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कम खर्च में मिटटी की उर्वराशक्ति को ऐसे रखे बरक़रार

आज के समय में कृषि के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभर रही समस्या है. मिटटी की उपजाऊ क्षमता को कैसे बरकरार रखा जाए. यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है जिस प्रकार से रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग पिछले कुछ दशकों से ज्यादा बढ़ जाने के कारण मिटटी की उपजाऊ क्षमता पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं और किसानों के लिए भी यह बड़ी चिंता का विषय बन गया है मिटटी की उर्वरता का सबसे मुख्य असर पौधों के जीवन के साथ-साथ उत्पादन पर भी पड़ता है क्यूंकि मिटटी में पौधों की जरुरत के अनुसार पोषक तत्व की कमी होती जा रही है.

अनिकेत कुमार
soil fertility

आज के समय में कृषि के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभर रही समस्या है मिटटी की उपजाऊ क्षमता को कैसे बरकरार रखा जाए.  यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है जिस प्रकार से रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग पिछले कुछ दशकों से ज्यादा बढ़ जाने के कारण मिटटी की उपजाऊ क्षमता पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं और किसानों के लिए भी यह बड़ी चिंता का विषय बन गया है मिटटी की उर्वरता का सबसे मुख्य असर पौधों के जीवन के साथ-साथ उत्पादन पर भी पड़ता है क्यूंकि मिटटी में पौधों की जरुरत के अनुसार पोषक तत्व की कमी होती जा रही है. रासायनिक उर्वरक से मिटटी में मुख्य रूप से पोषक तत्वों में नाइट्रोजन,फास्फोरस,पोटाश, जिंक की पूर्ति होती है पर मुख्य ध्यान देने वाली बात ये है कि इन रासायनिक उर्वरकों  से मिटटी की संरचना को बनाए रखना, पानी  को संग्रहित करना  एवं उसमें उपस्थित सूक्ष्मजीवों को बढ़ाने में इनका कोई योगदान नहीं होता जो कि सबसे मुख्य है अंततः आने वाले समय में खेती में रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग एवं सीमित उपलब्धता को देखते हुए अन्य दिशा में भी प्रयास करना आवश्यक हो गया है. तभी हम खेती की लागत को कम कर फसलों की प्रति एकड़ उपज को बढ़ा सकते हैं, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी आने वाली पीढ़ियों के लिए बरक़रार रख सकेंगे. 

soil test

इन चीजों से रखे मिटटी को उपजाऊ : 

प्राचीन काल से मिटटी को उपजाऊ बनाए रखने के लिए हरी खाद का प्रयोग किया जाता रहा है, जिनमें सनई, ढैंचा घास उपयुक्त माने जाते हैं और यह काफी कारगर उपाय है जिससे मिटटी में जरूरत के अनुसार पोषक तत्वों की मात्रा बनी रहती है खेत में उगाई जाने वाली हरी खाद: भारत के अधिकतर क्षेत्र में यह विधि  लोकप्रिय है इसमें जिस खेत में हरी खाद का उपयोग करना है उसी खेत में हरी खाद की फसल को उगाकर एक तय समय के बाद पाटा चलाकर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके मिट्टी में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. वर्तमान समय में पाटा चलाने व हल से पलटाई करने के बजाय  रोटा वेटर का उपयोग करने से खड़ी फसल को मिट्टी में मिला देने से हरे घास का मिश्रण जल्दी से हो जाता है और मिटटी कि जरुरत के अनुसार पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है दक्षिण भारत में हरी खाद की फसल अन्य खेत में उगाई जाती है, और उसे उचित समय पर काटकर जिस खेत में हरी खाद देना रहता है उस समय मिटटी कि जुताई कर मिला दिया जाता है.

केंचुओं का प्रयोग एवं फसलचक्र

मिटटी को उपजाऊ रखने में केंचुओं का बड़ा योगदान होता साथ ही हरी खाद के विलयन में भी काफी सहायक होती है केंचुए मिटटी को ऊपर नीचे करते रहते हैं.   जिससे मिटटी में वायु का भी प्रचुर मात्रा में संचार होता रहता है और मिटटी के ऊपर नीचे होने से पोषकता भी बरकरार रहती है. मिटटी की उर्वरा बनाए रखने के लिए किसानों को फसल चक्र पद्धति अपनाना चाहिए जिससे मिटटी को मौसम के अनुसार फसलों से भी पोषकता मिलती रहे किसानों को साल में एक बार दलहन कि फसल को भी उत्पादन में प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे मिटटी में नाइट्रोजन कि पूर्ति होती रहे उसके आलावा फसल चक्र में गेंहू, धान, मक्का, सोयाबीन, कपास, दलहन, तिलहन जैसे मुख्य फसलों को भी प्रयोग में लाना होगा जिससे मिटटी कि उर्वरा शक्ति में जरुरत के अनुसार पोषकता मिलती रहे .पशुओं के गोबर का खाद भी उपयुक्त होता है जिससे मिटटी कि उर्वरा शक्ति बरकरार रहती है समय समय पर इसका भी खेतों में जुताई करने के पहले छिड़काव करने से फायदा मिलता है साथ ही गोमूत्र से कीटनाशक बना कर खेत में छिड़काव करने से मिटटी एवं पौधों को नुकसान  पहुँचाने वाले सभी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं.   

सभी किसान भाई बिना किसी रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भी खेती कर सकते हैं छोटे किसानों कि खरीद शक्ति कम होती है इसलिए  गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, जैविक उर्वरक, नीम कि खलियां या पत्तियां ,या फिर फसलों के बचे हुए अवशेषों को भी मिटटी में दबा कर मिटटी कि उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ अच्छा उत्पादन ले सकते हैं.

soil treatment

मिटटी कि जांच कैसे करें 

जैसा कि आज के दौर में रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से मिटटी का दोहन होता जा रहा है ऐसे में मिटटी कि जाँच करवाने के बाद जरुरत के अनुसार पोषक तत्व डाले जा सकते हैं . मिटटी की जाँच आप अपने नजदीक कृषि विज्ञान केंद्र में जा कर करवा सकते हैं

 मिटटी का संरक्षण

मिटटी के उपजाऊ बने रहने में मिटटी का बचाव करना भी जरुरी है खेतों में अक्सर सिंचाई करते समय या बारिश के ज्यादा होने से पानी कि मात्रा ज्यादा हो जाने पर मेड़ों का निर्माण करें और जमा पानी को नाली बना कर दूसरे खेत में जाने दें ऐसे में मिटटी के कटाव का भी समस्या होती है जिससे मिटटी को उर्वरा रखने वाले जीवाणु भी पानी के साथ कटे हुए मिटटी में बह जाते हैं जिससे खेत को नुकसान पहुँचता है.तो मिटटी को उपजाऊ बनाए रखने के लिए कई विधियां हैं,  जिससे उनकी पोषकता को बरकरार रखा जा सकता है और मुख्य रूप से अब फसल चक्र पद्धति अपना कर या पशुओं के गोबर एवं गोमूत्र द्वारा निर्मित कीटनाशक का प्रयोग कर मिटटी को आने वाले भविष्य में खाद्यान के अच्छे उत्पादन के  लिए उपजाऊ बना कर रख सकते हैं और सभी को गुणवत्तापूर्ण उत्पादों कि पूर्ति भी हो सकेगी.

English Summary: How to maintain soil fertility by using these methods Published on: 22 June 2019, 01:58 PM IST

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