हमारे देश में किसान दलहनी फसलों की खेती बहुत चाब से करता है. इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफ़ा मिलता है, क्योंकि बाजार में अधिकतर दालों की मांग होती है. आज हम आपको मूंग और उड़द की फसल में लगने वाले रोगों की जानकारी देने वाले हैं. कई बार मूंग और उड़द की फसल कई तरह के रोगों की चपेट में आ जाती है, जिसका फसल पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में इन रोगों से फसल को समय रहते बचा लेना चाहिए.
मूंग और उड़द के प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम
सरकोस्पोरा पत्र बुंदकी रोग
यह मूंग और उड़द की फसल में लगने वाला प्रमुख रोग है. इससे फसल की पैदावार में काफी नुकसान होता है. इस रोग में पत्तियों पर भूरे गहरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं.
रोकथाम
इस रोग से फसल को बचाने के लिए बुवाई से पहले कैप्टन या थिरम कवकनाशी से बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.
पीला चितेरी रोग
इस रोग को विषाणु जनित माना जाता है. इस रोग में पत्तियों पर पीले धब्बे पड़ जाते हैं, जो तेजी से फैलने लगते हैं. इसमें पत्तियां पूरी तरह से पीली दिखाई देती हैं.
रोकथाम
मूंग और उड़द की फसल में यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है. इसकी रोकथाम के लिए खेत में आवश्यकतानुसार आक्सीडेमेटान मेथाइल प्रतिशत या डायमेथोएट को पानी में घोलकर छिड़क देना चाहिए.
झुर्रीदार पत्ती रोग
यह एक मुख्य विषाणु रोग है, जो अधिकतर उड़द की फसल में लगता है. इस रोग में पत्तियां अधिक मोटी और खुरदरी दिखाई देती हैं.
रोकथाम
फसल को बचाने के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए. बता दें कि फसल में कीटनाशी दवा का छिड़काव करने से इस रोग का खतरा कम हो जाता है.
चूर्णी फफूंद
यह रोग गर्म या शुष्क वातावरण में ज्यादा फैलता है. इसमें निचली पत्तियों पर गहरे धब्बे पड़ जाते हैं. इसके बाद छोटे-छोटे सफेद बिंदु दिखाई देने लगते हैं, जो कि एक बड़ा सफेद धब्बा बन जाते हैं.
रोकथाम
फसल को बचाने के लिए घुलनशील गंधक को छिड़कना चाहिए. इसके अलावा आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम या केराथेन कवकनाशी को पानी में घोलकर छिड़क देना चाहिए.
मोजेक रोग
इस रोग में पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं. इसके साथ ही पत्तियों पर फफोले पड़ जाते हैं. इस रोग में पौधों का विकास नहीं हो पाता है.
रोकथाम
फसल को बचाने के लिए केवल प्रमाणित बीज की बुवाई करें. इसके साथ ही रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें. फसल में कीटनाशी दवा का छिड़काव कर सकते हैं.
पर्ण संकुचन
यह रोग मूंग और उड़द की उपज को कम कर देता है. इसको पीली चितेरी रोग के बाद दूसरा महत्वपूर्ण विषाणु रोग माना जाता है. इस रोग में पत्तियों का विकास अच्छी तरह नहीं हो पाता है. इस रोग के लगने से पत्तियों को पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं.
रोकथाम
इस रोग से फसल को बचाने के लिए बीजों को इमिडाक्रोपिरिड से 5 ग्राम उपचारित कर लेना चाहिए. इसके अलावा बुबाई के 15 दिन बाद कीटनाशी दवा का छिड़काव कर देना चाहिए. इस तरह रोग का प्रकोप कम हो जाता है.
देश में मूंग और उड़द को प्रोटीन का सबसे अच्छा स्त्रोत माना जाता है. इसके साथ ही खनिज लवण समेत कई विटामिन भी पाए जाते हैं. इन दालों का सेवन कई बीमारियों से बचाकर रखता है. ऐसे में किसानों को इनकी खेती अच्छी देखभाल के साथ करना चाहिए. अगर इन रोगों की समय रहते रोकथाम न की जाए, तो किसानों को बाजार में इनका सही मूल्य नहीं मिल पाएगा. ऐसे में किसानों के लिए मूंग और उड़द के रोगों की पहचान और उनकी रोकथाम की जानकारी ज़रूर होनी चाहिए.
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