जब गाँव की संकरी गलियों से गुजरकर ,खेतों में पहुँचते है या पहाड़ियों की ओर टहलते हुए निकल जाते है, तो झाड़ियों में लगे बेरों को देखकर किसका मन है जो बेर खाने को ललचाता नहीं होगा. खट्टे –मीठे बेरों का नाम सुनकर ही मुंह में पानी आ जाता है. भारत वर्ष में पाये जाने फलों मे बेर एक प्राचीनतम फल है जिसका वर्णन अनेक ग्रंथो एंव साहित्यों में मिलता है.शबरी के बेर श्रीराम ने स्वीकार किये थे यह प्रसंग रामायण में आता है. बेर के पौधे की ये विशेषता होती है कि ये अपने आपको विपरीत परिस्थिति में ढालने की क्षमता रखते है. जिसके फलस्वरुप ये शुष्क एवं अर्ध शुष्क क्षेत्र जहां वर्षा बहुत कम होती है में भी फल देता है.
बेर भारतवासियों का एक प्रिय फल है. यह हमारे देश के बहुत से भागों में बोया जाता है. खासकर इसकी खेती शुष्क इलाकों में की जाती है. .इस फल की पौध में कांटे पाये जाते है. ये मीठे होने के साथ -साथ बहुत स्वादिष्ट होते है। भारत में इसके उत्कृष्ट स्वास्थ्य लाभों के कारण बेर की खेती काफी महत्वपूर्ण होती है. बेर के पके फल को ताजा फल के रुप में खाया जाता है.इसके अतिरिक्त बेर के पके फलों को सुखाकर छुआरा और अन्य पदार्थ जैसे - मुरव्बा, कैंडी आदी के रुप में उपयोग किया जाता है.
बेर के पके फलों में विटामिन- A, विटामिन – B और विटामिन –C के साथ ही ,खनिज पदार्थ जैसे- कैल्शियम ,मैग्नीशियम और जस्ता आदि इसमें प्रचुर मात्रा में पाए जाते है. बेर के पौधे में कुछ ऐसे गुण हैं जिसके कारण ये शुष्क क्षेत्रों का बहुत ही सफल फल वृक्ष माना गया है. भारत के कई राज्य जैसे राजस्थान,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब इत्यादि में इसकी खेती बडे स्तर पर की जाती है .इस लेख में जानिये कैसे किसान भाई कम लागत में अधिक मुनाफा पा सकते है? और वो भी कम जोखिम में. इसके लिए आपको करनी है बेर की खेती. जानिए बेर की खेती करके मालामाल होने की प्रक्रिया-
बेर की खेती के लिए जलवायु -
बेर को विभिन्न प्रकार की जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है,गर्म जलवायु बेर के पनपने के लिये ज्यादा अनुकूल होती है.
बेर की खेती के लिए मिट्टी -
बेर की खेती के लिए अत्यधिक अम्लीय, उपजाऊ, , नम और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी सर्वोत्तम वृद्धि और उपज के लिए मिट्टी का ph मान 4.0 से 5.0 तक होना चाहिए।
बेर की खेती के लिए भूमि की तैयारी-
इसकी खेती के लिए भूमि को समतल होना चाहिए .मुख्य खेत को खरपतवार मुक्त बनाना चाहिए. पंक्तियों और 3 मीटर गलियारों के बीच पौधे की दूरी 80 सेमी होनी चाहिए
बेर की खेती के लिए सिंचाई-
बेर की खेती की अहम विशेषता है कि इसकी खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है.गर्मी के मौसम में इसके वृक्ष से पत्तियां गिर जाती है. इसके फूल तथा फल वारिश के मौसम में लगते है इसके इन्हीं गुणों के कारण इसकी खेती शुष्क और अर्ध -शुष्क क्षेत्रों के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है.
बेर की किस्में -
भारत में बेर की लगभग 125 किस्में पाई जाती हैं. जिसमें उमरान, गोला, सेओ, महरून, कैथली, कांथा आदि महत्वपूर्ण किस्में हैं. देश मे किसानों के द्वारा उत्पादित एप्पल बेर की खेती मे प्रमुख बेर की उन्नत किस्में थाई एप्पल बेर,सेव बेर,कैथली,कश्मीरी एप्पल बेर,छुहारा,
दण्डन,सेन्यूरन ,मुण्डिया, गोमा-कीर्ति प्रमुख है. आजकल बाज़ार में बेर की कई किस्में उपलब्ध है, जिनमें थाई एप्पल बेर और कश्मीरी बेर की मांग सबसे ज़्यादा है. ये बेर दिखने में कच्चे सेब जैसे होते है . और स्वाद में खट्टे-मीठे होते हैं. इनको ‘किसान का सेब’ भी कहते है. एप्पल बेर अन्य बेरों की तुलना मे अधिक मीठा, स्वादिष्ट और गुणवत्तापूर्ण होता है. जितने गुण सेब के फल मे होते है उतने ही औषधीय गुण एप्पल बेर में मौजूद होते है. देशी बेरों की तुलना मे एप्पल बेर का उत्पादन दो-तीन गुना ज्यादा होता है इस कारण किसानों को भी आर्थिक मुनाफ़ा होता है. इस प्रकार के बेर की किस्म थाइलेंड की मानी जाती है जो भारत मे आज से 10 वर्ष पहले लायी गई थी. ग्राफ्टिंग विधि से तैयार यह पेड़ संकर प्रजाति के है जिनकी जड़ तो देशी और तना संकर होता है. देशी बेरों की तुलना मे एप्पल बेर का उत्पादन दो-तीन गुना ज्यादा होता है |सरकार किसानों को हाइब्रिड बेरो के पौधों पर 50% सब्सिडी भी प्रदान करती है
बेर की खेती से लाभ-
बेर की खेती से हम अपनी आय को बढा सकते है.इसकी एक विशेषता है कि इसकी फल, लकडी, पत्तियां ये सभी आमदनी का जरिया है.
बेर के एक पूर्णविकसित पौधे से 40-200 ग्राम फल की उपज प्राप्त होती है.
खाद एवं उर्वरक -
बेर की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्रा पौधे की उम्र के अनुसार दी जाती है. यदि पौधे की उम्र एक वर्ष है तो गोवर की मात्रा 10 किलोग्राम , यूरिया 90% ,एवं सुपर फॉस्फेट 300 किलोग्राम प्रति पौधा दिया जाता है. इसके बाद जब पौधे की उम्र 3-4 वर्ष हो जाती है तब गोवर 20-25 किलोग्राम, यूरिया 480, एंव सुपर फॉस्फेट 1750 प्रति पौधा दिया जाता है. और जब पौधे की उम्र 5 या इससे अधिक होती है तो गोवर 50 किलोग्राम, यूरिया 480 एवं सुपर फॉस्फेट 1750 प्रति पौधा दिया जाता है.
कीट व रोग नियंत्रण-
किसान भाईयों बेर के बाग मे कई कीटों का प्रकोप होता है जिसमें एक मुख्य कीट है छाल भक्षि कीट. ये कीट शाखाओं की छाल के अंदर घुसकर शाखाओं के जोड़ को कमजोर कर देता है.जिसके फलस्वरुप यह शाखा टूट जाती है एंव उस शाखा पर लगे फल को सीधा नुकसान होता है.जिस पर नियंत्रण करने के लिए खेत को साफ-सुथरा रखे,अधिक नुकसान होने पर डाईक्लोवार्क 2 मीली. लीटर को पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें.
ध्यान रखने योग्य बातें –
बेर के पौधे का तना कमजोर होता है इसलिए जब पौधे पर फल लगे तब उन्हें सहारा देकर रखना चाहिए . इसकी शाखाओ और डालियों को जमीन से छुने नही देना चाहिए.क्योकि शाखाओं के जमीन छुने से इसके फलों पर प्रभाव पड़ता है और वो रोगग्रस्त हो जाते है .
तो किसान भाइयों आप उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर बेर की खेती करके अधिक मुनाफा कमा सकते है .
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