यूं तो भारतीय कृषक बेशुमार फसलों का उत्पादन करते हैं, लेकिन जब बात तिलहन फसलों का आती है, तो हमारे किसान भाइयों का आतुरता चरम पर पहुंच जाती है. कालांतर में तिलहन फसलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु पीली क्रांति की शुरूआत की गई थी. पीली क्रांति का मकसद यही था कि तिलहनी फसलों के उत्पादन की मात्रा को बढ़ाया जाए, ताकि हम तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकें.
तिलहन फसलों में कई प्रकार की फसलें शामिल हैं, जिसमें मूंगफली, सोयाबीन, सरसों समेत कई अन्य फसलें शामिल हैं, लेकिन इस लेख में हम आपको मूंगफली के फसल के बारे में विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं. लेख में आगे हम आपको मूंगफली की फसल के बारे में सब कुछ बताएंगे कि कैसे आप इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं.
मूंगफली के बारे में बुनियादी जानकारी
जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि मूंगफली एक तिलहन फसल है. भारत के कई राज्यों में इसका उत्पादन किया जाता है, जिसमें राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व पंजाब शामिल है. माना जाता है कि इन सभी राज्यों में से सबसे ज्यादा मूंगफली का सर्वाधिक उत्पादन राजस्थान में किया जाता है.
एक आंकड़े के मुताबिक, राजस्थान में प्रतिवर्ष 3 लाख 46 लाख हेक्टेयर में इस फसल का उत्पादन किया जाता है. आइए, आगे इस लेख में जानते हैं कि अगर कोई किसान भाई मूंगफली की खेती कर अच्छा मुनाफा आर्जित करना चाहते हैं, तो उन्हें मूलत: किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए व प्रारंभ में उन्हें चरणों से होकर गुजरना होगा.
ऐसे करें मिट्टी की तैयारी
किसी भी फसल को उगाने से पहले मिट्टी की तैयारी उसका पहला पड़ाव होता है. अगर आप किसी फसल को उगाने से पहले मिट्टी को भलीभांति तैयार करने में सफल रहते हैं, तो यूं समझ लीजिए कि आपका 50 फीसद काम संपन्न हो चुका है.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अलग-अलग फसलों को उगाने के लिए मिट्टी को तैयार करने की विधि अलग-अलग होती है. वहीं, मूंगफली की फसल के लिए आपको सबसे पहले जल निकासी वाली, भुरभुरी मिट्टी, दोमट मिट्टी का चयन करना होगा. इस तरह की मिट्टी मूंगफली के उत्पादन में काफी उपयोगी मानी जाती है.
मिट्टी की हल से जुताई करके उसे समतल कर लेना चाहिए. इससे आगे की गतिविधियां सरल हो जाती हैं. वहीं, मिट्टी में विभिन्न प्रकार के कीड़े पाए जाते हैं, जो आपकी फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
इनसे बचाव करने हेतु आप क्विनलफोस 1.5 प्रतिशत किलोग्राम प्रति हेक्टयेर की दर से अंतिम जुताई के साथ जमीन में मिला देना चाहिए. मिट्टी को तैयार करने के बाद अगला पड़ाव बुवाई का आता है. आइए, इस लेख में हम आपको बताते हैं कि मूंगफली की खेती करने हेतु आप किस प्रकार से बुवाई कर सकते हैं.
मूँगफली की बुवाई
जैसा कि हमने आपको बताया कि किसी भी फसल को उगाने के लिए मिट्टी को तैयार करने के बाद अगला पड़ाव बुवाई का आता है, लेकिन हर फसल की स्थिति में बुआई करने की विधि कमोबेश अलग होती है.
वहीं, मूंगफली की खेती करने जा रहे हैं, तो इस स्थिति आपको 70 से 80 किलोग्राम तक बीज की मात्रा लेकर 60 से 70 हेक्टेयर तक इसका उपयोग करना चाहिए व बुवाई के बीज निकालने के लिए स्वस्थ्य बीजों का ही चयन करना चाहिए. बोने से 10 से 15 दिन पहले गिरि की फलियों को अलग कर लेना चाहिए.
बीज को बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेण्डिजिम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए. इससे जहां बीज में अंकुरण अच्छा होता है, तो वहीं शुरूआती चरण में लगने वाले तमाम रोगों से भी इसे बचाया जाता है.
एक बात का ध्यान रहे कि मूंगफली को कतार में बोना चाहिए. कम फैलने वाली और गुच्छे वाली मूंगफलियों के बीच तकरीबन 30 सेमी की दूरी होनी चाहिए. मिट्टी की नमी की मात्रा को ध्यान में रखते हुए बीज को 5 से 6 सेमी की गहराई में बोना चाहिए. इससे आगे चलकर उत्पादन अच्छा होता है.
खाद एवं उर्वरक का उपयोग
मिट्टी को अच्छे से तैयार करने के बाद फसल के उचित संवर्धन हेतु खाद एवं उर्वरक की अत्यंत आवश्यकता होती है. फसल चाहे कोई सी भी क्यों न हो लेकिन खाद एवं उर्वरक के बिना उसकी उचित वृद्धि संभव नहीं है.
वहीं, मूंगफली की खेती करने के बाद उर्वरक का उपयोग करते समय आपको विभिन्न प्रकार की बातों को ध्यान रखना चाहिए. अगर आप मूंगफली की खेती करने जा रहे हैं, किस तरह की मिट्टी पर आप इसकी खेती कर रहे है, किस तरह का वातावरण है, जहां आप इसकी खेती कर रहे हैं, सिंचाई की सुविधा व उर्वरा शक्ति को ध्यान में रखते हुए उर्वरक का उपयोग करना चाहिए.
तिलहन फसल होने के कारण इसे नाइट्रोजन युक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन इसके बावजूद भी इसके बेहतर उत्पादन के लिए 15 से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन व 50 से 60 किलोग्राम फासफोरस इसके उचित उत्पादन के लिए उपयोगी रहता है.
अगर आप गोबर की खाद का उपयोग करने जा रहे हैं, तो बुवाई से पहले आप इसे मिट्टी में 5 से 10 टन तक मिला सकते है. मूंगफली की अधिक उत्पादन करने हेतु अंतिम जुताई करने हेतु आप 250 किलोग्राम जिप्सिक का उपयोग कर सकते हैं.
यह आपके लिए उपयोगी रहेगा. इससे मूंगफली का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में होगा. जिप्सम के अलावा, अधिक उत्पादन हेतु मूंगफली की खेती के दौरान आप नीम की खल का उपयोग कर सकते हैं. इससे जहां मूंगफली का दाना मोटा होता है. आप अंतिम जुताई से पूर्व 400 किलोग्राम नीम की खल का उपयोग कर सकते हैं.
इससे जहां दीमक में नियंत्रण होता है, तो वहीं नत्रजन तत्वों की पूर्ति हो जाती है. दक्षिण भारत के कई जगहों पर इसका उपयोग बहुतायत उत्पादन के लिए किया जाता है. आइए, इस लेख में आगे मूंगफली की खेती करने के दौरान सिंचाई करते समय किन बातों का ध्यना रखना है. इस बात के बारे में जानते हैं.
सिंचाई
हर फसल की खेती के लिए सिंचाई पर विशेष ध्यान देना होता है. बिना सिंचाई के किसी भी फसल की खेती संभंव नहीं है, लेकिन शायद आपको पता न हो कि हर फसल की सिंचाई कि विधि अलग होती है.
वहीं, मूंगफली की खेती के दौरान सिंचाई की बात करें, तो मूंगफली की खेती के दौरान सिंचाई का आवश्यता नहीं पड़ती है, लेकिन बारिश के माध्यम से इसकी कमोबेश सिंचाई हो ही जाती है, लेकिन अगर पौधे में फूल आते समय वह सूख जा रहे हो, तो समझिए की सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है.
निराई, गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
आमतौर पर खरपतवार की समस्या हर फसल के साथ रहती है. इससे निपटने के लिए अलग तरह की विधियां निर्धारित की गई है. वहीं, अगर मूंगफली की खेती करते समय खरपतवार की समस्या का सामना करना पड़ रहा तो इससे निपटने के लिए आप निराई गुड़ाई का सहारा ले सकते हैं.
आप हर दो दिन बाद मूंगफली की खेती करने के दौरान उसमें निराई गुड़ाई कर सकते हैं. मूंगफली का पेड़ काफी छोटा होता है, जो आमतौर पर खरपतवार के उगने के बाद मिट्टी में पूरी तरह से ढंग का जाता है, उसकी वृद्धि में अवरोधक बनता है.
इन अवरोधों से बचने के लिए आपके लिए निराई गुड़ाई करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा आप बुवाई के 2 दिन बाद तक पेन्डीमेथालिन नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर छिड़काव कर देना चाहिए.
बीज उत्पादन
मूंगफली के लिए बीज उत्पादन हेतु 15 से 20 मीटर की दूरी पर मूंगफली की फसल न उगाई गई हो. बीज उत्पादन के लिए सभी आवश्यक कृषि क्रियाएं जैसे खेत की तैयारी, बुवाई के लिये अच्छा बीज, उन्नत विधि द्वारा बुवाई, खाद एवं उर्वरकों का उचित प्रयोग, खरपतवारों एवं कीडे़ एवं बीमारियों का उचित नियंत्रण आवश्यक है.
आवंछनीय पौधों को काट लें, क्योंकि यह पौधों की वृद्धि में अवरोधक बनते हैं. फसल जब अच्छी तरह पक जाए तो 10 मीटर की दूरी छोड़कर उसे अच्छी तरह काट लेना चाहिए. दोनों 8 से 10 प्रतिशत से ज्यादा की नमी नहीं होनी चाहिए.
कटाई
आमतौर पर जब पौधे पीले रंग के हो जाए और नीचे की पत्तियां गिरने लग जाए तो तुरंत उसकी कटाई कर लेनी चाहिए. फलियों से पौधों को अलग करने के बाद उसे एक सप्ताह तक सूखाना चाहिए. फलियों को तब तक सुखाते रहना चाहिए, जब तक की उसमें से नमी की मात्रा 10 फीसद से कम न हो जाए, चूंकि नमीयुक्त मूंगफली भडांरित करने पर उसमें सफेद रंग की फुंफंदी पड़ने की समस्या रहती है.
आर्थिक लाभ
वहीं, इन सभी प्रक्रियाओं के संपन्न होने के बाद अब सवाल यह पैदा होता है कि आखिर इससे कितना मुनाफा आर्जित किया जा सकता है, तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आगर आप इसे 30 रूपए किलोग्राम के भाव से इसे बेचते हैं, तो इससे आप 30 से 40 हजार रूपए तक का मुनाफा अर्जित कर सकते हैं. लाभ के दृष्टिकोण से यह मुनाफे की खेती मान जाती है, जिसे करके हमारे किसान भाई अच्छा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं.
...तो किसान भाइयों मूंगफली के संदर्भ में आपको हमारा यह विशेष लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताइए. वहीं, अन्य फसलों की खेती के संदर्भ में अन्य लेख पढ़ने के लिए आप पढ़ते रहिए...कृषि जागरण. कॉम
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