जून का महीना अरहर की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है. ऐसे में अगर आप भी अरहर से अच्छा मूल्य कमाना चाहते हैं, तो इसकी खेती कर सकते हैं. खरीफ के मौसम में होनी वाली इसकी खेती में अक्सर ज्वार, बाजरा, उर्द और कपास की फसलें सहयोगी होती है. किसान अरहर के साथ इनकी बुवाई भी प्राय तौर पर करते हैं.
इन फसलों की लागत अधिक नहीं है, क्योंकि सिंचाई या देखभाल की कुछ खास आवश्यकता नहीं पड़ती. दलहनी फसल होने की वजह से यह मिटटी की उर्वरता को बढ़ाने में भी सहायक है.
वैसे अगर आप कुछ छोटा-मोटा बिजनेस करना चाहते हैं, तो दलहनी फसलों की सूखी लकड़ियां आपके काम भी आ सकती है, क्योंकि आम तौर पर टोकरी, छप्पर, मकान की छत और ईंधन आदि के लिए इनका उपयोग किया जाता है. चलिए आपको इसकी खेती के बारे में बताते हैं.
जलवायु और मिट्टी
अरहर की खेती के लिए दोमट या रेतीली मिट्टी उपयुक्त मानी गई है. इसे नम और शुष्क जलवायु वाले पौधों की श्रेणी में रखा गया है. अरहर की कुछ उन्नत किस्में खास तौर पर प्रसिद्ध है, जैसे- बांझपन रोग प्रतिरोधी किस्में, शीघ्र पकने वाली किस्में, मध्यम समय में पकने वाली किस्में और उकटा प्रतिरोधी किस्में आदि.
खेत की तैयारी और बुवाई
खेत की पहली जुताई के लिए मिट्टी पलटने वाले हल का उपयोग करना चाहिए. इसके बाद 2 से 3 जुताई आप देसी हल से भी कर सकते हैं. ज़ल्दी पकने वाली किस्मों की बुवाई के लिए पहले या दूसरा पखवाड़ा सही है. मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों की बुवाई करना चाहते हैं, तो मध्य जून से जुलाई का पहले पखवाड़ा बेहतर है.
सिंचाई और जल निकासी
अरहर की खेती में बुवाई के समय, फली बनते समय और उसके बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई की जरूरत होती है. वर्षा के दिनों में प्राय सिंचाई की कोई जरूरत नहीं होती. हां, लेकिन ध्यान रहे कि खेतों में पान न भरने पाए. जल भराव की स्थिति में अरहर को नुकसान पहुंचता है.
फसल की कटाई–मड़ाई
80 प्रतिशत फलियों के भूरे होने के बाद फसल की कटाई करनी चाहिए. जब पौधे पूरी तरह सूख जाएं, तो लकड़ी से पीटकर और जमीन में पटककर फलियों को अरहर के पेड़ से अलग करना चाहिए. दानों को 7 से 10 दिन धूप में सुखाना न भूलें.
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