दलहनी फसलों में उड़द की लोक्रियता सबसे अधिक है. हमारे देश के लगभग हर राज्य में इसकी खेती होती है, यही कारण है कि उड़द को वार्षिक आय बढ़ाने वाला फसल भी कहा जाता है. इसके खेती के लिए जायद का मौसम सबसे उपयुक्त है.
शरीर के लिए अत्यंत पौष्टिक होने के साथ-साथ उड़द की मार्केट डिमांड भी अच्छी है. उत्पादन की दृष्टिसे देखा जाए तो भूमि को बिना नुकसान पहुंचाए ये उपज भी अच्छी देती है. वहीं इससे बनने वाला खाद भूमि को पोषक तत्व प्रदान करता है. चलिए आपको बताते हैं कि कैसे आप बहुत कम लागत में उड़द की खेती कर सकते हैं.
जलवायु
उड़द की खेती के लिए उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त मानी गई है, यह फसल उच्च तापक्रम को सहन करने में पूरी तरह से सक्षम है. यही कारण है कि इसकी खेती सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में होती है.
तापमान
इसकी खेती के लिए सिंचाई सुविधाओं का होना जरूरी है. आम तौर पर 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना गया है. हालांकि, उड़द बड़ी आसानी से43 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान भी सह सकती है. अच्छी सिंचाई मिलने का मतलब जलभराव से बिलकुल नहीं है, इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए. जलभराव पूरे उत्पादन को नष्ट कर सकता है.
उपयुक्त भूमि
इसकी खेती बलुई मिट्टी पर बड़ी आसानी से हो सकती है. हालांकि गहरी काली मिट्टी पर भी इसकेलिए उपयुक्त ही है. मिट्टी का पी एच मान 6.5 से 7.8 तक होना लाभकारी है.
खेत की तैयारी
भारी मिट्टी पर 2 से 3बार जुताई करना जरूरी है. जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल बना लेना फायदेमंद है. इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है. खरीफ में इसके बीजोंको 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोया जा सकता है, जबकि ग्रीष्मकालीन समय में 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीजों को बोया जा सकता है.
सिंचाई
वर्षा के अभाव में फलियों के बनते समय सिंचाई की जानी चाहिए.इस फसल को 3 से 4 सिंचाई की जरूरत पड़ती है. पहली सिंचाई पलेवा के रूप में और बाकि की सिंचाई 20 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए.
कटाई
इसकी कटाई के लिए हंसिया का उपयोग किया जाना चाहिए. ध्यान रहें कि 70 से 80 प्रतिशत फलियों के पकने पर ही कि कटाई का काम किया जाना चाहिए. फसल को खलिहान में ले जाने के लिए बण्डल बना लें.
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