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खेतों से बगीचों तक सभी उत्पादकों के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन, जानें इसे जुड़ी सभी जानकारी

आईपीएम एक समग्र दृष्टिकोण है, जो सतत कृषि, पर्यावरणीय सुरक्षा, और आर्थिक लाभ का संतुलन प्रदान करता है. किसानों और कृषि वैज्ञानिकों को मिलकर इसे व्यापक स्तर पर अपनाने की जरूरत है. इससे न केवल फसल उत्पादन में सुधार होगा, बल्कि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिलेगा.

डॉ एस के सिंह
Environmentally Safe Farming Practices
"रसायनों के अत्यधिक उपयोग को न कहें, आईपीएम को हाँ कहें " (सांकेतिक तस्वीर)

एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) एक सस्ती, पर्यावरण-अनुकूल और व्यापक दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य कीटों की संख्या को 'आर्थिक क्षति सीमा' (Economic Injury Level, EIL) से नीचे बनाए रखना है. यह प्रबंधन विधियों के तालमेल और प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग करता है. रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग अंतिम उपाय के रूप में किया जाता है, जब अन्य उपाय विफल हो जाते हैं.

आईपीएम के मुख्य घटक और उद्देश्यों

  1. निगरानी और पहचान: आईपीएम कार्यक्रम में कीटों, उनकी प्रजातियों, और उनकी जीवन चक्र की सटीक पहचान शामिल है. यह सुनिश्चित करता है कि केवल आवश्यकतानुसार कीटनाशकों का उपयोग हो, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव कम हो.
  2. निवारक उपाय: कीटों के प्रकोप को रोकने के लिए कल्चरल और जैविक उपायों का उपयोग किया जाता है. उदाहरणस्वरूप:
  • फसल अवशेषों का प्रबंधन
  • फसल चक्र (Crop Rotation)
  • कीट-प्रतिरोधी किस्मों का चयन इत्यादि
  1. नियंत्रण विधियां: आईपीएम में नियंत्रक विधियों का चयन प्रभावशीलता और पर्यावरणीय सुरक्षा के आधार पर किया जाता है. इनमें निम्न शामिल हैं...

व्यवहारिक नियंत्रण: खेतों की सफाई और गहरी जुताई.

यांत्रिक नियंत्रण: जाल का उपयोग, हाथ से कीट हटाना.

जैविक नियंत्रण: परजीवियों और प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग.

रासायनिक नियंत्रण:  केवल आवश्यकता पड़ने पर सुरक्षित और लक्षित कीटनाशकों का उपयोग.

आईपीएम क्यों जरूरी है?

  1. पर्यावरण संरक्षण: रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग मिट्टी, जल, और वायु को प्रदूषित करता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल लाखों लोग रासायनिक कीटनाशकों के संपर्क में आने से बीमार होते हैं. रासायनों का अत्यधिक उपयोग प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ता है, जिससे मित्र कीट मर जाते हैं और कीटों की प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है.
  2. सतत कृषि उत्पादन: आईपीएम न केवल पर्यावरणीय जोखिम कम करता है, बल्कि फसल उत्पादन की लागत भी घटाता है. यह सुनिश्चित करता है कि फसल की गुणवत्तापूर्ण पैदावार हो और किसानों को अधिक लाभ मिले.
  3. प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना: हानिकारक कीड़ों और उनके प्राकृतिक शत्रुओं के बीच संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है. रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से यह संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे नए और अधिक हानिकारक कीट प्रजातियां उभर सकती हैं.

आईपीएम का कार्यान्वयन

आईपीएम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए चार-स्तरीय दृष्टिकोण अपनाया जाता है....

  1. एक्शन थ्रेशोल्ड सेट करना: यह निर्धारित करना कि किस स्तर पर कीट नियंत्रण की आवश्यकता है. एक भी कीट देखने पर कार्रवाई जरूरी नहीं होती.
  2. निगरानी और पहचान: सभी कीट हानिकारक नहीं होते. इसलिए, केवल उन कीटों को लक्ष्य बनाया जाता है, जो फसल को आर्थिक हानि पहुंचा सकते हैं.
  3. निवारक उपाय: फसल, मिट्टी, और पर्यावरण का प्रबंधन इस प्रकार किया जाता है कि कीटों का प्रकोप कम हो.
  4. नियंत्रण: जब निवारक उपाय विफल हो जाएं, तो प्रभावी नियंत्रण उपायों का चयन किया जाता है. प्राथमिकता कम जोखिम वाले उपायों को दी जाती है, और अंतिम विकल्प के रूप में लक्षित रसायनों का उपयोग किया जाता है.

आईपीएम के फायदे और चुनौतियां

आईपीएम के फायदे

पर्यावरणीय सुरक्षा: रसायनों के उपयोग में कमी.

सतत उत्पादन: कम लागत और उच्च लाभ.

मानव स्वास्थ्य संरक्षण: जहरीले रसायनों के संपर्क में कमी.

  • आईपीएम की चुनौतियां
  • किसानों में जागरूकता की कमी.
  • प्रशिक्षित श्रमिकों की आवश्यकता.
  • आईपीएम के सिद्धांतों को अपनाने में समय और संसाधन लगते हैं.

आईपीएम और जैविक खेती के बीच अंतर

आईपीएम और जैविक खेती में कई समानताएं हैं, लेकिन मुख्य अंतर रसायनों के उपयोग में है. जैविक खेती में केवल प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त कीटनाशकों का उपयोग होता है, जबकि आईपीएम में सुरक्षित और लक्षित रसायनों का विवेकपूर्ण उपयोग भी शामिल है.

English Summary: integrated pest management fields to orchards Published on: 06 January 2025, 12:28 PM IST

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