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बुवाई की उन्नत विधियों की जानकारी, मिलेगा फसल का अधिक उत्पादन

केरा एवं पोरा विधि में देशी हल के पीछे एक लकड़ी की कीपनुमा आकृति होती हैं, जिसमें बांस की एक नली लगी होती है. जिसकी मदद से बीज गिराते हुए नली होते हुए जमीन के अन्दर चला जाता है और फिर हल की मदद से मिट्टी से ढक जाता है. इन विधियों से बीज की अनियंत्रित मात्रा गिरती है, जिससे बीज की मात्र जमीन में अधिक हो जाती है और फसल से खरपतवार निकालने में काफी कठिनाई होती है.

प्राची वत्स
बुवाई की उन्नत विधियां
बुवाई की उन्नत विधियां

फसल का अधिक उत्पादन सही बुवाई पर निर्भर होता है. ऐसे में अगर बुवाई की बात करें, तो इसकी भी अपनी अहम भूमिका है. किसानों द्वारा यह ध्यान रखना अति-आवश्यक होता है कि वह फसलों की बुवाई कब और किस विधि से की जाए. प्राचीन काल से ही बीज बोने के लिए केरा एवं पोरा विधियों का प्रयोग होता आ रहा है.

आज इसी कड़ी में हम बुवाई की उन्नत विधियों के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिससे हमारे किसान भाइयों को लाभ मिल सकता है.केरा एवं पोरा विधि में देशी हल के पीछे एक लकड़ी की कीपनुमा आकृति होती हैं, जिसमें बांस की एक नली लगी होती है. जिसकी मदद से बीज गिराते हुए नली होते हुए जमीन के अन्दर चला जाता है और फिर हल की मदद से मिट्टी से ढक जाता है. इन विधियों से बीज की अनियंत्रित मात्रा गिरती है, जिससे बीज की मात्र जमीन में अधिक हो जाती है और फसल से खरपतवार निकालने में काफी कठिनाई होती है. किसानों के इस परेशानियों को दूर करने के लिए एक ऐसा कृषि यंत्र खोजा गया जिससे किसान भाई सही मात्रा में बीजों की बुवाई करने में सफल हो पाए. सुधरे हुए कृषि यंत्रों के प्रयोग से फसल की उपज में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि की जा सकती है.

बुवाई यंत्र का कार्य (Sowing machine)

बीज डालने वाले यंत्र का मुख्य कार्य

  • उचित मात्रा में बीज

  • पक्तियों में उचित गहराई पर बीज एवं खाद को डालना.

  • खूँड में गिरे हुए बीज एवं खाद को भली प्रकार ढ़कना.

हस्त चालित खाद एवं बीज छिडकाव यंत्र (Hand Operated Fertilizer & Seed Sprayer)

यह यंत्र इंसानों द्वारा चलाया जाता है. इस यंत्र को चलाने के लिए इसको पट्टे द्वारा गले में बांध लिया जाता है और फिर जिस दिशा में हैंडल को घुमाया जाता है और बीज बक्से में नीचे छिद्र से होते हुए गोल प्लेट पर गिरता है और उपकेन्द्र बल के नियमानुसार बाहर की ओर दूर बिखर जाता है.

हैंडल को अगर एक पूरा चक्कर घुमाया जाए तो प्लेट 8 चक्कर घुमती है. हैडल 45 चक्कर/मिनट की चाल से चलाने से बीज लगभग 7.25 मीटर चौड़ाई तक गिरता है. जिससे एक घंटे में लगभग एक हेक्टेयर खेत की बुवाई आसानी से की जा सकती है.

ट्रैक्टर चालित बीज छिडकाव यंत्र (Tractor Driven Seed Sprayer)

दरअसल इस यंत्र का प्रयोग बीज और खाद दोनों छिटने के लिए किया जाता है. यह 25-30 अश्व शक्ति के ट्रैक्टर से आसानी से चल सकता है. इसके बॉक्स में एक बार में 2.5-3.0 क्विंटल खाद या अनाज रखकर छिड़काव कर सकते हैं. इसे टै्रक्टर के पीछे 3 प्वांइन्ट लिंकेज से बांध कर पी.टी.ओ. की सहायता से चलाया जाता है.

हस्त चालित बीज यन्त्र (Manual seeding Machine)

इस यंत्र का प्रयोग अक्सर छोटे और सीमांत किसान एवं पर्वतीय इलाकों के किसान करते हैं. झारखण्ड प्रदेश के लिए यह यंत्र बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा. इसे चलाने के लिए दो व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है. एक व्यक्ति इसे खिंचता है तथा दूसरा व्यक्ति इसे नियंत्रित करता है. इसकी कार्य क्षमता 0.75-1.0 एकड़ प्रति दिन है.

कल्टीवेटर यंत्र से बुवाई का तरीका (Method of sowing with cultivator machine)

यह यंत्र बैलों द्वारा चलाई जाती है. इसमें दो या तीन वाले कल्टीवेटर के हर खूँड़ के पीछे बीज गिराने वाली पाइप लगी होती है. जिस पाइप का उपरी भाग एक कीप से जुड़ा होता है. कीप में बीज एवं खाद गिराने से सभी पाइपों में बराबर भागों में बंट जाता है. इसकी कार्य क्षमता 2.5 एकड़ प्रतिदिन तक होती है.

पशु चालित उर्वरक एवं बीज बुवाई यंत्र (Animal Driven Fertilizer & Seed Sowing Machine)

मिट्टी की किस्म एवं बैल की शक्ति के आधार पर यह यंत्र 3-5 खूँड़ में एक साथ बुवाई करता है. इस यंत्र की सहायता से बीज एवं खाद दोनों नियंत्रित मात्रा में जमीन के अन्दर गिरता है. इससे खाद, बीज से 2.5 से.मी. हटकर एवं 2.5 से.मी. गहरा गिरता है. खाद एवं बीज नियंत्रित मात्रा में गिराने के लिए कई प्रणालियाँ लगी होती है. इस यंत्र में पंक्ति से पंक्ति की दूरी इच्छानुसार किसान भाई बदल सकते हैं. इस ड्रिल ज्यादातर किसान भाई गेहूँ, जौ इत्यादि की बुवाई कर सकते हैं और इसकी कार्य क्षमता 2.5-3.75 एकड़ प्रतिदिन की है.

ट्रैक्टर चालित बीज एवं उर्वरक ड्रिल (Tractor Driven Seed & Fertilizer Drill)

इस ड्रिल में मुख्य रूप से बीज बॉक्स, खाद बाक्स, बीज नियंत्रित प्रणाली, खाद नियंत्रित प्रणाली, बीज नली, खूँड़ ओपनर एवं ट्रांसपोर्ट व्हील इत्यादि होते हैं. सीड ड्रिल में एक अक्ष होता है, जो फ्लुटेड रोलर को चलाता है और यह सीड बाक्स के नीचे स्थित होता है. फ्लुटेड रोलर बीज को बॉक्स से लेता है और बीज नली में डाल देता है.

चूँकि बीज नली खूँड़ ओपनर से जुड़ी होती है, इसलिए बीज सीधे खूँड ओपनर से होते हुए खूँड़ में गिर जाता है. यह ड्रिल भारत के उत्तरी भाग में बहुत प्रचलित है. इसका यंत्र का प्रयोग झारखण्ड प्रदेश के किसानों द्वारा किया जाता है. इससे किसानों के समय की बचत तथा उपज में वृद्धि हो सकती है. यह पशु चालित बीज सह खाद ड्रिल की तुलना में 70 प्रतिशत मजदूरी की बचत, 25-30 प्रतिशत संचालन खर्च में बचत तथा 3 प्रतिशत उपज में वृद्धि करता है.

English Summary: Know about the advanced methods of sowing Published on: 19 February 2022, 05:38 PM IST

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