भारत में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या बहुत अधिक है, जिनके पास बेहद कम ज़मीन है. ऐसे किसानों के लिए लोबिया की खेती फायदेमंद हो सकती है. लोबिया एक दलहनी फसल की श्रेणी में आने वाली एक फसल है. इसकी खेती खरीफ और जायद, दोनों सीजन में होती है. इसकी खेती करने से किसानों को दो प्रकार के लाभ हो सकते हैं, एक तो किसान इसे सब्जी के रूप में उपयोग कर सकते हैं और दूसरा इसे पशुओं के चारे में उपयोग किया जा सकता है.
लोबिया क्या है?
लोबिया एक ऐसी फली होती है, जो कि तिलहन की श्रेणी में आती है. इसे बोड़ा, चौला या चौरा के नाम से भी जाना जाता है और इसका पौधा सफेद रंग का और बहुत बड़ा होता है. लोबिया की फलियां पतली, लंबी होती हैं और इसे सब्जी बनाने में, पशुओं के चारे के लिए उपयोग किया जाता है.
लोबिया की खेती(Cultivation of cowpea)करने के लिए निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखा जाना बहुत जरुरी है:
लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
लोबिया की खेती करने के लिए गर्म व आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है. बता दें कि इसकी खेती करने लिए 24-27 डिग्री के बीच के तापमान की जरुरत होती है. ज़्यादा कम तापमान होने पर इसकी फसल बर्बाद हो सकती है, इसलिए लोबिया की फसल को अधिक ठंड से बचाना चाहिए.
लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
लोबिया की खेती करने के लिए अगर मिट्टी की बात करें, तो इसे सभी प्रकार की मिट्टी में में किया जा सकता है. मगर एक बात का ध्यान रखें कि इसके लिए छारीय मिटटी नहीं होनी चाहिए.
ये हैं लोबिया की उन्नत किस्में
दरअसल, लोबिया की कई उन्नत किस्में हैं, जो कि बहुत अच्छा उत्तपादन देती हैं जैसे- सी- 152, पूसा फाल्गुनी, अम्बा (वी- 16), स्वर्णा (वी- 38), जी सी- 3, पूसा सम्पदा (वी- 585) और श्रेष्ठा (वी- 37) आदि प्रमुख हैं.
लोबिया की बुवाई के उपयुक्त समय
इसकी बुवाई के बारे में बात करें, तो बरसात के मौसम में जून महीने के अंत तक इसकी बुवाई की जाती है. वहीं इसे फरवरी से लेकर मार्च तक बोया जाता है.
लोबिया की बुवाई करने के लिए बीज की मात्र
लोबिया की बुवाई करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि उसकी मात्रा अधिक न हो. इसकी बुवाई के लिए सामान्यत: 12-20 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता है. इसकी बेल वाली प्रजाति के लिए बीज की मात्रा थोड़ी कम लगती है और मौसम के हिसाब से बीज की मात्रा का निर्धारण किया जाना चाहिए.
लोबिया की बुवाई करने का तरीका
लोबिया की बुवाई करते वक्त यह ध्यान देना बड़ा ज़रूरी होता है कि इसके बीज के बीच की दूरी सही हो, ताकि जब इसका पौधा उगे, तो ठीक तरीके से विकास कर सके. दरअसल,लोबिया की बुवाई के समय उसकी किस्म के हिसाब से दूरी रखी जाती है जैसे- झाड़ीदार किस्मों के बीज के लिए एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी 45-60 सेमी होनी चाहिए. बीज से बीज की दूरी 10 सेमी होनी चाहिए. वहीं इसकी बेलदार किस्मों के लिए लाइन से लाइन की दूरी80-90 सेमी रखना उचित होता है.
लोबिया में दिए जाने वाली खाद की मात्रा
किसी भी चीज की खेती करने के लिए खाद बड़ी जरुरी होती है. ऐसे ही लोबिया की खेती करने के लिए खाद जरुरी है. लोबिया की फसल उगने से कुछ इस प्रकार से खाद डालनी चाहिए. एक महीने पहले खेत में 20-25 टन गोबर या कम्पोस्ट डालें, 20 किग्रा नाइट्रोजन, फास्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में जुलाई का अंत में ही डाल दें. वहीं, नाइट्रोजन की 20 कि.ग्रा. की मात्रा फसल में फूल आने के समय देनी चाहिए.
लोबिया की सिंचाई करने का समय
लोबिया की फसल को खरीफ के सीजन में पानी ज़्यादा जरुरत नहीं होती है, इसलिए खरीफ़ के सीजन में उतना ही पानी देना चाहिए, जिससे मिट्टी में नामी बनी रहे. वहीं गर्मी की फसल की बात करें, तो आमतौर पर किसी भी फसल में पानी की ज़्यादा ज़रूरत होती है. अगर लोबिया की बात करें, तो इसमें 5 से 6 पानी की ज़रूरत होती है.
लोबिया की कटाई का समय
असल में लोबिया का कई प्रकार से किया जाता है, इसलिए इसकी कटाई भी अलग- अलग समय पर होती है, जोकि कुछ इस प्रकार है:
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लोबिया की हरी फलियों का अगर आप उपयोग करना चाहते हैं, तो इसकी फलियों को 45 से 90 दे बाद तोड़ लेना चाहिए.
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अगर आपने लोबिया की चारे वाली फलियों की फसल की है, तो इसकी फलियों को समान्यत: 40 से 45 दिन में तोड़ लेना चाहिए.
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वहीं अगर आप इसके दाने को प्राप्त करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको 90 से 125 दिन के बाद ही फलियों को पूर्ण रूप से पकने पर ही तोड़ना चाहिए.
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