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पश्चिमी राजस्थान में मशरूम की खेती एक बेहतर विकल्प, होगा अच्छा मुनाफा

किसान मुख्यत मानसून के दौरान होने वाली फसल पर निर्भर रहते है पर मानसून के समय कीड़े - बीमारियों, अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि कारणो से किसानों की पैदावार कम होती हैं. इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये मशरूम उत्पादन एक विकल्प है

KJ Staff
मशरूम की खेती
मशरूम की खेती

पश्चिमी राजस्थान मुख्य रूप से शुष्क क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जिसमें किसान मुख्यत मानसून के दौरान होने वाली फसल पर निर्भर रहते है पर मानसून के समय कीड़े - बीमारियों, अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि कारणो से किसानों की पैदावार कम होती हैं. इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये मशरूम उत्पादन एक विकल्प है. जिसमें किसान और अन्य ग्रामिण लोगों जिनके पास जमीन कम होती है.

वे सभी कम लागत व अन्य फसल की तुलना में कम समय में बिना किसी जोखिम के अधीक उपज प्राप्त कर सकते है. पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बाजार में मशरूम की मांग तेजी से बढ़ी है जिस हिसाब से बाजार में इसकी मांग है उस हिसाब से अभी इसका उत्पादन नहीं हो रहा है, ऐसे में किसान मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

पिछले कई वर्षों से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केंद्र पर मशरूम विशेषज्ञ दावारा दिया जा रहा है वे बताते है की "तीन तरह के मशरूम का उत्पादन होता है, सितम्बर महीने से 15 नवंबर तक ढ़िगरी मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं, इसके बाद आप बटन मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं, फरवरी-मार्च तक ये फसल चलती है, इसके बाद मिल्की मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं जो जून जुलाई तक चलता है. इस तरह आप साल भर मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं.तीन तरह के मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं.

  1. ढिंगरी मशरूम (ऑयस्टर मशरुम)
  2. बटन मशरूम
  3. दूधिया मशरूम (मिल्की)

"ऑयस्टर मशरूम की खेती बड़ी आसान और सस्ती है. इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक होते हैं. दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई एवं चेन्नई जैसे महानगरों में इसकी बड़ी माँग है. इसलिये विगत तीन वर्षों में इसके उत्पादन में 10 गुना वृद्धि हुई है. राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में भी ओईस्टर मशरूम की कृषि लोकप्रिय हो रही है.

ऑयस्टर की "स्पॉन (बीज) के जरिए मशरूम की खेती की जाती है, इसके लिए सात दिन पहले ही मशरूम के स्पॉन (बीज) लें, ये नहीं की एक महीने मशरूम का स्पान लेकर रख लें, इससे बीज खराब होने लगते हैं. इसके उत्पादन के लिए भूसा, पॉलीबैग, कार्बेंडाजिम, फॉर्मेलिन और स्पॉन की जरूरत होती है. दस किलो भूसे के लिए एक किलो स्पॉन की जरूरत होती है, इसके लिए पॉलीबैग, कार्बेंडाजिम, फॉर्मेलिन, की जरूरत होती है." शुरूआत के लिय दस किलो भूसे को 100 लीटर पानी में भिगोया जाता है, इसके लिए 150 मिली. फार्मलिन, सात ग्राम कॉर्बेंडाजिन को पानी में घोलकर इसमें दस किलो भूसा डुबोकर उसका शोधन किया जाता है. भूसा भिगोने के बाद लगभग बारह घंटे यानि अगले सुबह फैलाते हैं और शाम को फैलाते हैं ओर सुबह निकाल लें, इसके बाद भूसे को किसी जालीदार बैग में भरकर या फिर चारपाई पर फैला देते हैं, जिससे अतिरिक्त पानी निकल जाता है इसके बाद एक किलो सूखे भूसे को एक बैग में भरा जाता है, एक बैग में तीन लेयर लगानी होती है, एक लेयर लगाने के बाद उसमें स्पॉन को किनारे-किनारे रखकर उस पर फिर भूसा रखा जाता है, इस तरह से एक बैग में तीन लेयर लगानी होती है. बैग में स्पॉन लगाने के बाद पंद्रह दिनों में इसमें ऑयस्टर की सफेद-सफेद खूटियां निकलने लगती हैं, ये मशरूम बैग में चारों तरफ निकलने लगता है. इस मशरूम में सबसे अच्छी बात होती है इसे किसान सुखाकर भी बेच सकते हैं, इसका स्वाद भी तीनों मशरूम में सबसे बेहतर होता है.

बटन मशरूम निम्न तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है, लेकिन अब ग्रीन हाउस तकनीक द्वारा यह हर जगह उगाया जा सकता है. सरकार द्वारा बटन मशरूम की खेती के प्रचार-प्रसार को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है. बटन मशरूम की बीजाई के लियबीज या स्पान अच्छी भरोसेमंद दुकान से ही लेना चाहिए. बीज एक माह से अधिक पुराना भी नही होना चाहिए बीज की मात्रा कम्पोस्ट खाद के वजन के 2-2.5 प्रतिशत के बराबर लें. बीज को पेटी में भरी कम्पोस्ट पर बिखेर दें तथा उस पर 2 से तीन सेमी मोटी कम्पोस्ट की एक परत और चढ़ा दें. अथवा पहले पेटी में कम्पोस्ट की तीन इंच मोटी परत लगाऐं और उसपर बीज की आधी मात्रा बिखेर दे. उस पर फिर से तीन इंच मोटी कम्पोस्ट की परत बिछा दें और बाकी बचे बीज उस पर बिखेर दें. इस पर कम्पोस्ट की एक पतली परत और बिछा दें." बुवाई के बाद पेटी या थैलियों को वहां रख दें, इन पर पुराने अखबार बिछाकर पानी से भिगो दें. कमरे में पर्याप्त नमी बनाने के लिए कमरे के फर्श व दीवारों पर भी पानी छिड़कते रहें. इस समय कमरे का तापमान 22 से 26 डिग्री सेंन्टीग्रेड और नमी 80 से 85 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए. अगले 15 से 20 दिनों में खुम्बी का कवक जाल पूरी तरह से कम्पोस्ट में फैल जाएगा. इन दिनों खुम्बी को ताजा हवा नही चाहिए इसलिए कमरे को बंद ही रखें.

बटन मशरूम की तुड़ाई खुम्बी की बीजाई के 35-40 दिन बाद या मिट्टी चढ़ाने के 15-20 दिन बाद कम्पोस्ट के ऊपर मशरूम के सफेद घुंडिया देने लगती हैं, जो अगले चार-पांच दिनों में बढ़ने लगती हैं, इसको घूमाकर धीरे से तोड़ना चाहिए, इसे चाकू से भी काट सकते हैं.

मिल्की या दूधिया मशरूम गर्मी के मौसम में मिल्की या दुधिया मशरूम की खेती आसानी से की जा सकती है. अगर आप व्यायवसायिक रूप से इसकी खेती करते हैं तो अच्छी कमाई भी होगी इसके फैलाव के लिए 28-38 डिग्री सेल्सियस तापमान और नमी 80 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए. ऊंचे तापमान में भी यह अच्छी पैदावार देता है.

मशरूम उत्पादन के लिए एक अंधेरे कमरा, स्पॉन यानी बीज, भूसा/कुटी (पुआल), हाइड्रोमीटर, स्प्रेइंग मशीन, वजन नापने वाली मशीन, कुट्टी काटने वाली मशीन, प्लास्टिक ड्रम एवं शीट, वेबिस्टीन एवं फॉर्मलीन, पीपी बैग और रबड़ बेंड इत्यादि की जरूरत पड़ती है.

दूधिया मशरूम की खेती की तैयारी मे इस किस्म को भूसा, पुआल, गन्ने की खोई आदी पर आसानी से उगाया जा सकता है. आपको एक बात का ध्यान रखना होता है कि यह बरसात में भिगा हुआ न हो, वरना पैदावार प्रभावित हो सकती है. दूधिया मशरूम को उगाने के लिए गेहूं का भूसा या धान के पुआल को सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस्तेमाल से पहले भूसा या पुआल को उपचारित करना जरूरी है. भूसा या पुआल को काट कर आप जूट या कपड़े की छोटी थैलियों में भरकर गर्म पानी में कम से कम 12 से 16 घंटे तक घंटे तक डुबोकर रखते हैं ताकि भूसा या पुआळ पानी अच्छी तरह से सोंक ले, इसके बाद गर्म पानी में इसे डाल देते हैं भूसा डालने से पहले फर्श को धोकर या पॉलीथीन शीट बिछाकर 2 प्रतिशत फॉर्मलीन के घोल का छिड़काव किया जाता है आप रासायनिक तरीका भी अपना सकते हैं. ज्यादा मात्रा में भूसा को उपचारित करने पर गर्म पानी वाले विधि में खर्च ज्यादा आता है.

रासायनिक विधि उसके मुकाबले कम खर्च वाली है रासायनिक उपचार के लिए किसी सीमेंट के नाद या ड्रम में 90 लीटर पानी में 10 किलो ग्राम भूसा भिगा दें, एक बाल्टी में 10 लीटर पानी लें और उसमें 10 ग्राम वेबिस्टीन व 5 मिली फार्मलीन मिलाएं, इस घोल को ड्रम में भिगोए गए भूसा में डाल दें, ड्रम को पॉलीथीन से ढककर उस पर कोई वजनी सामान रख दें, 12 से 16 घंटे बाद ड्रम से भूसा को बाहर निकाल कर फर्श पर फैला दें ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाए. इसके बाद आपका भूसा दूधिया मशरूम की खेती के लिए तैयार हो जाता है बुआई के लिए एक किलो ग्राम उपचारित भूसा में 40 से 50 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है 16 सेंटी मीटर चौड़ा और 20 सेंटी मीटर ऊंचा पीपी में बैग में पहले उपचारित भूसा डाल दें. बीज डालने के बाद इसे उपचारित भूसा से ढक दें, यह प्रक्रिया पूरी करने के बाद आप पीपी बैग को बांध कर अंधेरे कमरे में रख दें. ध्यान रखें कि 2 से 3 सप्ताह तक तापमान 28-38 डिग्री तक रहे और प्रक्रिया पूरी करने के बाद आप पीपी बैग को बांध कर अंधेरे कमरे में रख दें और 80-90 प्रतिशत नमी बनाएं रखें कुछ दिन आप देखेंगे कि आपका बैग कवक जाल से भर गया होगा. इसके बाद आप इस पर केसिंग कर दें. केसिंग के लिए पुराना गोबर सबसे उपयुक्त माना जाता है. केसिंग प्रक्रिया के बाद देखरेख करना जरूरी हो जाता है. नमी बनाए रखने के लिए पानी का छिड़काव भी कर सकते हैं.

उपज की कटाई मशरूम का छत्ता जब 5 से 7 सेंटी मीटर हो जाए तो इसे तोड़ लें. तैयार मशरूम को पीपी बैग में रख लें. एक किलो ग्राम उपचारित भूसा से आपको एक किलो ग्राम ताजा दूधिया मशरूम प्राप्त हो जाता है. अच्छी पैदावार के प्रति किलो ग्राम 20 से 25 रुपए खर्च आता है. वहीं बिक्री 200 से लेकर 400 रुपए प्रति किलो के भाव पर होती है. इस तरह किसान मिल्की मशरूम की खेती से काफी मुनाफा कमा सकते हैं.

लेखक

प्रदीप कुमार*

*कृषि विद्यावाचस्पति छात्र अर्थशास्त्र विभाग, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर

English Summary: Mushroom cultivation in western Rajasthan is a better option for income Published on: 04 May 2022, 12:22 PM IST

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