भारत वर्ष में लगभग 1.2 लाख टन प्रति वर्ष खुम्ब का उत्पादन होता है. इसमें 80 प्रतिशत पैदावार केवल सफ़ेद बटन खुम्ब की है. यह उत्पादन विश्व की कुल पैदावार का एक प्रतिशत भी नहींहै. हालांकि पिछले चार दशकों में देश में 20 गुणा खुम्ब उत्पादन बढ़ा है किन्तु लोगों में इसकी पौष्टिकता और औषधीय गुणों की जानकारी बढ़ने के साथ ही भविष्य में इसके उत्पादन बढ़ने की अपार संभावनाएं हैं.
देश में केवल चार तरह की खुम्बों का उत्पादन किया जाता है जैसे सफ़ेद बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, मिल्कि/दूधिया मशरूम और धान के पुवाल की मशरूम. पूरे विश्व का लगभग 90 प्रतिशत खुम्ब उत्पादन केवल छह खुम्बों से होता है और केवल चीन में 60 तरह की खुम्बों का उत्पादन किया जाता है और विश्व की कुल खुम्ब पैदावार का 80 प्रतिशत उत्पादन केवल चीन में होता है.भारत में खुम्ब को पैदा करने के लिए केवल 0.3 प्रतिशत कृषि अवशेषों का इस्तेमाल किया जा रहा है और ज़्यादातर कृषि अवशेषों का प्रबंधन एक चिन्ता का विषय है. कृषि अवशेषों को जलाना एक गंभीर समस्या है जिससे वातावरण प्रदूषित होने के कारण जीवों में कई गंभीर बीमारियों को निमंत्रण देता है.
मशरूम का उत्पादन एक इको-फ्रैंडली गतिविधि है, क्योंकि इसमें कृषि अवशेषों, मुर्गी की खाद, अग्रो-प्रोसेसिंग अवशेषों इत्यादि को खुम्ब उत्पादन के प्रयोग में लाया जाता है, जिससे न केवल पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है किन्तु खुम्ब उगा कर लाभ भी कमाया जाता है. खुम्ब उत्पादन कृषि विविधिकरण का एक प्रमुख अंग है दूसरी फसलों के मुक़ाबले इसके उत्पादन में केवल 25 लीटर पानी प्रति किलो की जरूरत होती है जो कि अन्य परंपरागत फसलों से बहुत कम है. खुम्ब में कई पौष्टिक और औषधीय गुण होते हैं जो लोगों को विभिन्न रोगों से बचाते हैं. कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए खुम्ब के उत्पादन और उसके सेवन पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना समय की मांग है.
हरियाणा प्रदेश में एक अनुमान के अनुसार लगभग छोटे-बड़े 2500-2000 खुम्ब उत्पादक सफ़ेद बटन खुम्ब की काश्त करते हैं और यह प्रदेश देश की कुल खुम्ब का लगभग 15 प्रतिशतउत्पादनकरके अग्रणी राज्यों में एक प्रमुख स्थान अर्जित कर चुका है .हरियाणा प्रदेश के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय,हिसार की मशरूम प्रोध्योगिकी प्रयोगशाला,पौध रोग विभाग में पिछले कुछ समय से खुम्ब अनुसंधान निदेशालय सोलन द्वारा प्रदत प्रयोगों तथा लोगों की मांग के अनुसार कुछ अन्य खुम्बों जैसे शिटाके, लायन मैंने,कोरडीसैप इत्यादि खुम्बों के उत्पादन, खुम्ब के मूल्य संवर्धन, खुम्ब की वेट बब्बल/लड्डू रोग/येल्लो मोल्ड इत्यादि बीमारियों के प्रबंधन, स्पेंट मशरूम खाद के इस्तेमाल इत्यादिकृषि महविद्यालय के पौध रोग विभाग में अनुसंधान जारी है.
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय, हिसार का एकमात्र प्रशिक्षण संस्थान“ सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान”जो विस्तार शिक्षा निदेशालय का एकमात्र प्रशिक्षण संस्थान है और विश्व विद्यालय के फार्म गेट नंबर 3,लूदास रोड पर स्तिथ है माननीय कुलपति महोदय प्रोफेसर बलदेवराज कंबोज की सूझ-बुझ और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ.बलवान सिंह के दिशा-निर्देश अनुसार डॉ. अशोक कुमार गोदारा के नेतृत्व में प्रतिमाह बेरोजगार युवकों/युवतियों और किसानों के लिए उनकी मांग के अनुसार ऑनलाइन /ऑफ लाइन खुम्ब उत्पादन तकनीक पर लगातार प्रशिक्षण आयोजित करवा रहा है, जिससे भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों से कई प्रशिक्षणार्थी लाभान्वित हुए हैं और कई युवकों तथा युवतियों ने प्रशिक्षण के उपरान्त खुम्ब की खेती को एक व्यवसाय के रूप में शुरू किया है. इस प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न तरह की खुम्बों की उत्पादन तकनीक ,खुम्बों की प्रोसेसिंग, खुम्ब की मूल्य संवर्धता इत्यादि विषयों पर महत्वपूर्ण जानकारी देकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसे एक व्यवसाय के रूप अपना ने की सारी जानकारी दी जाती है.प्रशिक्षणार्थियों को विश्व विद्यालय की मशरूम प्रोध्योगिकी प्रयोगशाला और प्रगतिशील खुम्ब उत्पादक के फार्म का भ्रमण भी करवाया जाता है.
खुम्ब उत्पादन एक ऐसा व्यवसाय है ,जिसका कोई भी भाग बेकार नही जाता ,खुम्ब की पैदावार लेने के बाद जो खाद बच जाती है, उसे स्पेंट मशरूम खाद के नाम से जाना जाता है और उसे भी उपचारित करके और अच्छी तरह से गला सड़ा कर खेतों में खाद के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है.
हरियाणा में सभी फसलें जैसे गेहूँ, धान, गन्ना,कपास, बाजरा,दलहन व तिलहन उगाई जाती है तथा भारतवर्ष में उत्पादन की दृष्टि से हरियाणा राज्य का महत्वपूर्ण स्थान है. यहाँ का किसान मेंहनती एवं कर्मठ होने के नाते नई – नई तकनीक को अपनाने में हमेंशा अग्रसर रहता है. हरियाणा प्रांत जहाँ खाद्यान्नों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है वहीं लगभग पिछले दो दशकों से खुम्ब उत्पादन में भी क्रांति आयी है.प्रदेश में सफेद बटन खुम्ब की खेती को एक विशेष स्थान प्राप्त हुआ है.
सबसे पहले यह खेती दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में जैसे सोनीपत, पानीपत, फरीदाबाद व गुड़गाँव जिलो में ही की जाती थी किन्तु अब अन्य कई जिलों में किसान/खुम्ब उत्पादक इसकी काश्त न केवल सर्दी के मौसम में बल्कि वातानुकूलित भवन बना कर प्रति वर्ष इसकी 5-6फसलें ले रहे हैं. कुछ खुम्ब उत्पादक इसका मुल्य संवर्धन करके जैसे आचार, डिब्बाबन्दी इत्यादि करके इसे बेच रहे हैं.आज कल खुम्ब की शादियों व हर अन्य समारोहों/होटलोंमें बहुतायत से माँग बढ़ रही है लगभग हर समारोह मेंखुम्ब से कई तरह के व्यंजन तैयार किए जाते हैं.हरियाणा से अधिकतर सफ़ेद बटन खुम्ब दिल्ली, पंजाब,चंडीगढ़,उत्तर प्रदेश व राजस्थान की मंडियों में बिक्री के लिए भेजा जाता है और लोगों में इसकी पौष्टिकता और औषधीय गुणों की जानकारी होने से शहरों के इलावा गावों में भी इसकी मांग बढ़ रही है.
खुम्ब स्वास्थ्य कि दृष्टि से वरदान, व्यवसाय कि दृष्टि से उत्तम, आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद तथा पर्यावरण कि दृष्टि से काफी उपयोगी है. खुम्ब एक प्रकार से फफूंद होती है जिसमें पर्णहरित नही होता है जिसकी वजह से ये अपना भोजन स्वंय नही बना पाते है. पोषण कि आवश्यक पूर्ति हेतु यह मृतजैव पदार्थो द्वारा व अन्य कार्बनिक पदार्थो पर वर्षा ऋतु में खाद के ढेरों पर, जंगलो और चरागाहों में उगते दिखाई देते है. आम भाषा में इन्हें साँप कि छतरी कहते है. प्रकृति में पायी जाने वाली खुम्बों कि संख्या लगभग 14000तक आँकी गयी है. इनमें से लगभग 70 तरह की विभिन्न खुम्बों की खेती की जा सकती है.कुछ खुम्ब खाने योग्य होती है तथा कुछ जहरीली भी होती है. परंतु उगाई जाने वाली खुम्ब की कुछ किस्में खाने योग्य और कुछ खुम्बों से औषधियाँ तैयार की जाती हैं.बढ़ती जनसंख्या के दबाब के कारण किसान की जोत छोटी होती जा रही है, जिससे किसान अपने घरेलू खर्चे के लिए भी इस जमीन से पैसे कमाने में असमर्थ है.
यदि एक छोटा किसान कृषि विविधिकरण के तहत काम करे तो उसकी आय में इजाफा हो सकता है. खुम्ब उत्पादन से भी किसान अपनी आय बढ़ा सकता है और बेरोजगार युवक या युवती इसे एक व्यवसाय के रूप में शुरू कर सकते हैं क्योंकि हरियाणा में खुम्ब की खेती के लिए कच्चा माल जैसे गेहूं, धान व सरसों का भूसा बहुतायत में मिलता है तथा इसके साथ – साथ इमारतें, श्रम व अन्य साधन भी उपलब्ध है. खुम्बी की खेती कमरों के अन्दर एक विशेष प्रकार से बनाई गई खाद पर की जाती है और इसके लिए खेतों की कोई आवश्यकता नहीं होती खेतिहर युवक या युवती भी इसे एक रोजगार के रूप में अपनाकर स्वावलंबी बन सकते हैं.
वैसे तो आदिकाल से मानव खुम्ब का प्रयोग करता आ रहा है. परंतु खुम्ब उत्पादन की तकनीक का विकास व प्रचार बहुत मंद गति से हुआहै जिसके मुख्य कारण हैं –मनुष्य की खुम्ब की पौष्टिकता व औषधीय गुणो के प्रति अनभिज्ञता,खुम्ब की विभिन्न प्रजातियों के अच्छी किस्मों के बीज की कमी, व्यवस्थित बाजार का उपलब्ध नहोना व उत्पादन के लिए पुराने तरीको का इस्तेमाल.व्यापारिक स्तर पर काश्त के लिए सफेद बटन खुम्ब,ढींगरी के अलावा दूधिया खुम्ब लोकप्रिय है इसकी काश्त भी अलग–अलग समय तथा भिन्न–भिन्न तापमान व नमी पर की जाती है.इसका विवरण नीचे तालिका में दिया जा रहा है :
क्र. सं. |
खुम्ब की किस्म |
महीना |
अनुकूल तापमान डिग्री सेल्सियस |
नमी प्रतिशत |
|
कवक जाल का फैलाव |
खुंबी उगाना |
||||
1 |
सफेद बटन खुम्ब |
अक्तूबर से फरवरी |
22-24 |
14-18 |
80-90 |
2 |
ढींगरीया आयस्टर खुम्ब |
फरवरी–अप्रैल जुलाई- अक्तूबर |
25-30 |
22-26 |
80-90
|
3 |
दूधिया खुम्ब: मिल्की |
जुलाई- अक्तूबर |
25-35 |
30-35 |
80-90 |
इस प्रालेख में खुम्ब उत्पादन के लिए 60 क्विंटल भूसे की कम्पोस्ट खुम्ब इकाई पर आय व व्यय का आर्थिक विश्लेषण का संकेतात्मक व्यौरा दिया गया है. खुम्ब उत्पादन सहित हर व्यवसाय के लिए दो प्रकार की लागत होती है एक नियत लागत व दूसरी परिवर्ती लागत. खुम्ब उत्पादन में नियत लागत बहुत और एक बार लगाने के बाद पाँच–छ साल तक चल जाती है. नियत लागत में मुख्य तौर पर खुम्ब भवन निर्माण,कूलर, फोर्क, स्प्रै पम्प, थर्मामीटर इत्यादि शामिल है. परिवर्ती लागत खुम्ब उत्पादन के लिए हर साल समय अनुसार वहन करनी पड़ती है.
खुम्ब उत्पादन इसी लागत पर निर्भर करता है.परिवर्ती लागत जो की इस प्रकार है गेहूँ का भूसा, किसान खाद, सिगल सुपर फास्फेट, यूरिया खाद, म्यूरेट ऑफ पोटाश, जिप्सम, चोकर, शीरा, मुर्गी की खाद, केसिंग मिश्रण व खुम्ब का बीज से 24 क्विंटल खुम्ब प्राप्त की जा सकती है. जोकि बाज़ार में 80 रूपये प्रति किलो की दर से 1,92,000 रुपये होती है.जिसका कुल परिव्यव 1,25,720 रुपये तक आता है और 66,280 रूपये शुद्ध लाभ कमा सकता है.जोकि नीचे तालिका 1 में दर्शाया गया है.यदि खुम्ब उत्पादक एक एकड़ में लगभग 30*60 फूट के 10 शैड लगाता है तो प्रति एकड़ एक मौसम से 6,62,800/- का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकता है.
तालिका. लम्बी अवधि से तैयार कि गई 60 क्विंटल भूसे कि कम्पोस्ट खुम्ब इकाई का आर्थिक विश्लेषण
क्र. स. |
सामग्री |
मात्रा |
मूल्य (रूपये) |
|
क) स्थायी लागत |
|
|
1. |
खुम्ब भवन निर्माण(60*30 फुट) में प्रयोग होने वाली सामाग्री
बांस
पौलिथीन (20 किलो)
सुतली (15 किलो)
मजदूरी
बाजरे की पुवाल/धान की पराल (2 ट्रोलि)
खुम्ब भवन निर्माण (60*30 फुट) में अनुमानित लागत |
- |
35,000
5,000
1,500 9,500
3,000
54,000
|
2. |
कूलर, फोर्क, स्प्रै पम्प, थर्मामीटर आदि |
- |
26,000 |
|
कुल स्थाई पूंजी |
|
80,000 |
|
ख) आवर्ती लागत |
|
|
1 |
गेहूँ का भूसा (550 रु./ क्विं.) |
60 |
33,000 |
2 |
किसान खाद (12 रु./ कि. ग्रा.) |
120 |
1440 |
3 |
यूरिया खाद (6 रु./ कि. ग्रा.) |
40 |
240 |
4 |
म्यूरेट ऑफ पोटाश (18 रु./ कि. ग्रा.) |
40 |
720 |
5 |
जिप्सम (1.7 रु./ कि. ग्रा.) |
600 |
1020 |
6 |
चोकर (18 रु./ कि. ग्रा.) |
150 |
2700 |
7 |
शीरा (9 रु./ कि. ग्रा.) |
100 |
900 |
8 |
मुर्गी की खाद (1.5 रु./ कि. ग्रा.) |
1200 |
1800 |
9 |
खुम्ब का बीज (80 रु./ कि. ग्रा.) |
90 |
7200 |
10 |
केसिंग मिश्रण (2.5 रु / कि. ग्रा.) |
1800 |
4500 |
11 |
मजदूरी |
|
40,000 |
12 |
पैकिंग व बिक्री खर्च |
|
20,000 |
13 |
फुटकर व्यय |
|
1000 |
|
कुल |
|
1,14,520 |
|
ग) आय – व्यय का विश्लेषण: |
|
|
1. |
कुल आवर्ती लागत |
|
1,14,520 |
2. |
अवमूल्यन प्रभार |
|
4000 |
3. |
पूँजी पर ब्याज |
|
7200 |
|
कुल व्यय |
|
1,25,720 |
|
अनुमानित खुम्ब का उत्पादन 24 क्विंटल 80 रूपये प्रति कि. ग्राम के हिसाब से अनुमानित आय |
|
1,92,000 |
|
सकल आय |
|
1,92,000 |
|
कुल परिव्यव |
|
1,25,720 |
|
शुद्ध आय प्रति शैड |
|
66,280 |
|
शुद्ध आय प्रति एकड़ (10 शैड/एकड़/खुम्ब फसल) |
|
6,62,800 |
हरियाणा सरकार और केंद्र सरकार द्वारा समय समय पर खुम्ब उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत लाभ दिया जाता रहा है इसकी अधिक जानकारी के लिए अपने जिले के जिला बागवानी अधिकारी, खंड स्तर पर बागवानी विकास अधिकारी से संपर्क करके खुम्ब उत्पादन से संबन्धित सभी योजनाओं की जानकारी ले सकते हैं. इसके इलावा हरियाणा सरकार की बागवानी विभाग की वैबसाइट www hortharyana.gov.in पर भी घर बैठे जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
खुम्ब उगाने के लाभ
हमारे देश में अधिकतर लोग शाकाहारी है अत: उनमें प्रोटीन की कमी महसूस की जाती है. खुम्ब प्रोटीन तथा पोष्टिक तत्त्वों से भरपूर भोजन प्रदान करती है. खुम्ब की काश्त भूमिहीन एवं छोटे किसानो के लिए वरदान स्वरूप है क्योकि इसके उत्पादन के बहुत जमीन अथवा खेतों की आवश्यकता नही पड़ती. इसे घर के खाली कमरों व किसी स्थान पर छ्प्पर या छ्त डालकर कच्चे कमरों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है.
1. खुम्ब की खेती से रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करती है.
2. खुम्ब उत्पादन के बाद बची हुई खाद खेतों में दूसरी फसलों में प्रयोग की जा सकती है.
3. खुम्ब व खुम्ब से बने हुये पदार्थो कामूल्य सवर्धन करके निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है.
4. खुम्ब उत्पादन कमरों के अन्दर किया जा सकता है अत: प्राकर्तिक आपदाऔं जैसे की पाला, आँधी–तूफान औलावृष्टि तथा आवारा पशुओं आदि से भी सुरक्षित है.
5. विभिन्न खुम्बों जैसे सफ़ेद बटन मशरूम (अक्तूबर से फ़रवरी), ढींगरि/ओयस्टर (मार्च-अप्रैल), मिल्की/दूधिया मशरूम (जुलाई से अक्तूबर) की काश्त करके सारा साल और हर रोज पैसे कमाये जा सकते है.
6. महिलाओं के लिये यह काम उत्तम है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा भारी काम नहीं होता. देश के विभिन्न प्रान्तों में कई महिलाओं ने इसे एक रोजगार के रूप में अपना कर नया कीर्तिमान हासिल किया हुआ है.
7. विभिन्न खुम्ब उत्पादन फार्मों पर भी ज़्यादातर महिलाएं ही काम करती हैं जैसे खाद में बीज मिलाना, बैग भरना, खुम्ब भवन में खाद डालना, केसिंग करना, खुम्ब की तुड़ाई करना इत्यादि सभी कार्य अधिकतर महिलाएँ ही करती पाई जाती हैं.
8. इस कार्य में घर के सभी सदस्यों को काम करने का मौका मिलता है.
9. खुम्ब से विभिन्न तरह के व्यंजन बनाये जा सकते हैं, खुम्ब का मूल्य संवर्धन करके बिस्कुट, पापड़, वड़ियाँ, कड़ी, आचार, कैंडी, मुरब्बा, जैम, रसगुल्ले, डिब्बाबंदी इत्यादि तैयार करके बेचा जा सकता है जिसकी बाजार में भारी मांग है.
10. खुम्ब उत्पादन से कृषि अवशेषों के प्रबंधन की समस्या का हल निकल सकता है जिससे किसान कृषि अवशेषों को जलाने की बजाए इन अवशेषों को खुम्ब उत्पादकों को बेच कर लाभ कमा सकते हैं.
खुम्ब उत्पादन के लिए बीज, खाद, परामर्श एवं प्रशिक्षण के लिए विभिन्न विभागों तथा सरकारी संस्थाओ से संपर्क किया जा सकता है. जोकि निम्न लिखित हैं.
निदेशक, विस्तार शिक्षा निदेशालय, चौ. च. सि. हरियाणा कृषि विश्वविधालय, हिसार.
सह निदेशक, सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान,चौ: चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार .
चौ॰ चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के लगभग सभी जिला स्तरों पर स्तिथ 19 कृषि विज्ञान केन्द्र.
निदेशक, राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, चम्बा घाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश.
निदेशक, बागवानी विभाग, सैक्टर 21,पंचकुला, हरियाणा .
जिला बागवानी अधिकारी, जिला स्तर पर तथा बागवानी विकास अधिकारी खंड स्तर पर समस्त हरियाणा.
लेखक
सतीश कुमार,निर्मल कुमार और संदीप भाकर
सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी,प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान
चौ: चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय,हिसार -125004
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