भारत में प्राचीन काल में जैविक कृषि ही की जाती थी परन्तु जनसंख्या वृद्धि के कारण अन्न की कमी को पूरा करने के लिए हरित क्रांति का आगमन हुआ जिससे फसल की पैदावार में तो बढ़ोतरी हुई परन्तु इससे भूमि की उपज क्षमता पर विपरित असर पड़ा. वातावरण, पेयजल, स्वास्थ्य पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ा. इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए जैविक कृषि को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है. विश्व में 154 देशों में जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है. कृषि उत्पादन में रसायन रहित पदार्थों, स्वस्थ जलवायु, पौधों व जमीन संरक्षण के लिए केवल लैविक खेती ही एक मात्र विकल्प है.
हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में देश का पहला जैविक कृषि विभाग स्थापित किया गया है जो कि जैविक कृषि तकनीक सम्बंधी शोध में कार्यरत है और इस विभाग में पिछले 12 वर्षों से जैविक खेती की जा रही है. इसका उददेश्य जैविक खेती में उपयुक्त फसल चक्र, जैविक पदार्थों का प्रयोग, उपयुक्त प्रजातियों का ध्यान, पौध रोग, कीट संरक्षण व खरपतवार नियंत्रत्रण, अनिरिक्त पदार्थों का व्यवहारिक प्रयोग के साथ-साथ अन्य विकल्प को खेजना है.
जैविक खेती का मुख्य स्त्रोत है केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट)
केंचुआ खाद जैविक खेती का एक अभिन्न अंग है. केंचुआ खाद को किसान कम लागत में आसानी से अपने खेतों के पास अथवा अपनी गौशाला के पास बना सकता है. केंचुआ खाद एक जैविक खाद हैजो कि खेतों की उर्वरता को बढ़ाने के साथ-साथ भूमि का भी सुधार करती है. इस खाद को बनाकर किसान एक अच्छा रोजगार भी पा सकता है. इस खाद को केंचुओं की सहायता से बनाया जाता है. केंचुए भी दो प्रकार के होते हैं जिसमें एक खाद को भुरभूरी करते हैं और दूसरे मिट्टी को भुरभूरी करते है, जो केंचुए खाद को भुरभूरी करते है उनकी दो प्रजातियां होती हैं (आईसीनिया फोटिडा और युड्रिलस यूजैनी) ये पतले और लाल रंग के होते हैं और दूसरे केंचुए जो मिट्टी को भुरभूरी करते है वे गहरे भूरे रंग के मोटे और लम्बे होते हैं जिन्हें लोकल भाषा में हलवाड़े कहते हैं.
केंचुआ खाद बनाने के लिए गोबर, घास-पत्तियों तथा केंचुओं की आवश्यकता होती है. केंचुआ खाद बनानें के लिए गड्ढे का आकार 10x5x2.5 फुट होना चाहिए. इस आकार के अनुसार 800 किलो गोबर, 400 किलो घास-पत्तियां और 1-2 किलो केंचुए चाहिए. यह खाद 60-80 दिनों में तैयार हो जाती है. केंचुआ खाद बनाने के लिए 10-30 डिग्री तापमान और 30-40 प्रतिशत नमी चाहिए.
कैसे पता लगाएं कि तापमान और नमी कम या ज्यादा है ?
तापमान का पता लगाने के लिए हम अपना हाथ खाद के बीच में डाल देगें न तो यह ज्यादा गर्म न तो ज्यादा ठंडा होना चाहिए और नमी का पता लगाने के लिए हम खाद को कुदाली की सहायता से खोदेंगें और देखेगें कि अगर खाद केंचुओं के साथ चिपक रही है इसका मतलब इसमें नमी की कमी है. जब खाद तैयार हो जाती है तो एक दिन पहले गड्ढे के बीच में जगह बनाकर कच्चा गोबर डाल देते हैं ताकि सारे केंचुए उसमें चले जाएं और तैयार खाद को निकालना आसान हो जाए. यदि हम कच्चा गोबर नहीं डालते है तो सारे केंचुए भी खाद के साथ चलें जाऐगें.
केंचुआ खाद बनाने की विधिः-
केंचुआ खाद बनाने के लिए सबसे पहले छायादार जगह का चयन करें जिसमें पानी का पूरा निकास हो, कहीं भी पानी नहीं खड़ा होना चाहिए. फिर गड्ढे को आकार के अनुसार समतल करके पानी का छिड़काव करें. उसमें घास की 5-6 ईंच परत डालें. पहली परत में ऐसा घास डालें जो जल्दी गले सड़े न जैसे बांस के पत्ते, केले के पत्ते या धान का पुआल इत्यादि. दूसरी परत में 2-4 ईंच गोबर की परत डालें. इसी क्रम को दोहराते रहें जब तक की गड्ढा भर न जाए. केचुओं को गोबर की दूसरी परत में विखेर दें, इसके लिए पहले 2 ईंच गोबर की परत बनाएं फिर उसमें केंचुए बिखेर दें. इन केंचुओं को फिर 2ईंच गोबर की परत से ढ़क दें. केंचुओं में अडें, ककुन और बडे केंचुए होने चाहिए ताकि वे आगे भी बढते रहें. ध्यान रहे प्रत्येक परत में पानी का छिड़काव करें. सर्दियों में हफते में 2-3 बार पानी का छिड़काव करें और गर्मियों में 4-5 बार पानी का छिडकाव करें. 10x5x2.5 फुट आकार के अनुसार 6-8 किटल खाद प्राप्त की जा सकती है . एक महीने के बाद इस खाद को फौड़े की सहायता से पलटा दें ताकि यह अच्छी तरह से गल सड़ जाए फिर इसे घास से ढ़क दें.
केचुआ खाद को तीन प्रकार के गड्ढों में तैयार किया जा सकता हैं. जमीन पर गड्ढा बनाकर, प्लास्टिक पर और सीमेंट के गड्ढे पर. खाद बनाने की तरीका सबमें एक जैसा ही होगा. केंचुआ खाद में सब्जियों के छिलको का भी प्रयोग कर सकते है. परन्तु ध्यान रहे अदरक, प्याज, लहसुन, नींबू, संतरे इत्यादि के छिलकों का इस्तेमाल न करें. इनसे केंचुए भाग जाते है और खाद तैयार नहीं होती है.
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