मिर्च पर पाले का असर थोड़ा अधिक होता है. अतः जिन क्षेत्रों में पाले की संभावना हो उन क्षेत्रों में इसकी अगेती फसल लेनी चाहिए. अधिक तापमान होने पर पौधों में फल नहीं लगते हैं तथा फूल व फलों का झड़ना शुरू हो जाता है. मिट्टी का पी. एच. मान 6 से 7.5 के बीच सही रहता है. अतः मिर्च की खेती के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी, जिसमें पानी का अच्छा निकास हो, उपयुक्त रहती है.
मिर्च की उन्नत किस्में
सिंजेंटा की रोशनी और वीरा , नुनहेम्स की यूएस 702 और यूएस 344, हाइवेज की सोनल और प्राइड, वीएनआर की वीएनआर- 305,वीएनआर -109, वीएनआर -145 हरी मिर्च की प्रचलित संकर किस्में है.
नर्सरी तैयार करना - सबसे पहले नर्सरी में बीजों की बुवाई कर पौध तैयार की जाती है. खरीफ की फसल हेतु मई-जून में तथा गर्मी की फसल हेतु फरवरी-मार्च में नर्सरी में बीजों की बुवाई करें. एक हैक्टेयर में पौध तैयार करने हेतु एक से डेढ़ किलोग्राम बीज तथा संकर बीज 250 ग्राम/हैक्टयर पर्याप्त रहता है. नर्सरी वाले स्थान की गहरी जुताई करके खरपतवार रहित बना कर एक मीटर चौड़ी, 3 मीटर लम्बी व 10-15 सेंमी, जमीन से उठी हुई क्यारियाँ तैयार कर लें. बीजों को बुवाई से पूर्व कैप्टान या बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें, जिससे बीज जनित रोगों का प्रकोप न हो सके. पौधशाला में कीड़ों के नियंत्रण हेतु 3 ग्राम फोरेट 10 प्रतिशत कण या 8 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत कण प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलायें या मिथाइल डिमेंटोन 0.025 प्रतिशत या एसीफेट 0.02 प्रतिशत का पौध पर छिड़काव करें. बीजों की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. नर्सरी में विषाणु रोगों से बचाव के लिए मिर्च की पौध को 50 मेंश की सफेद नाइलोन नेट से ढककर रखें.
मिर्च पर पाले का असर थोड़ा अधिक होता है. अतः जिन क्षेत्रों में पाले की संभावना हो उन क्षेत्रों में इसकी अगेती फसल लेनी चाहिए. अधिक तापमान होने पर पौधों में फल नहीं लगते हैं तथा फूल व फलों का झड़ना शुरू हो जाता है. मिट्टी का पी. एच. मान 6 से 7.5 के बीच सही रहता है. अतः मिर्च की खेती के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी, जिसमें पानी का अच्छा निकास हो, उपयुक्त रहती है.
मिर्च की उन्नत किस्में
चरपरी मसाले वाली - एन पी 46ए, पूसा ज्वाला, मथानिया लौंग, पन्त सी-1, जी 3, जी 5, हंगेरियन वैक्स (पीले रंग वाली), पूसा सदाबहार (निर्यात हेतु बहुवर्षीय), पंत सी-2, जवाहर 218, आरसीएच 1, एक्स 235, एल एसी 206, बी. के. ऐ.2, एस. सी. ए.235 .
शिमला मिर्च (सब्जी वाली) - यलो वंडर, कैलिफोर्निया वंडर, बुलनोज व अर्का मोहिनी.
नर्सरी तैयार करना - सबसे पहले नर्सरी में बीजों की बुवाई कर पौध तैयार की जाती है. खरीफ की फसल हेतु मई-जून में तथा गर्मी की फसल हेतु फरवरी-मार्च में नर्सरी में बीजों की बुवाई करें. एक हैक्टेयर में पौध तैयार करने हेतु एक से डेढ़ किलोग्राम बीज तथा संकर बीज 250 ग्राम/हैक्टयर पर्याप्त रहता है. नर्सरी वाले स्थान की गहरी जुताई करके खरपतवार रहित बना कर एक मीटर चौड़ी, 3 मीटर लम्बी व 10-15 सेंमी, जमीन से उठी हुई क्यारियाँ तैयार कर लें. बीजों को बुवाई से पूर्व कैप्टान या बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें, जिससे बीज जनित रोगों का प्रकोप न हो सके. पौधशाला में कीड़ों के नियंत्रण हेतु 3 ग्राम फोरेट 10 प्रतिशत कण या 8 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत कण प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलायें या मिथाइल डिमेंटोन 0.025 प्रतिशत या एसीफेट 0.02 प्रतिशत का पौध पर छिड़काव करें. बीजों की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. नर्सरी में विषाणु रोगों से बचाव के लिए मिर्च की पौध को 50 मेंश की सफेद नाइलोन नेट से ढककर रखें.
पौध संरक्षण
सफेद लट - इस कीट की लटें पौधों की जड़़ों को खाकर नुकसान पहुँचाती हैं तथा इससे फसल को काफी हानि होती है. नियंत्रण हेतु फोरेट 10 जी या कार्बोफ्युरॉन 3 जी 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से रोपाई से पूर्व जमीन में मिला देना चाहिए.
सफेद मक्खी, पर्णजीवी (थ्रिप्स) हरा तेला व मोयला - ये कीट पौधों की पत्तियों व कोमल शाखाओं का रस चूसकर कमजोर कर देते हैं. इनके प्रकोप से उत्पादन घट जाता है. नियंत्रण हेतु मैलाथियॉन 50 ईसी या मिथाइल डिमेंटोन 25 ईसी एक मिलीलीटर या इमिडाक्लोरोप्रिड 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. 15-20 दिन बाद पुनः छिड़काव करें .
मूल ग्रंथि सूत्रकृमि - इसके प्रकोप से पौधों की जड़ों में गांठें बन जाती हैं तथा पौधे पीले पड़ जाते हैं. पौधों की बढ़वार रुक जाती है जिससे पैदावार में कमी आ जाती है. नियंत्रण हेतु रोपाई के स्थान पर 25 किलोग्राम कार्बोफ्युरॉन 3 जी प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिलायें.
आर्द्र गलन - इस रोग का प्रभाव पौधे की छोटी अवस्था में होता है. जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ कर कमजोर हो जाता है तथा नन्हें पौधे गिरकर मरने लगते हैं. नियंत्रण हेतु बीज को बुवाई से पूर्व थाइरम या कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. नर्सरी में बुवाई से पूर्व थाइरम या कैप्टान 4 से 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से भूमि में मिलायें. नर्सरी आसपास की भूमि से 4 से 6 इंच उठी हुई भूमि में बनायें.
श्याम व्रण (एन्थ्रेक्नोज) - पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बन जाते हैं तथा पत्तियां झड़ने लगती हैं. उग्र अवस्था में शाखाएं शीर्ष से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं. पके फलों पर भी बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं. नियंत्रण हेतु जिनेब या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल के 2 से 3 छिड़काव 15 दिन के अन्तराल से करें.
पर्णकुंचन व मोजेक विषाणु रोग - पर्णकुंचन रोग के प्रभाव से पत्ते सिकुड़कर छोटे रह जाते हैं व झुर्रियां पड़ जाती हैं. मोजैक रोग के कारण पत्तियों पर गहरे व हल्का पीलापन लिये हुए धब्बे बन जाते हैं. रोगों को फैलाने में कीट सहायक होते हैं. नियंत्रण हेतु रोग ग्रसित पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए. रोग को आगे फैलने से रोकने हेतु डाइमिथोएट 30 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. नर्सरी तैयार करते समय बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 8 से 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलायें. पौध रोपण के समय स्वस्थ पौधे काम में लें. पौध रोपण के 10 से 12 दिन बाद मिथाइल डिमेंटोन 25 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. छिड़काव 15 से 20 दिन के अन्तर पर आवश्यकतानुसार दोहरायें. फूल आने पर मैलाथियान 50 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर के हिसाब से छिड़कें.
तना गलन - ग्रीष्मकालीन मिर्च में तना गलन के नियंत्रण हेतु टॉपसिन एम 0.2 प्रतिशत से बीजोपचार करके बुवाई करें एवं पौधों को रोपाई से पहले आधे से एक घंटे तक 0.2 प्रतिशत के घोल में डुबोकर लगायें तथा मृदा मंजन करायें.
तुड़ाई एवं उपज - हरी मिर्च के लिए तुड़ाई फल लगने के 15-20 दिन बाद कर सकते हैं, एक तुड़ाई से दूसरे तुड़ाई का अंतराल 12-15 दिन का रखते हैं. फलों की तुड़ाई फल के पूर्ण विकसित होने पर ही करनी चाहिए. हरी चरपरी मिर्च की लगभग 150 से 200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा 15-25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर सूखी लाल मिर्च प्राप्त की जा सकती है.
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