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रेगिस्तानी इलाकों में अधिक उपज देने वाली घासों के बारे में जानें

भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिमी भाग में एक बड़ा शुष्क क्षेत्र है जिसे जो भारत और पाकिस्तान के बीच एक फैला हुआ है, जिसे थार रेगिस्तान या ग्रेट इंडियन डेजर्ट नाम से जाना जाता है.

हेमन्त वर्मा
रेगिस्तानी इलाकों  में उगने वाली घास
रेगिस्तानी इलाकों में उगने वाली घास

थार मरुस्थल का लगभग 85 फीसदी हिस्सा भारत में और शेष 15 फीसदी पाकिस्तान में है. भारत में, यह लगभग 17 मिलियन हेक्टेयर में फैला हुआ है, और शेष 3 मिलियन हेक्टेयर भूमि पाकिस्तान में है. घास न केवल पशुओं के चारे के रूप में बल्कि मिट्टी के कटाव और रेगिस्तान को फैलने से भी रोकती है. पश्चिमी राजस्थान में कुल चरागाहों की 80 फीसदी जमीनें खराब हैं, जिनमें औसतन चारा उत्पादन दर 400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से भी कम है.

रेगिस्तान की वनस्पति (Desert vegetation)

भारतीय रेगिस्तान की वनस्पतियों में घास की 68 प्रजातियां शामिल हैं. पश्चिमी राजस्थान के बड़े हिस्से में बड़े पैमाने पर रेत के टीले और रेतीले मैदान हैं जो बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्र हैं. इन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त चरागाह प्रजातियां सेवण घास, धामन घास, काला-धामन, लॉन घास, नीली पेनिक घास और ज्वारनकुश हैं. तो आइये जानते है महत्वपूर्ण चरागाह घास की प्रजातियां और उनकी विशेषताएं-  

सेवण घास या लेसीयूरस सिंडिकस (Sevan or Lasiurus sindicus grass)

यह 250 मिमी से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों की सबसे महत्वपूर्ण चराई घासों में से एक है. इसका उपयोग आमतौर पर स्थायी चरागाहों की स्थापना के लिए किया जाता है और पंक्तियों में छेद करके प्रति हेक्टेयर 5-6 किलोग्राम बीजों को 75 सेमी की दूरी पर 1 सेमी गहराई में बोना चाहिए ऊपर से 1-2 सेमी मिट्टी चढ़ाते हैं. सेवन घास मुख्यत्या माली, नाइजीरिया, उत्तरी अफ्रीका, मिश्र, सोमालिया, इथोपिया, ईरान, दक्षिण उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है. यह एक बारहमासी घास है, जिसमें की लंबाई 1 मीटर, पत्तियां 30 सेमी तक लंबी और 6 मिमी चैड़ी होती है. इसकी अनुशंसित किस्में काजरी सेवण-1, काजरी-319 और काजरी-317 हैं जो करीब प्रति हेक्टेयर 60 से 85 क्विंटल शुष्क पदार्थ की उपज देती हैं.

इसमें कच्चे प्रोटीन की मात्रा 5.9 से 6.7 प्रतिशत तक होती है, लेकिन जब इसकी खेती की जाती है, तो कच्चे प्रोटीन की मात्रा 13 प्रतिशत तक और कभी-कभी 15 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. कच्चे रेशे की मात्रा 24 से 38 प्रतिशत, कैल्शियम 0.76 से 1.11 प्रतिशत फास्फोरस 0.15 से 0.44 प्रतिशत तक होता है. तीन हेक्टेयर सेवण घास चरागाह पूरे वर्ष में एक वयस्क पशु के लिए पर्याप्त है.

ग्रामना घास या पैनिकम एंटिडोटेल (Gramna or Panicum antidotale)

यह मुख्यत्या रेत के टीलों पर पायी जाती है और मिट्टी को बांधे रखने और सूखे के प्रति प्रतिरोधी हैं. यह बहुत ही उत्पादक घास है जो चारे की आपूर्ति के अच्छे स्त्रोत के रूप में काम कर सकती है. इस घास की अनुशंसित किस्में काजरी-331 और काजरी-347 हैं. ये किस्में 20 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर शुष्क पदार्थ की उपज प्रदान करती हैं. ग्रामना एक लम्बी और गहरी जड़ वाली घास हैं जिसकी लंबाई 125 सेमी तक होती है और टिलरों की संख्या भी करीब-करीब 25 तक होती हैं.

घास के शुष्क पदार्थ की मात्रा लगभग 20 प्रतिशत होती है शुष्क पदार्थ में क्रूड प्रोटीन की मात्रा लगभग 14 प्रतिशत ईथर का अर्क 1-8 प्रतिशत, कच्चे रेशे 29 प्रतिशत, नाइट्रोजन मुक्त अर्क 45 प्रतिशत, राख 9.5 प्रतिशत, केल्शियम 0.43 प्रतिशत और फास्फोरस 0.30 प्रतिशत होता है. घास सभी प्रकार के पशुधन के लिए स्वादिष्ट है.

कराड़ या डायकेंथियम एनुलैटम (Karad grass or Dichanthium annulatum)

राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में, घास मुख्यरूप से 350 मिमी और उससे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में होती हैं. यह एक बारहमासी घास हैं जो उच्च गुणवत्ता, ओज और उत्पादकता देने वाली हैं. कराड़ की अनुशंसित किस्में काजरी-490, काजरी-491 और मार्वल-8 हैं. इन किस्मों की शुष्क पदार्थ की उपज 35-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. शाखाएं रेंगने वाले तने से खड़ी, इंटर्नोड्स और नोड्स बैंगनी रंग के होते हैं जबकि तने चिकने और चमकदार होते हैं. इसका पौधा परिपक्व अवस्था पर 75 सेमी की ऊंचाई तक बढ़ता है, तथा लगभग 100 टिलर का उत्पादन करता है. घास में कच्चे प्रोटीन की मात्रा 3.87 से 6.97 से प्रतिशत और फस्फोरस की मात्रा 0.43 से 0.50 प्रतिशत तक होती हैं. मूल चरागाहों में प्रति हेक्टेयर दो भेड़ों की वहन क्षमता होती है, लेकिन एक बोया गया करेड़ चारा दो से पांच भेड़ प्रति हेक्टेयर की क्षमता होती हैं.

धामन घास या सेंचरस सिलियरीस (Dhaman grass or Centurus ciliaris)

यह प्रमुख शुष्क प्रतिरोधी घास है जिसे आमतौर पर राजस्थान में और भारत के विभिन्न हिस्सों में अंजन घास के रूप में जाना जाता है. यह 150 से 1250 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में व्यापक रूप से पायी जाती है. यह एक बारहमासी घास है, जिसके फूलों का सिर बेलनाकार, 3 से 16 सेमी लंबा और 1 से 2 सेमी चैड़ा जिसमें स्पाइकलेट्स पीला, गुलाबी, बैंगनी और काले रंग का होता है. अनुशंसित किस्में काजरी-358, मारवाड़ अंजन, बिलोएला और मोलोपो जिनसे 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखी उपज मिलती हैं. इसमें 8 से 12 फीसदी क्रूड प्रोटीन होता है. इसके अलावा धामन से 125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की पैदावार भी होती हैं.

काला-धामन या सेंचरस सेटिगरस (Kala Dhaman or Birdwood grass or Cenchrus setiger)

यह पूरे अफ्रीका, अरब और भारत में पायी जाती है. इसे संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया और भारत से दक्षिण अमेरिका में एक चारा घास के रूप में पुरःस्थापित किया गया था. यह शुष्क क्षेत्र के चरागाह की प्रमुख बारहमासी घासों में से एक है और इसके सूखे प्रतिरोध के लिए जाना जाता है. यह सभी प्रकार के पशुधन के लिए स्वादिष्ट है, इसे बीजों से उगाया जा सकता है. इसके पौधे में करीब 25 टिलर पाये जाते हैं जिनकी औसत लंबाई 50 सेमी तक हो सकती हैं. अच्छी परिस्थितियों में, 80 सेमी की ऊंचाई तक भी बढ़ सकता हैं. पत्तीयों की ब्लेड चमकदार होती है, जो 10 से 20 सेमी लंबी और 3-7 मिमी चैड़ी होती है. अंजन की अधिक उपज देने वाली किस्में शुष्क क्षेत्रों में अगस्त से अप्रैल के दौरान 2-3 कटाई से प्रति हेक्टेयर लगभग 4 से 5 टन हरा चारा पैदा करती हैं. भारत के आर्द्र क्षेत्रों में सिंचित परिस्थिति में 23 से 25 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है. घास की क्रूड प्रोटीन 5 से 11 प्रतिशत और फास्फोरस शुष्क पदार्थ के 0.21 से 0.64 प्रतिशत तक होता है.

English Summary: Know about high yielding grasses in desert areas Published on: 27 April 2021, 11:08 AM IST

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