देश के किसान विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती करते हैं. इनमें भिंडी का एक प्रमुख स्थान है. इसको लेडी फिंगर या ओकरा भी कहा जाता है. किसान भिंडी की अगेती खेती करके खूब मुनाफा कमा सकते है. गर्मियों में बाडार में भिंडी की काफी मांग होती है, क्योंकि इसमें विटामिन ए, सी समेत कई कई पोषक तत्व पाए जाते हैं. आजकल कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कई नई तकनीक द्वारा भिंडी की खेती की जा रही है. इसके साथ ही कई उन्नत किस्म भी विकसित हो चुकी है, जिनके द्वारा किसान भिंडी की फसल से अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं.
उपयुक्त जलवायु
भिंडी की खेती के लिए उष्ण और नम जलवायु की आवश्यकता होती है. इसके बीजों के जमाव के लिए करीब 20 से 25 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान चाहिए होता है. ध्यान दें कि गर्मी में 42 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान इसकी फसल को नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि ऐसे में इसके फूल गिरने लगते हैं. इसका सीधा असर उपज पर पड़ता है.
उपयुक्त भूमि
भिंडी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन हल्की दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. इससे जल निकास अच्छी तरह हो जाता है. बता दें कि इसकी खेती के लिए भूमि में कार्बनिक तत्व होना ज़रूरी है, साथ ही पी.एच.मान करीब 6 से 6.8 होना चाहिए. बता दें कि किसानों खेती के पहले एक बार मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए.
खेत की तैयारी
इसकी खेती में सबसे पहले खेत की 2 से 3 बार जुताई कर लें. इसके साथ ही खेत को भुरभुरा करके पाटा चला लें, ताकि खेत समतल हो जाए.
उन्नत किस्में
आजकल भिंडी की कई उन्नत किस्में विकसित हो चुकी हैं. इन किस्मों द्वारा किसान खेती करके फसल की उपज को बढ़ा सकते हैं. किसानों को भिंडी की किस्मों का चयन अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार करना चाहिए. वैसे भिंडी की प्रमुख किस्मों में वर्षा उपहार, अर्का अभय, अर्का अनामिका, परभनी क्रांति शामिल हैं.
निराई-गुड़ाई
भिंडी के खेत को खरपतवार मुक्त रखना है, तो फसल की बुवाई के करीब 15 से 20 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई कर देना चाहिए. बता दें कि भिंडी के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक का भी प्रयोग कर सकते हैं.
बीज और बीजोपचार
भिंडी की बुवाई के लिए 1 हेक्टेयर खेत में करीब 18 से 20 किग्रा बीज की ज़रूरत पड़ती है. ध्यान दें कि इसके बीजों को बोने से पहले करीब पानी में 24 घंटे तक डुबाकर रखें. इस तरह बीजों का अंकुरण अच्छा होता है. इसके अलावा बीजों को थायरम या कार्बेन्डाजिम से भी उपचारित कर सकते हैं.
रोग नियंत्रण
भिंडी की फसल में अधिकतर येलो मोजेक यानी पीला रोग होने का खतरा बना रहता है. इस रोग में फल, पत्तियां और पौधा पीला पड़ जाता है. अगर इस रोग से फसल को बचाना है, तो आवश्कयतानुसार मेलाथियान को पानी में घोलकर छिड़कते रहें. इससे पीला रोग का खतरा कम हो जाता है.
बुवाई
भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. ध्यान दें कि खेत में कतारों की दूरी करीब 25 से 30 सेमी होनी चाहिए. इसके साथ ही पौधों की दूरी करीब 15 से 20 सेमी की रखनी चाहिए.
सिंचाई
गर्मियों में भिंडी फसल की सिंचाई 5 से 7 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए. अगर खेत में नमी न हो, तो फसल की बुवाई से पहले भी एक सिंचाई कर सकते हैं.
तोड़ाई और उपज
भिंडी के फलों की तुड़ाई उसकी किस्म पर निर्भर होती है. वैसे इसकी तुड़ाई करीब 45 से 60 दिनों में शुरू कर देनी चाहिए. ध्यान दें कि तुड़ाई 4 से 5 दिनों के अंतराल पर रोजाना तुड़ाई करें.
उपज
अगर किसान भिंडी की खेती उन्नत किस्मों और अच्छी देखभाल के साथ की जाए, तो इससे प्रति हेक्टेयर करीब 60 से 70 विक्टंल उपज प्राप्त हो जाती है.
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