मक्का भारत की मुख्य फसलों में से एक है. इसका उपयोग मानव आहार, पशुओं को खिलाने वाले दाने एवं भूसा के रूप में होता है इसके अतिरिक्त औद्योगिक महत्व की वस्तुएं बनाई जाती है. भारत में साधारण रूप से मक्का की फसल खरीफ मौसम में उगाई जाती है लेकिन रबी मौसम में मक्का के अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है.
यह फसल कम और अधिक जल दोनों के प्रति संवेदनशील होती है, जिसके कारण देश में इसका कम उत्पादन होता है. अधिक बारिश से फसल को खराब होने से बचाने के लिए रबी (Winter) मौसम श्रेष्ठ है, क्योंकि दूसरी ओर फसल पर कीटों और रोगों का आक्रमण कम होता है.
शीतकालीन मक्का की खेती के लिए जलवायु (Climate for Maize Farming)
इसकी खेती शीतोष्ण, समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है. इसे खरीफ, रबी और जायद मौसम में की जाती है.
मक्का की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव (Selection of soil for Maize cultivation)
शीतकालीन मक्का की खेती रेतीली से मटियारी तक की विभिन्न प्रकार की मृदाओं में के जा सकती है. लेकिन मक्का की अच्छी बढ़वार और उत्पादकता के लिए बलुई दोमट मृदा एवं मध्यम से भारी मिट्टी जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश और उचित जल निकास हो , उपयुक्त रहती है. लवणीय तथा क्षारीय भूमियां (Alkaline & acidic soil) मक्का की खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती है.
मक्का की किस्में (Varieties of Maize)
इसकी हाइब्रीड क़िस्मों (Hybrid varieties) में गंगा-5, गंगा-11, डेक्कन-101, गंगा सफेद-2, बायो– 9637, एच.क्यू.पी.एम.-1, पूसा संकर-1, पूसा संकर-2, पूसा विवेक, और पूसा एचएम 4 उन्नत संकर किस्म मानी जाती है. संकुल क़िस्मों में विजय, किसान, विक्रम, अगेती-76, तरुण, प्रभात, नवजोत, मंजरी,सुवन कम्पोजीट आदि प्रमुख है. अन्य रबी मक्का (Rabi maize) की उन्नत किस्में हाई स्टार्च कम्पोजिट, लक्ष्मी कम्पोजिट, हेमंत, गंगा-21 है.
खेत की तैयारी और बुवाई (Field preparation and sowing)
खेत की 15 सेमी तक गहरी जुताई कर मृदा को भूरभूरी बना देनी चाहिए. इसके पश्चात कम से कम तीन चार जुताई हेरो से कर देनी चाहिए. खेत की तैयारी के समय जल निकास का विशेष ध्यान रखना चाहिए. सामान्यतया अक्टूबर के अंत तक बुआई पूरी कर लें, अधिक देरी होने से तापमान में तेजी से गिरावट आती है, जिसके परिणामस्वरूप अंकुरण (germination) में देरी होती है और पौधे की बढ़वार में कमी आती है.
बुआई के लिए शुद्ध एवं प्रमाणित बीजों का उपयोग ही करना चाहिए. बीजों को बीज-जनित रोगों से बचाने के लिए कैप्टन, थायरम या कार्बेन्डाजिम (carbendazim) से उपचारित करने की बाद ही बुवाई करनी चाहिए. संकुल बीज को 3-4 वर्ष तक ही बुआई के काम में लेना चाहिए. इसके बाद बदल लेना चाहिए.
बीज की गहराई 3 से 5 सेंटीमीटर रख कर कतार से कतार की दूरी 45 सेमी तथा पौधो के बीच की दूरी 20-30 सेमी रखे. एक एकड़ भूमि के लिए संकर किस्म के बीज की मात्रा 810 किलो तथा संकुल किस्म के बीजों की मात्रा 6-8 किलो होनी चाहिए. बीज की गहराई 4-6 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए. बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है. एक एकड़ भूमि में पौधों की संख्या लगभग 30,364 होनी चाहिए.
मक्का में पौध संरक्षण (Plant protection of Maize)
मक्का में विभिन्न प्रकार के रोग व कीट (disease & pest) लगते हैं. जो फसल के लिए बेहद हानिकारक होते हैं.
रोग नियंत्रण: मक्का की फसल में बीजों एवं मृदाजनित रोगों मे रस्ट, पिथियम रोग, जीवाणु रोग (Bacterial disease) एवं तना गलन (Stem rot) रोग प्रमुख है. इनकी रोकथाम के लिए बीजों को बुआई से पूर्व थायरम, या कार्बेन्डाजिम से 2 ग्राम प्रति किलो की दर से बीज उपचारित (seed treatment) कर देना चाहिए.
फसल में अंगमारी, मक्का का भूरा मृदुरोगिल, पिथियम गलन रोग, बीज गलन आदि रोगों के लक्षण दिखाई देने पर 15-20 दिनों के अन्तराल में 2-3 छिड़काव कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP या कार्बेण्डाजिम 50 WP की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर में मिलाकर घोल का छिड़काव करने से इन रोगों की रोकथाम आसानी से हो सकती है.
कीट नियंत्रण (Insect control): इसमें तना छेदक कीट (stem borer) की सून्डियाँ पौधों में घुस कर अन्दर तने को खोखला करती है इससे तना कमजोर हो जाता है तथा पौधे उपर से टूट जाते है और लीफ रोलर कीट, तना मक्खी का भी प्रकोप रहता है. इन कीटों की रोकथाम के लिए प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिलीग्राम/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे. आवश्यकतानुसार स्प्रे दवा बदलकर दोहराएं. कट वर्म (Cut worm) कीट का आक्रमण पौधों के अंकुरण के साथ-साथ ही आरम्भ हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए फोरेट का उपयोग उचित माना गया है.
शीतकालीन मक्का की खेती में खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer of Winter Maize farming)
मक्का में मृदा के अनुसार तथा मृदा परीक्षण (soil test) के आधार पर उर्वरकों का उपयोग किया जाना चाहिए. यदि मृदा परीक्षण नहीं हुआ तो हाइब्रिड किस्म के बीजों की फसल के लिए 52 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फास्फोरस तथा 16 किलो पोटाश की मात्रा एवं संकुल किस्म के लिए 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 25 किलोग्राम पोटाश की मात्रा प्रति एकड़ का इस्तेमाल करना होगा. नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा के साथ जिंक सल्फेट 8 किलोग्राम की मात्रा भी जमीन में मिला दें.
नाइट्रोजन की 2/3 भाग मात्रा टोप डेसिंग के रूप में दी जानी चाहिए. इस तरह की ड्रेसिंग का अन्तराल 30 दिवस से कम नहीं होना चाहिए. बुआई के 30-40 दिन बाद 1/3 भाग नाइट्रोजन तथा शेष 1/3 भाग फूल आने पर (flowering stage) के समय दी जानी चाहिए. मिट्टी जनित रोगों को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा व सूडोमोनास एक किलो को 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर खेत में बिखरेकर (broadcasting) मिट्टी में मिला देना चाहिए.
शीतकालीन मक्का में सिंचाई व्यवस्था (Irrigation management in Winter Maize)
मक्का की फसल के लिए पानी की अधिकता तथा कमी दोनों की स्थितियां नुकसान देय रहती है. वर्षा का पानी खेत में लम्बे समय के लिए भरा रहने पर फसल खराब हो जाती है. शीतकालीन मक्का की फसल में 4-5 बार सिंचाई (irrigation) करनी पड़ती है. मक्का में सिंचाई मिट्टी में नमी में नमी देख कर करनी चाहिए.
सामान्यतः पहली सिंचाई बीजाई के समय इसी प्रकार दूसरी सिंचाई बुवाई के 55-60 दिनों बाद, तीसरी सिंचाई बुवाई के 75-80 दिनों बाद, चौथी 110-115 दिनों बाद, तथा 5वीं सिंचाई 120-125 दिनों बाद करनी चाहिए. सिंचाई के जरूरी चरण- नए पौधे निकलने पर, फसल घुटने तक होने पर, नर फूल निकलने पर व भुट्टा बनते वक्त सिंचाई बेहद जरूरी है. सिंचाई की समुचित व्यवस्था होने पर मक्का की बुवाई अक्टूबर के अंत में की जा सकती है.
मक्का में खरपतवार प्रबंधन (Weed management in Maize crop)
मक्का की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए 3-4 बार निराई गुड़ाई की आवश्यकता रहती है. खड़ी फसल में अधिक नमी के कारण, खरपतवार का प्रकोप अधिक होता है. निराई गुडाई की गहराई 4-5 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए अन्यथा पौधों की जड़ों को नुकसान पहुचने का भय रहता है. खरपतवार के उगने के समय उखाड़ देना सबसे अच्छा उपचार माना जाता है. मक्का की फसल के लिये खरपतवारनाशी दवा का उपयोग भी किया जा सकता है.
इसमें बुवाई से पहले एट्राजिन 50 WP या एलाक्लोर 50 EC एक किलो प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़कें या बुवाई के 2 दिन के अंदर पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए. इनकों फसल की बुआई के तुरन्त बाद छिड़कने से खरपतवारों (weeds) का अंकुरण नहीं हो पायेगा. छिड़काव हेतु फ्लेट फैन या फ्लड जेट नोजल का ही प्रयोग करें.
मक्का फसल की तुड़ाई और उपज (Yield and Crop harvesting of Maize crop)
मक्का की संकर किस्में तथा देशी किस्में 100-120 दिनों में पककर तैयार होती है. दाने में 15-20 प्रतिशत तक नमी रहने पर कटाई करनी चाहिए. भूट्टों के छिलकों की पत्तिया ढीली पड़ जाये या भूरी हो जाये तो मान लिया जाना चाहिए की भूट्टे पक कर तैयार हो गये है. भूट्टो (corn) को अच्छी तरह सूखा कर मजे शेलर मशीन द्वारा दाना निकाला जा सकता है. दाने को भुट्टे से निकालने के लिए ध्यान रखें की वो इतने सूखे हो कि हाथ या थ्रेसर से गहाई करते समय उन्हें नुकसान न हो. संकर किस्मों की उपज 45-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं सकुल की उपज 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के लगभग रहती है.
मक्का का भंडारण (Corn Storage)
मक्का के भुट्टों को धूप में तब तक सुखाएं जब तक दाना कठोर होकर इसमें नमी 12 से 14 प्रतिशत न हो जाए. फिर भुट्टों को बोरी में भरकर मंडी ले जा सकते हैं.
लागत और शुद्ध लाभ (Cost and net profit)
रबी मक्का में खेती करने पर बीज, उर्वरक, सिंचाई, खेत की तैयारी, पौध संरक्षण, रखरखाव आदि में लगभग 7800 रुपए की लागत प्रति एकड़ आती है तथा इससे शुद्ध मुनाफा 39 हजार प्रति एकड़ मिलेगी.
सरकारी किस्म के बीज प्राप्त करने का स्थान और सम्पर्क सूत्र (Place to get government varieties seed & contact)
नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्र या कृषि विश्वविद्यालय या कृषि अनुसंधान केन्द्र से बीज के लिए संपर्क किया जा सकता है. दिल्ली में स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) जाकर या 011- 25842686/ 25841428 पर या एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी इन्फोर्मेशन सेंटर (ATIC) पर 011-25841670, 1800-11-8989 सम्पर्क किया जा सकता है.
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