धान की फसल को अधिक पानी और सिंचाई की आवश्यकता होती है. यही कारण है कि कई जगह बरसात कम होने की वजह से धान की फसल के लिए संकट उत्पन्न हो जाता है और ऐसे में सरकार इसकी खेती को हतोत्साहित करने लगती है और दूसरी फसलों को प्रोत्साहन देती है, लेकिन कभी बरसात ज्यादा हो जाए और धान के खेतों में पानी भर जाए,
तो फसल खराब होने की दृष्टि से उस पानी को निकालने की जरूरत महसूस होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पानी को निकाले बिना भी धान की फसल को भी हम सलामत रख सकते हैं और एक दूसरा व्यवसाय अपना कर अपना मुनाफा भी डबल कर सकते हैं.
धान की खेती के साथ करें मछलीपालन
जी हां हम बात कर रहे हैं धान की खेती के साथ मछली पालन की. यह एक तरह का मिश्रित व्यवसाय है, जो एक पंथ दो काज की कहावत को चरितार्थ करता है. यानी किसान अब एक ही खेत में धान की बुवाई भी करेंगे और साथ में मछली पालन भी. अब खेत से पानी निकालने की जरूरत नहीं रहेगी और किसानों का मुनाफा भी दोगुना हो जाएगा.
बेहद कारगर है फिशराइसफार्मिंग
धान की खेती के साथ मछली पालन करने के इस उपक्रम को फिशराइसफॉर्मिंग कहते हैं. यह एकीकृत कृषि का ही एक हिस्सा है. इस तकनीक द्वारा धान की खेती और मछली पालन ही एक साथ नहीं होते, बल्कि फसल भी सुरक्षित रहती है क्योंकि खरपतवार और कीड़े मछलियों का भोजन बन जाते हैं, जिससे फसल को भी फायदा होता है.
ये भी पढ़ें: देश में मल्टीलेयर फार्मिंग के अग्रदूत हैं आकाश चौरसिया, दे रहे हैं किसानों को प्रशिक्षण
किस तरह करें फिशराइसफार्मिंग
इस तरह की खेती के लिए किसानों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह खेती के लिए निचले स्तर की जमीन का चुनाव करें. ऐसे खेतों में पानी आराम से इकट्ठा हो जाता है और ठहरता भी है. इससे धान का उत्पादन तो चालू रहेगा ही मछलियों को पालने में भी आसानी रहेगी.
फसलों को मिलेगा फायदा
मछलियों को पालने से धान के पौधों में लगने वाली कई बीमारियों का भी खात्मा हो जाएगा और धान की फसलों को कीड़े का रोग भी नहीं लगेगा. यानी आम के आम गुठलियों के दाम.. तो किसान भाइयों देर किस बात की है आप भी एकीकृत खेती की इस तकनीक को अपनाकर अपने मुनाफे को डबल कर सकते हैं.
Share your comments