उत्तर भारत के सिचिंत क्षेत्र में चावल- गेहूं फसल प्रणाली में ग्रीष्मकालीन मूंग का रकबा बढाऩे की अपार सभावनाएं है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पूर्ण सविुधा है वहां पर किसान गेहूं, सरसों, चना, मटर, आलू आदि फसल के बाद ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करके अल्प अवधि में अधिक आर्थिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। लेकिन ज्यादातर किसान गेहूं की कटाई के उपरांत आगामी ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई के लिए परंपरागत तरीकों से खेत को तैयार कर फसल बोने मे 15 से 20 दिन का समय लग जाता है जिसके फलस्वरूप फसल की कटाई वर्षा आने से पहले नहीं होती है एवं इस बहुमूल्य समय की बचत करने के लिए जीरो ड्रिल या हैप्पी सीडर का प्रयोग कर खेत में बगैर जुताई किए ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई के समय पर आसानी से की जा सकती है।
ग्रीष्मकालीन मूंग को निम्न विधियों से लगाया जा सकता है
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पूर्व अंकुरित मूंग के बीजों को गेहूं में आखिरी पानी देने के समय छिड़काव करके।
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मूंग के बीजों को गेहूं में आखिरी पानी देने के बाद में रिलेप्लांटर से मूंग की बुवाई करके।
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गेहूं में कटाई के उपरांत हैप्पी सीडर या जीरो ड्रिल मशीन से बुवाई करके उप-सतही बूंद बूंद पद्धति से सिंचाई करके।
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गेहूं की कटाई के उपरांत खेत की जुताई करके।
जीरो टिलेज तकनीकी से मूंग की बुवाई के लाभ
गेहूं की कटाई के उपरांत जीरो ड्रिल या हैप्पी सीडर मशीन द्वारा बुवाई करने से लगभग 10 दिनों की बचत की जा सकती है। धान गेहूं फसल प्रणाली में मूंग की रिले अतरवर्ती फसल बुवाई करने के लिए 10 से 15 दिन तक के मूल्यवान समय की बचत की जा सकती है तथा इसमें उचित समय पर बुवाई हो जाने से उत्पादकता में वद्धि एवं लागत में कमी आती है। मृदा में सरंक्षित नमी का बेहतर उपयोग होता है साथ ही खेत की तैयारी के लिए ट्रैक्टर में प्रयक्तु होने वाले डीजल की बचत होती है। धान- गेहूं फसल चक्र वाले क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करने से भूमि की उर्वरता शक्ति में सुधार किया जा सकता है।
जलवायु
उप उष्णकटिबंधीय जलवायु इस की वृद्धि एवं पैदावार के लिए उपयक्तु होती है। मूंग के अच्छे अंकुरण एवं समुचित बढ़वार हेतु 20 से 40 सेंटीग्रेड तापमान उपयक्तु होता है।
मृदा
मूंग की खेती हेतु दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयक्तु होती है साथ ही उत्तम जल निकास वाली मृदा का होना आवश्यक होता है।
फसल चक्र
धान-गेहूं, धान-सरसों, धान-आलू, मक्का-गेहूं, मक्का-सरसों आदि फसल चक्र में ग्रीष्मकालीन मूंग अपनाकर अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं।
उन्नत किस्में
पूसा विशाल, पूसा रत्ना, पूसा-0672, एम एच-421, एम एच-1142, एमएच 215, सत्या, एस एम एल-668, एस एम एल-1827, ई पी एम 214, ई पी एम 2057, विराट आदि उन्नत किस्में हैं।
बीजदर बीजोपचार एंव बुआई
छिंटा विधि 30- 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, रिले अतरवर्ती विधि 30-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, लाइन बिजाई विधि 20 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर। बीजों को पहले 2-5 ग्राम थायरम एवं 1-0 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 4-5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। फफूंदनाशी से बीजोपचार के पश्चात्बीज को राइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर से उपचारित करें। मूंग की 25-30 सेमी कतार से कतार तथा 5-7 सेमी पौधे से पौधे की दूरी पर बुआई करें व स्थायी बेडों पर बुवाई हेतु बेड प्लान्टर मशीन का प्रयोग करें एवं बीज की गहराई 3-5 सेमी होनी चाहिए।
पोषक तत्व प्रबंधन
सामान्य रूप से ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में 100 किलोग्राम डी ए पी प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
जल प्रबंधन
स्थायी बेड विधि या उप-सतही बूंद- बूंद सिंचाई विधि का प्रयोग करके के जल की बचत के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है।
खरपतवार प्रबंधन
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियत्रंण हेतु इमजेथापीयर 10 प्रतिशत एसएल की 1000 मिली, 100 सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवारों हेतु क्विजालों इथाइल 5 प्रतिशत ईसी, टरगा सपर की 1000 मिली, 50 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का बुवाई के 20 से 25 दिन तक प्रयोग खरपतवारों की सघनता के अनुसार करें।
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रोग एव कीट प्रबंधन
रोगों की रोकथाम के लिए मुख्यत: रोगरोधी किस्मों का चयन करना, उचित बीजोपचार करना व समय पर फफूंदनाशकों द्वारा नियत्रंण करना चाहिए। पीला मोजेक या पीली चितेरी रोग की रोकथाम के लिए रोग रोधी प्रजातियां लगाएं। खेत में रोगी पौधे दिखते ही उखाड़कर नष्ट कर दें और सफेद मक्खी की रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड की 150 मिली या डाइमिथिएट की 400 मिली प्रति हेक्टेयर मात्रा 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें और 12 15 दिन में छिड़काव द्वारा करना चाहिए। फली भेदक कीट व पत्ती मोड़क के नियत्रंण हेतु क्लोरन्ट्रानिलिट्रोल कोराजन की 150 मिली या स्पाइनोसैड की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार छिड़काव करें।
कटाई एव गहाई
जब मूंग की 50 प्रतिशत फलियां पक कर तैयार हो जाएं, तो फसल की पहली तोड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद दूसरी बार फलियों के पकने पर फसल की कटाई करें।
पैदावार उपज
मूंग की फसल से 5- 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।
लेखक-
1विशाल अहलावत 2 ज्योति शर्मा 3आर०एस० दादरवाल व 4दीपिका ढांडा
1 2 मृदा विज्ञान विभाग 3शस्य विज्ञान विभाग 4पर्यावरण विज्ञान विभाग
चौ० चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय हिसार हरियाणा
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