भारत में रेशम कीट पालन भारत में बड़े पैमाने पर होता है. रेशम कीट पालन से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है. देश में रेशम कीट पालन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार किसानों की मदद भी करती है. उत्पादन की प्रक्रिया के परिपेक्ष्य में रेशम दो प्रकार का होता है- शहतूती रेशम (मलबरी सिल्क) और गैर शहतूती रेशम (नॉन मलबरी सिल्क). रेशम कीट पालन के लिए किसानों को कई संस्थाओं द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है. जिसके बाद उनको सरकार द्वारा वित्तीय सहायता भी दी जाती है. इसके लिए सेंट्रल सिल्क बोर्ड को सरकार द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है. रेशम कीट पालन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है. जिसमें कर्नाटक ऐसा राज्य है जो सबसे अधिक 8200 मीट्रिक टन रेशम का उत्पादन करता है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर रेशम का एक बड़ा बाजार है. मध्य प्रदेश में इस व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार पूरी तरह प्रयासरत है. इसके लिए सरकार किसानों को रेशम कीट पालन करने पर उनको अनुदान दे रही है. रेशम संचालनालय द्वारा प्रदेश के ऐसे किसान जो निजी भूमि में 01 एकड़ क्षेत्र में शहतूती पौधरोपण एवं रेशम कृमिपालन कर ककून उत्पादन करना चाहते है, उसके लिए पारदर्शी प्रक्रिया के तहत ऑनलाईन पंजीयन की व्यवस्था ई-रेशम पोर्टल www.eresham.mp.gov.in पर प्रांरभ की गई है . रेशम कृमि पालन में रूचि रखने वाले कृषक अपना आवेदन उक्त पोर्टल पर पंजीकृत कर सकते है. अधिक जानकारी के लिए ई-रेशम पोर्टल में संपर्क कर सकते हैं. इस व्यवसाय की विशेषताओं को देखते हुए राज्य सरकार इस प्रक्रिया को शुरू किया.
क्या है रेशम कीट पालन की विशेषताए:
यह एक कृषि पर आधारित कुटीर उद्योग है. ग्रामीण क्षेत्र में ही कम लागत में इस उद्योग में शीघ्र उत्पादन प्रारंभ किया जा सकता है. कृषि कार्य एवं अन्य घरेलू कार्यों के साथ-साथ इस उद्योग को अपनाया जा सकता है. श्रम जनित होने के कारण इस उद्योग में विभिन्न स्तरों पर रोजगार सृजन की भरपूर संभावनाएं निहित है, विशेषकर महिलाओं के खाली समय के सदुप्रयोग के साथ-साथ स्वावलम्बी बनाने में सहायक है. इससे किसानों पर्याप्त आय प्राप्त मिलती है.
रेशम उत्पादन के फायदे :
रोजगार की पर्याप्त क्षमता
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार
कम समय में अधिक आय
महिलाओं के अनुकूल व्यवसाय
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