अजीविका में सुधार और सशक्तिकरण कार्यक्रम के तहत कश्मीर घाटी में पिछले दो साल में कोसी, अल्मोड़ा की लघु परियोजना अब कश्मीर घाटी के लिए काफी वरदान साबित हो रही है. कश्मीर की घाटी को फूलों के उत्पादन, कारोबार के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है. यह काफी लंबे समय से देखा जा रहा था कि वहां पर अजीविका के क्षेत्र में उतना विकास नहीं हो पा रहा है जितना की होना चाहिए था. यहां पर राष्ट्रीय हिमालयी संस्थान द्वारा विकसित फूलों की व्यवसायिक खेती की परियोजना को आधार बनाया गया जो कि सफल साबित हुई है.
लिलियम और ट्यूलिप फूलों का उत्पादन
यहां के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन संस्थान और शेर-ए-कश्मीर, कृषि विज्ञान और तकनीकी विश्वविद्यालय श्रीनगर के संयुक्त प्रयासों से अब फूलों की खेती अब खादी- ए-कश्मीर में वरदान साबित हो रही है. राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत चलाई जा रही इस योजना से वर्तमान में कश्मीर की तीन घाटियों में तीन सौ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में लिलियम, ट्यूलिप और ग्लेडियोस फूलों का सफल उत्पादन किया जा रहा है. वर्तमान में 180लोगों को इस कार्य का प्रशिक्षण दिया जा चुका है. जबकि नौ स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है.
श्रीनगर, पुलवामा समेत कई चयनित क्षेत्र
इन फूलों की खेती के माध्यम से कश्मीर के युवाओं और महिलाओं की अजीविका विकास के लिए श्रीनगर, पुलवामा, और कुलगाम जिलों को चयनित कर लिया गया है. फूल उत्पादकों के सामने यहां अब तक जो समस्याएं सामने आ रही थी उनमें कम उत्पादन, पुरानी पद्धित, अच्छे बीजों का अभाव, नई तकनीक की जानकारी न होना, कीटनाशकों की जानकारी और निर्यात के लिए एंजेसियों की कमी और बिचौलियों की समस्या मुख्य थी. यहां पर बाजार में भारी मांग वाले इन फूलों के बीज की शुरात में नीदरलैंड्स से मंगाए गए है.
सजावटी फूलों की मांग बढ़ी
परियोजना के प्रमुख ने बताया कि सजावटी और सुंगधित फूलों की मांग दुनिया भर में बढ़ती ही जा रही है. स्थायित्व, आय वृद्धि और समानता के साथ कश्मीरी परिवारों को अजीविका की सुरक्षा मिले.इसके काफी प्रयास किए जा रहे है. यहां के संस्थान ने फूलों की खेती के लिए जलवायु और स्थानीय लोगों की अजीविका संवर्धन को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर को प्रोजेक्ट के लिए चुना गया है. इसके अलावा उतराखंड में भी इसके अजीविका के माध्यम से सश्कत बनाने का कार्य किया जा रहा है.
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फूलों की खेती से रौशन हो रही कश्मीर की कृषि
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