धीरे-धीरे मौसम में परिवर्तन हो रहा है आने वाले दिनों में तापमान में और ज्यादा कमी आएगी और पाला पड़ेगा. खास तौर से उत्तर भारत में शीतलहर और पाले की संभावनाएं अधिक रहती है. पाले और शीतलहर से फसल और फलदार पेड़ों की उत्पादकता पर सीधा विपरीत प्रभाव पड़ता है. इसलिए सर्दियों में फसलों की देखभाल से जुड़ी पूरी जानकारी पता होना बहुत जरूरी है.
शीतलहर और पाले से फसलों पर असर (Cold wave and frost affect crops)
फसलों में फूल और बालियां/ फलियां आने या उनके विकसित होते समय पाला पडऩे की सबसे ज्यादा संभावनाएं रहती है. पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां और फूल झुलसने लगते हैं. जिसकी वजह से फसल पर असर पड़ता है कुछ फसलें बहुत ज्यादा तापमान या पाले झेल नहीं पाती जिससे उनके खराब होने का डर बना रहता है. पाला पड़ने के दौरान अगर फसल की देखभाल नहीं की जाए तो उस पर आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं.
प्रभावित फसल की हरियाली खत्म हो सकती है जिसकी वजह से पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखता है. अगर शीतलहर हवा के रूप में चलती रहे तो उससे कोई नुकसान नहीं है लेकिन हवा रूक जाये तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए ज्यादा नुकसानदायक है.पाले की वजह से अधिकतर पौधों के फूलों के गिरने से पैदावार में कमी हो जाती है. पत्ते, टहनियां और तने के नष्ट होने से पौधों को अधिक बीमारियां लगने का खतरा रहता है. सब्जियों, पपीता, आम, अमरूद पर पाले का प्रभाव अधिक रहता है. टमाटर, मिर्च, बैंगन, पपीता, मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम आदि फसलों पर पाला पड़ने के दिनों में ज्यादा नुकसान की संभावना रहती है. जबकि अरहर, गन्ना, गेहूं, जौ पर पाले का असर कम दिखाई देता है. शीत ऋतु वाले पौधे 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान सहन कर सकते है. इससे कम तापमान होने पर पौधे की बाहर और अंदर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाता है.
पाला पड़ने का कारण (Cause of frost)
जब वायुमंडल का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या फिर इससे नीचे चला जाता है तो हवा का प्रवाह बंद हो जाता है जिसकी वजह से पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर मौजूद पानी जम जाता है और ठोस बर्फ की पतली परत में बन जाती है. इसे ही पाला पड़ना कहता है. पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं की दीवारें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और स्टोमेटा नष्ट हो जाता हैं. पाला पड़ने की वजह से कार्बन डाइआक्साइड, आक्सीजन और वाष्प की विनिमय प्रक्रिया भी बाधित होती है.
पाले और शीतलहर से फसल की सुरक्षा के उपाय (Measures to protect crop from frost and cold wave)
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नर्सरी के पौधों एवं सब्जी वाली फसलों को टाट, पॉलिथीन अथवा भूसे से ढ़क देना चाहिए| वायुरोधी टाटिया को हवा आने वाली दिशा की तरफ से बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगाने से पाले और शीतलहर से फसल को बचाया आ सकता है.
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पाला पड़ने की संभावना को देखते हुए जरूरत के हिसाब से खेत में सिंचाई करते रहना चाहिए. इससे मिट्टी का तापमान कम नहीं होता है.
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सरसों, गेहू, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है और पाले से बचाव के अलावा पौधों को लौह तत्व भी मिल जाता है.
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गंधक का तेजाब पौधों में रोगरोधिता बढ़ाने में और फसल को जल्दी पकाने में भी सहायक होता है.
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दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की मेड़ों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी और जामुन आदि लगा देने चाहिए जिससे पाले और शीत लहर से फसल का बचाव होता है.
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थायोयूरिया की 500 ग्राम 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं और 15 दिनों के बाद छिड़काव दोहराना चाहिए.
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चूंकि सल्फर (गंधक) से पौधे में गर्मी बनती है अतः 8-10 किग्रा सल्फर डस्ट प्रति एकड़ के हिसाब से डाल सकते हैं. या घुलनशील सल्फर 600 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से पाले के असर को कम किया जा सकता है.
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पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में मिट्टी की गुड़ाई या जुताई नहीं करनी चाहिए, क्योंकिं ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है.
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