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मसूर की नई किस्म सिर्फ 121 दिनों में हो जाती है तैयार, उत्पादन क्षमता 13.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक!

दलहन की खेती करने वाले किसानों के लिए आईसीएआर - भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर ने मसूर दाल की एक नई किस्म ‘आईपीएल 220’ विकसित की है। इस किस्म की खेती करके किसान बेहतर पैदावार और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

KJ Staff
lentils
मसूर की नई किस्म ( Image Source - (Image source - AI generate)

भारत में दलहन की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। किसान हमेशा ऐसी उच्च गुणवत्ता वाली दालों की किस्मों की तलाश में रहते हैं, जिनसे उन्हें बेहतर उत्पादन और अधिक लाभ मिल सके। हाल ही में आईसीएआर - भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर ने मसूर दाल की किस्म ‘आईपीएल 220’ विकसित की है।

इस किस्म में आयरन (Iron) और जिंक (Zinc) जैसे लाभकारी पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। साथ ही इसमें प्रोटीन की भी भरपूर मात्रा पाई जाती है, जिससे यह अन्य पारंपरिक मसूर किस्मों की तुलना में अधिक पौष्टिक है। बाजार में इस दाल की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। किसान यदि इस किस्म की खेती करते हैं, तो वे कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

जैव-सुदृढ़ता (Bio-Fortification) की दिशा में बड़ी उपलब्धि

भारत में रबी की प्रमुख फसलों में मसूर का विशेष स्थान है। यह पोषक तत्वों का एक महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती है। हालांकि पारंपरिक किस्मों में लौह (Iron) और जिंक (Zinc) की मात्रा सीमित होती थी, जिससे वे पोषण की दृष्टि से पूरी तरह सक्षम नहीं थीं।

ऐसे में आईपीएल 220 का विकास कृषि विज्ञान में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है, क्योंकि यह जैव-सुदृढ़ (Bio-Fortified) मसूर की श्रेणी में आती है।

 

आईपीएल 220 की प्रमुख विशेषताएं

  • किसान इस किस्म से 13.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त कर सकते हैं।

  • यह किस्म केवल 121 दिनों में तैयार हो जाती है।

  • यह वर्षा आधारित (Rainfed) खेती के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है।

  • यह किस्म पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और पश्चिम बंगाल के किसानों के लिए उपयुक्त मानी गई है।

  • इसमें उच्च लौह (Iron) और जिंक (Zinc) की मात्रा पाई जाती है।

किसानों के लिए फायदे

1. कम लागत में अधिक उत्पादन

  • इस किस्म की बुवाई से किसान कम लागत और कम समय में अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

  • उन्हें अतिरिक्त सिंचाई या महंगे उर्वरकों की आवश्यकता नहीं पड़ती।

  • सीमित संसाधनों में भी किसान बेहतर उत्पादन कर सकते हैं।

2. बेहतर बाजार मूल्य

  • इस किस्म में पोषक तत्वों की अधिकता के कारण इसका बाजार मूल्य सामान्य मसूर से अधिक हो सकता है।

  • इससे किसानों को अपनी उपज बेचकर अच्छा आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।

3. रोगों से सुरक्षा

  • यह किस्म कई सामान्य रोगों के प्रति सहनशील (Disease Tolerant) है, जिससे फसल का नुकसान कम होता है और किसानों की आमदनी स्थिर रहती है।

4. पर्यावरण के अनुकूल खेती

  • मसूर मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती है, जिससे रासायनिक खादों की आवश्यकता घटती है और मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।

  • इस दृष्टि से आईपीएल 220 सतत (Sustainable) खेती का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

क्यों जरूरी हैं जैव-सुदृढ़ फसलें?

भारत में करोड़ों लोग लौह (Iron) और जिंक (Zinc) जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से पीड़ित हैं।

विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों में एनीमिया जैसी समस्याएं आम हो गई हैं।

ऐसे में जैव-सुदृढ़ फसलें न केवल पौष्टिक भोजन का बेहतर स्रोत बन रही हैं, बल्कि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ पहुंचा रही हैं:

  • किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर बाजार मूल्य

  • उपभोक्ताओं को पोषक एवं स्वास्थ्यवर्धक भोजन

 

English Summary: lentils new variety lentils will give farmers a bumper yield up to 13.8 quintals per hectare Published on: 13 November 2025, 03:32 PM IST

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