देश मे अधिकत्तर फसल का उत्पादन मौसम पर आधारित है| फसल का उत्पादन वर्षा पर निर्भर रहता है, कभी कम बारिश कभी ज्यादा बारिश दोनों स्थितियों पर उपज में भारी गिरावट होती है| फिर यदि फसल पक जाये तो ओला वृष्टि या वर्षा से भी फसल को बचना पड़ता है| यानि विपरीत मौसम परिस्थितियों में आशान्वित उपज प्राप्त नहीं हो पाती है| इससे किसान की आय पर सीधा असर पड़ता है जो की आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी किसान को प्रभावित करता है। इस हेतु यह आवश्यक हो गया है की कृषि में फसल के साथ साथ अन्य घटको को भी समेकित किया जाए जिससे किसान को सतत आय मिलती रहे साथ ही आय के विभिन्न घटको को भी खेती में शामिल किया जाये|
अतः एकीकृत कृषि प्रणाली का मतलब कृषि की उस प्रणाली से है जिसमे कृषि के विभिन्न आयामों जैसे फसल उत्पादन, पशुपालन, फल तथा सब्जी उत्पादन, मधुमकखी पालन, वानिकी, बतख पालन, मुर्गी पालन इत्यादि को इस प्रकार सम्मलित किया जाता हैं, वे एक दूसरे के पूरक बन जाये| ऐसा करने से संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभ की स्थिति बढ़ जाती है, इसे ही एकीकृत कृषि प्रणाली या मिश्रित खेती कहते है।
मिश्रित खेती एकीकृत कृषि प्रणाली के घटक (Components of integrated farming system)
मिट्टी प्रबंधन: मिट्टी प्रबंधन में जमीन की जरूरत से ज्यादा जुताई न करना और मिट्टी को फसली अपशिष्ट या जैव पलवार से ढँककर रखना या जैविक मल्चिंग करना, जैविक और जैव उर्वरकों का उपयोग करना, फसलों को अदला-बदली करके बोना और उनमें विविधता बनाये रखना आदि शामिल है|
जल उपयोगिता: जल संरक्षण के रूप में टांका, जल होज, नाड़ी, तालाब इत्यादि का निर्माण किया जाता है तथा इसी जल को फसलों के उपयोग में लाया जा सकता है।
तापमान प्रबन्धन: जमीन को आच्छादित यानी ढँककर रखना, पेड़-पौधे और बाग लगाना और खेतों की मेढ़ों पर झाड़ियाँ उगाना आदि तापमान प्रबन्धन में आते है|
कृषि आदान: कृषि आदान में आत्मनिर्भरता लाने के लिए इस घटक का चुनाव किया गया है| इसके लिये बीजों का अधिक से-अधिक उत्पादन करना, अपने खेतों के लिये खाद तैयार करना, वर्मी कम्पोस्ट, वर्मीवॉश, जीवमृत, जीवाघन आदि तैयार करना|
जैव विविधता अपनाना: इसके तहत विभिन्न प्रकार के जैव-रूपों के लिये पर्यावास का विकास, स्वीकृत रसायनों का कम-से-कम उपयोग और पर्याप्त विविधता का निर्माण सम्मलित है|
पशुपालन: पशु पालन इसका महत्त्वपूर्ण घटक हैं| इससे प्राप्त गोबर व अवसीस्ट पदार्थ से खाद तैयार करना तथा यह खाद फसलों व पेड़ों में देना, केंचुआ खाद में गोबर का प्रयोग करना आदि ऐसे आयाम है जिसके द्वारा एक घटक दूसरे घटक के पूरक हो सकता है| इसके द्वारा मानव के लिए दूध, छाछ, घी आदि तो प्राप्त होते ही है इसके अलावा पौधों और उनके न सिर्फ कई तरह के उत्पाद मिलते हैं बल्कि वे जमीन को उपजाऊ बनाने के लिये पर्याप्त मात्रा में गोबर और मूत्र भी उपलब्ध कराते हैं।
नवीकरणीय स्रोत ऊर्जा: सौर ऊर्जा, बायोगैस और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल यंत्रों और उपकरणों का उपयोग किया जाता है| यह ऊर्जा रसोई में खाना पकाने के काम आती है|
फसल अवशेषों का इस्तेमाल: खेती से प्राप्त होने वाले अपशिष्ट पदार्थों को खाद या मल्चिंग में उपयोग किया जा सकता है|
बुनियादी जरूरतों के उपयोग के लिए: परिवार की भोजन, चारे, आहार, रेशे, ईंधन और उर्वरक जैसी बुनियादी जरूरतों को खेत-खलिहानों से ही टिकाऊ आधार पर अधिकतम सीमा तक पूरा करने के लिये विभिन्न घटकों में समन्वय और सृजन किया जा सकता है |
मिश्रित खेती या एकीकृत कृषि प्रणाली के सिद्धांत (Principles of mixed farming or integrated farming system)
यह प्रणाली इस सिद्धांत पर टिकी है कि इसमें सम्मेलित घटक के बीच में परस्पर प्रतिस्पर्धा अधिक न हो और ये घटक परस्पर पूरक हो| अर्थात एक घटक दूसरे घटक की साहायता कर सके| इसका एक सिद्धांत यह भी है कि किसानों की आमदनी, पारिवारिक पोषण के स्तर और पारिस्थितिकीय प्रणाली से मिलने वाले लाभ सतत प्राप्त हो और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल हो।
एकीकृत कृषि प्रणाली के लाभ (Benefits of integrated farming system)
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एकीकृत कृषि प्रणाली में फसल और इससे सम्बन्धित घटको से उपज और आर्थिक इकाई को बढ़ावा दिया जा सकता है|
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एकीकृत कृषि प्रणाली खेतों के स्तर पर अपशिष्ट पदार्थों को परिष्कृत कर उसे दूसरे घटक को बिना किसी लागत या बहुत कम लागत पर उपलब्ध कराने का समग्र अवसर प्रदान करती है। इस तरह एक उद्यम से दूसरे उद्यम के स्तर पर उत्पादन लागत में कमी लाने में मददगार होती है यह प्रणाली| इस प्रकार किसान की आय में लाभ होता है|
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खेती के साथ-साथ अन्य गतिविधियों को अपनाने से मजदूरी की माँग उत्पन्न होती है जिससे पूरे साल परिवार के सदस्यों को काम मिलता है और उन्हें खाली नहीं बैठे रहना पड़ता जैसे पुष्प उत्पादन, मधुमक्खी पालन, केंचुआ खाद तैयार करना, मुर्गी पालन, बतख पालन र प्रसंस्करण से भी परिवार को अतिरिक्त आमदनी और रोजगार मिलता है।
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बाजार से प्राप्त मिलावटी खाद्य पदार्थ से भी कुछ हद तक निर्भरता घट जाती है तथा भोजन और पौष्टिक आहार की घरेलू आवश्यकता पूरी की जा सकती है|
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पशुओं और फसलों से प्राप्त अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण कृषि में किया जाता है| जिससे मिट्टी को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के साथ-साथ बहुत से सूक्ष्म पोषक तत्वो का भी खेतों में ही पुनर्चक्रण के माध्यम से उपयोग हो जाता है| इसके साथ ही मिट्टी की उत्पादन क्षमता बढ़ती है|
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वर्षा जल को संग्रहण कर उनका उपयोग पशुओं और फसलों में किया जा सकता है| इन्ही जल संरचना में मछली पालन या बतख पालन भी किया जा सकता है
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अपशिष्ट पदार्थों के फिर से इस्तेमाल करने से उर्वरकों का उपयोग कम किया जा सकता है जिससे मिट्टी की संरचना में सुधार के साथ साथ पर्यावरण में सकारात्मक असर पड़ता है|
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इस प्रणाली का महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यदि मौसम से फसल बर्बाद भी हो जाए फिर भी पशु पालन, मुर्गी पालन, या अन्य पालन से भी आमदनी आ जाती है| खासतौर पर बाजार में मंदी और प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न खतरों से बचाव में भी मदद मिलती है।
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