रहकर खाने वाला सूत्रकृमि है.

KJ Staff
नींबू वर्गीय पौधों का सूत्रकृमि
नींबू वर्गीय पौधों का सूत्रकृमि

सिट्रस निमाटोड अर्थात नींबूवर्गीय पौधों के सूत्रकृमि (टाइलैंकुलस सैमिपैनिट्रांस ) के कारण नींबू वर्गीय पौधों में मंद अपक्षय (पौधे का ऊपर से निचे की ओर सूखना) नामक रोग होता है. यह सूत्रकृमि नींबू जाति के सभी पौधों जैसे कि संतरा, माल्टा, ग्रेप फ्रूट, किन्नू, नींबू आदि को नुकसान करता है.

यह सूत्रकृमि सामान्यतः सभी जगहों जहां पर भी नींबू जाति के पौधे उगाए जाते हैं, वहां पाया जाता है. यह जड़ों पर खाने वाला अर्ध अन्तः परजीवी अर्थात शरीर का कुछ भाग अंदर तथा कुछ जड़ के बाहर रहकर खाने वाला सूत्रकृमि है. यह सूत्रकृमि विभिन्न प्रकार की मृदा सरंचना में रहने की क्षमता रखता है. ताजा सर्वेक्षण में (2020-21) सिरसा, फतेहाबाद व हिसार जिलों में इस सूत्रकृमि का प्रकोप 51 प्रतिशत किन्नू के बागों में पाया गया.

सूत्रकृमि का जीवन चक्र

यह जड़ों पर खाने वाला अर्धअंत: परजीवी सूत्रकृमि है. दूसरी अवस्था के लार्वे जमीन से भोजन शोषित करने वाली पतली जड़ों पर आक्रमण करके आंशिक रूप से इनके अंदर घुस जाते हैं. लार्वे तीन बार निर्मोचन की प्रकिया करके वयस्क बन जाते हैं. नर बनने वाले लार्वे बिना ही कुछ खाये जमीन के अंदर ही 7 दिन में प्रौढ़ बन जाते हैं. ये सर्पाकार के होते हैं और इनका रोग से कोई संबंध नहीं होता. सामान्य तौर पर सूत्रकृमि का अग्र भाग पौधे के उत्तक में जगह बना लेता है. मादा बनने वाले लार्वे आंशिक रूप से जड़ों के अंदर घुसकर स्थिर हो जाते हैं तथा मादा सूत्रकृमि का पिछला भाग जड़ से बाहर ही रहकर मोटा हो जाता है. वयस्क मादा एक श्लेषी पदार्थ उत्पन्न करती है, जिसमें यह अंडे जमा करती है . आमतौर पर एक मादा 40-60 अंडे देने की क्षमता रखती है. अनुकूल तापमान पर (25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड पर) सूत्रकृमि का जीवनचक्र 6-8 सप्ताह में पूरा हो जाता है.

रोग ग्रस्त पौधों के लक्षण

  1. इस रोग का असर प्राय: 8-10 साल पुराने पौधों में देखने को मिलता है.

  2. सूत्रकृमि से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले हो जाते हैं.

  3. इसके प्रकोप से पौधा ऊपर से नीचे की ओर धीरे-धीरे सूखना शुरू कर देता है जिसे मंद अपक्षय (slow decline) रोग कहा जाता है.

  4. रोगग्रस्त पौधों की जड़ें स्वस्थ जड़ों की अपेक्षा छोटी तथा कुछ मोटी सी दिखाई देती हैं.

  5. रोगग्रस्त पौधों की जड़ें मिट्टी के कण चिपके होने के कारण मटमैली भी दिखती हैं.

  6. अत्यधिक प्रभावित जड़ों की छाल गल सी जाती है और आसानी से उत्तर जाती है.

  7. रोग ग्रस्त पौधों पर फल कम तथा छोटे आकार के लगते है, जिससे उपज बहुत घट जाती है और अंत में पौधा पूरी तरह सूख जाता है.

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रोकथाम

  1. स्वस्थ (सूत्रकृमि रहित) पौध का उपयोग करें, अतः सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पौधशाला से ही पौध खरीदें.

  2. नींबूवर्गीय पौधों की नर्सरी सूत्रकृमि से रहित मिट्टी में व पहले से स्थापित नींबूवर्गीय पौधों के बाग़ से दूर उगायें.

  3. पौधों के तनो के आसपास 9 वर्गमीटर क्षेत्र में कार्बोफ्यूरान (फ्यूराडान 3जी) दवाई 13 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से डालें.

  4. नीम की खली एक किलोग्राम प्रति पौधा तथा फ्यूराडान 3जी दवाई 7 ग्राम प्रति वर्गमीटर मिट्टी में मिलाकार पर्याप्त पानी लगाएं. खली व दवाई का प्रयोग फूल आने से पहले करना चाहिए.

लेखक का नाम: 

सुजाता, लोचन शर्मा व रामबीर सिंह कंवर, सूत्रकृमि विज्ञान विभाग. चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार.

English Summary: Nematodes of lemon plants and its prevention Published on: 18 May 2022, 09:20 PM IST

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