आज हम किसानों को जिस फसल की खेती की जानकारी देने वाले हैं, वह स्वाद के साथ-साथ कई औषधीय गुणों के लिए भी जानी जाती है. आज हम किसानों को टिंडे की खेती की पूरी जानकारी देने जा रहे हैं. इसकी खेती उत्तर भारत में खरीफ के मौसम में होती है. दुनियाभर में इसको सिट्रुलस वुलगेरियस (Citrullus Vulgaris Var. Fistulosus) वनस्पतिक नाम से भी जाना जाता है. कुकरबिटेसी (Cucurbitaceae) कुल परिवार की यह सब्ज़ी बहुत ही गुणकारी है. इसकी खेती उत्तरी भारत समेत उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और आन्ध्रप्रदेश में होती है. इसकी खासियत है कि इसकी खेती गर्मी और बारिश में की जा सकती है.
उपयुक्त जलवायु
टिंडे की खेती गर्म और शुष्क जलवायु में की जाती है. बीजों के अंकुरण के लिए करीब 27-30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा माना जाता है.
मिट्टी का चयन
इसकी खेती कई प्रकार की भूमि में कर सकते हैं, लेकिन बलुई दोमट या दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. फसल की अधिक उपज और गुणवत्ता के लिए भूमि का पी.एच.मान 6.0-7.0 के बीच होना चाहिए. टिंडे की खेती नदी तटों की मिट्टी में भी की जा सकती है.
खेती की तैयारी
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. इसके बाद 3 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से कर दें. अब खेत को समतल बना लें. ध्यान दें कि खेत में पानी कम या अधिक नहीं होना चाहिए.
उन्नत किस्में
फ़सल की अधिकतम पैदावार में भूमि, तापमान, बुवाई, सिंचाई, उचित देखभाल के साथ-साथ उन्नत किस्मों का भी महत्व होता है. किसानों को अधिकतक स्थानीय उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए. वैसे की इसकी अर्का टिंडा, टिंडा एस0 48, बीकनेरी ग्रीन, हिसार सेलेक्शन-1, सेलेक्शन – 22 आदि उन्नत किस्में हैं.
खाद और उर्वरकों का प्रयोग
खेत को तैयार करने से पहले उसमें गोबर की खाद को पूरी मात्रा में मिला देना चाहिए. इसके बाद नाइट्रोजन की आधी और फ़ोस्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा खेत में डालकर जुताई करनी चाहिए. ध्यान दें कि बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा को खड़ी फसल में टॉप ड्रेसिंग कर दें.
बुवाई का समय
फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए बुवाई समय पर करनी चाहिए. बता दें कि देश के उत्तरी मैदानी भागों में इसकी खेती साल में 2 बार होती है. टिंडे की पहली बुवाई फरवरी से अप्रैल में करनी चाहिए. इसकी दूसरी बुवाई जून से जुलाई में होती है.
बीज की मात्रा
इस फसल की बुवाई उच्च गुणवत्ता, सुडौल, स्वस्थ और अच्छे बडी से करनी चाहिए. बाज की मात्रा करीब 4 से 5 किलो ग्राम पर्याप्त रहती है.
बुवाई की विधि
टिंडे की बुवाई थालों में करनी चाहिए. इसके लाइनों की दूरी करीब 2 से 2.5 मीटर होनी चाहिए, तो वहीं थालों की दूरी करीब 1 से 1.5 मीटर रखें. ध्यान दें कि हर थाले में करीब 4 से 5 बीज की बुवाई करें. इसके बीजों के अंकुरण के बाद केवल दो स्वस्थ पौधे छोड़न चाहिए, बाक़ी पौधों को उखाड़ देने चाहिए. इस तरह पौधों का विकास अच्छा होता है.
सिंचाई
टिंडे की फसल की सिंचाई भूमि, किस्म और जलवायु पर निर्भर होती है. यह एक उथली जड़ वाली फसल है, इसलिए इसमें सिंचाई की अहम भूमिका है. इसकी पहली सिंचाई अंकुरण के 5 से 8 दिन के अंदर पर कर देनी चाहिए. ध्यान दें कि इस फसल की सिंचाई बौछारी विधि से करनी चाहिए. इससे फसल की उपज 28 से 30 प्रतिशत बढ़ सकती है.
फसल की निराई-गुड़ाई
इस फसल की पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के दो सप्ताह बाद कर देना चाहिए. इस दौरान अवांछित खर पतवारों को उखाड़ देना चाहिए. इसके अलावा पौधों की जड़ों में मिट्टी भी चढ़ा देना चाहिए.
फलों की तोड़ाई
जब टिंड़े में फल बनने लगे, उसके एक सप्ताह के अंदर तुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके पौधे छोटे औऱ कोमल हो जाएं, तब तुड़ाई का उचित समय होता है. पहली तुड़ाई के 4 से 5 दिन के अंतराल पर तुड़ाई करते रहना चाहिए.
पैदावार
टिंडे की उपज भूमि, जलवायु, तापमान, बीजों की गुणवत्ता, बुवाई का समय, सिंचाई आदि पर निर्भर होती है. आमतौर पर इसकी फसल से प्रति हेक्टेयर 80 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.
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