गेंहू का ममनी रोग : लक्षण व उसके नियंत्रण
भारत की प्रमुख फसल गेंहू पुरे देश में उगाई जाती है. भारत में साल 2017-18 में लगभग 100 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन हुआ. गेहूँ में कीटों, सूत्रकर्मियों व अन्य रोगों के कारण 5-10 फीसदी उपज की हानि होती है और दानों व बीजों की गुणवत्ता भी खराब होती है. सूत्रकृमि या निमेटोड बहुत छोटे आकर के सांप जैसे जीव होते हैं,जो नंगी आँखों से दिखाई नहीं देते. इनके मुँह में सुईनुमा अंग स्टैलेट होता है, जिसकी सहायता से ये पौधों की जड़ों का रस चूसते हैं व पौधे भूमि से खाद पानी पूरी मात्रा में नहीं ले पाते हैं. इससे पौधों की बढ़वार व विकास रुक जाते हैं. और पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है. और दानों ओर बीजों की गुणवत्ता भी खराब हो जाती है.
बीज गॉल (पिटिका ) निमेटोड (अन्गुनिया ट्रीट्रीसाई ) इसकी मादा 6 -12 दिनों में 1000 अंडे पिटिका के अंदर देती हैं. जब फसल पकने वाली होती है, तो पिटिका भूरे रंग की हो जाती है, दूसरी अवस्था वाले लार्वे पिटिका में भर जाते हैं और ये लार्वे 32 साल पुरानी बीज पिटिका में जीवित अवस्था में पाए गए हैं. फसल कटाई के समय स्वस्थ बीज के साथ पिटिका से ग्रसित बीज भी इकठ्ठा कर लिए जाते हैं. जब अगले साल की फसल की बुआई की जाती है, तो अगला जीवनचक्र फिर से शुरू हो जाता है. एक बीज पिटिका में तक़रीबन 3-12 हजार तक दूसरी अवस्था वाले लार्वे पाए जाते हैं, जो नमी वाली भूमि के संपर्क में आते ही पिटिका को फाड़ कर बाहर निकल आते हैं और बीज जमने के समय हमला कर देते हैं. लार्वे बीज के जमने वाले भाग से ऊपर पौधों की पट्टी की सतह में पानी की पतली परत के सहारे ऊपर चढ़ जाते हैं. पौधों की बढ़वार अवस्था में बीज बनने वाले स्थान पर हमला करते हैं और लार्वे बीज के अंदर चले जाते हैं और कुछ दिनों में ये नर-मादा में बदल जाते हैं. मादा बीज के अंदर अंडे देती है और संख्या बढ़ने के कारण फूल -बीज पिटिका में परिवर्तित हो जाते हैं.
लक्षण :
निमेटोड से ग्रसित नए पौधों के नीचे वाले भाग हल्का सा फूल जाता है. इसके अलावा बीज के जमाव के 20-25 दिनों बाद नए पौधों के तने पर निकली पत्ती चोटी पर मुड़ जाती है. रोग ग्रसित नए पौधों की बढ़वार रुक जाती है. रोगग्रसित पौधों में बालियां 30-40 दिन पहले निकल आती हैं. बालियाँ छोटी व हरी होती हैं. बीज-पिटिका में बदल जाते हैं. इस सूत्रकृमि के कारण पीली बाल या टुंडा रोग हो जाता है. सूत्रकृमि बीजाणु फैलाने का काम करते हैं, इस रोग के कारन नए पौधों की पत्तियों व् बालियों पर हल्का पीला सा पदार्थ जमा हो जाता है. रोगग्रसत पौधों से बालियाँ ठीक से निकल नहीं पाती और न ही उनमे दाने बनते हैं.
उपाय :
(1) बीज की सफाई : टुंड्रा रोग या गॉल गांठ रोग या निमेटोड रहित बीज लेने चाहिए. बीजों को छन्नी से छान कर पानी में 20 फीसदी के नमक के घोल में डाल कर तैरते हुए बीजों को अलग कर देना चाहिए.
(2) फटकना या हवा में उड़ाना : यह विधि भी सहायक गाल को बाहर करने के लिए कारगर है, पर इस विधि से गॉल (पिटिका) पूरी तरह से बाहर नहीं होती. पंखे या तेज़ हवा में बीजों को बरसाया जाता है, जिससे गॉल वाले हलके बीज ज्यादा दूरी पर गिरते हैं. इससे वे स्वस्थ बीजों से अलग हो जाते हैं.
(3) गरम- पानी से उपचारित करना : बीजों को 4-6 घंटे तक ठन्डे पानी में भिगोना चाहिए, इससे दूसरी अवस्था के लावे नमी ग्रहण कर जीवित अवस्था में आ जाते हैं और इसके बाद बीजों को 54 डिग्री सेंटीग्रेड गरम पानी में 10 मिनट तक उपचारित करना चाहिए.
(4) रोगरोधी किस्में : निमेटोड अवरोधी किस्में ही खेत में बोनी चाहिए.
लेखक
नीरज , मनीष व डॉ.अनिल सिरोही
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
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