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असिंचित क्षेत्रों में कुसुम की खेती करके करें अच्छी कमाई, ये हैं उन्नतशील किस्में

तिलहनी फसलों में कुसुम सबसे पुरानी फसल मानी जाती है. इसका वैज्ञानिक नाम कास्थैमस टोंक्टोरियम (Carthamus Tinctorius), अंग्रेजी नाम सफ्फ्लॉवर (Safflower) कहा जाता है. आम भाषा में इसे करड़ी के नाम से भी जाना जाता है. तो आइए जानते हैं कुसुम की उन्नत खेती का तरीका -

श्याम दांगी
sunflower

तिलहनी फसलों में कुसुम सबसे पुरानी फसल मानी जाती है. इसका वैज्ञानिक नाम कास्थैमस टोंक्टोरियम (Carthamus Tinctorius), अंग्रेजी नाम सफ्फ्लॉवर  (Safflower) कहा जाता है. आम भाषा में इसे करड़ी के नाम से भी जाना जाता है. तो आइए जानते हैं कुसुम की उन्नत खेती का तरीका -

कुसुम का उपयोग

कुसुम में 30-35 प्रतिशत तक तेल, प्रोटीन 15 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 15 प्रतिशत, रेशा 33 प्रतिशत और राख 6 प्रतिशत तक होती है. कुसुम से बना तेल खाने के लिए बेहद फायदेमंद होता है. दरअसल, इसके तेल में 78 प्रतिशत तक लिनोमिक अम्ल पाया जाता है जो रक्त में कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करता है, इसलिए यह हार्ट मरीजों के लिए विशेष रूप से उपयोगी रहता है. कुसुम के पत्तों में आयरन और कैरोटीन जैसे तत्व पाए जाते हैं इसलिए यह सब्जी के काम आती है और स्वास्थ्यवर्धक होती है. कुसुम के तेल का उपयोग पेंट, साबुन, वार्निश, लिनोलियम और अन्य पदार्थों के निर्माण में होता है. इसके तेल से वाटर प्रूफ कपड़ा भी बनता है. इसकी पंखुड़ियों का उपयोग चाय बनाने में किया जाता है जिसे 'कुसुम चाय' के नाम से जाना जाता है.

sun

असिंचित क्षेत्र के वरदान  

 कुसुम के पौधे की जड़ें जमीन की गहराई से पानी सोखने की क्षमता रखती है. इसलिए असिंचित क्षेत्र में कुसुम की अच्छी खेती की जा सकती है. वहीं वे किसान भी इसकी खेती कर सकते हैं जिनके पास सिंचित भूमि तो है लेकिन सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. गजेन्द्र सिंह तोमर के मुताबिक, कुसुम खेती उस समय करें जब खेत में नमी हो. इससे बीजों का जमाव अच्छा हो जाता है और पौधे की जड़ें अच्छा फैलाव ले लेती है. कुसुम में अन्य फसलों के मुताबिक सूखा सहन करने की क्षमता होती है. डॉ तोमर के अनुसार भारत में हर साल 2.95 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कुसुम की खेती होती है. जिससे 1.95 लाख टन तक उत्पादन मिलता है.

उन्नतशील किस्में -

के-65 -कुसुम की यह किस्म 180-190 दिनों में पक जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर 14 से 15 क्विंटल की पैदावार होती है. मालवीय कुसुम 305 -यह प्रजाति 160 दिनों में पक जाती है.

अन्य किस्में - जेएसएफ-7,जेएसएफ-73,जेएसएफ-97,जेएसएफ-99.

बीज मात्रा

बुवाई के लिए प्रतिहेक्टेयर 18 से 20 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है. इसके बीजों में फफूंद लगने की संभावना रहती है इसलिए बुवाई से पहले बीजोपचार कर लें.

कैसे करें बुवाई 

इसकी बुवाई सितंबर से नवंबर महीने में करना उचित होती है. इसके लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखी जाती है. वहीं बीज को 3 से 4 मीटर की गहराई पर बोया जाता है. 

खाद और उर्वरक

कुसुम की फसल के लिए ज्यादा खाद की जरूरत नहीं पड़ती है. इसके लिए प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलो फास्फोरस पर्याप्त होता है.

निराई-गुड़ाई और सिंचाई

25 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें और अनावश्यक पौधों को निकाल दें. ताकि पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेमी. हो जाए.

English Summary: kusum cultivation in such a rabi season oil seed crop safflower-oil Published on: 17 October 2020, 11:13 AM IST

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