हिमाचल प्रदेश में कंटीली झाड़ी वाला गुलाब समृद्धि कि बेहतरीन खुशबू को बिखेरने का काम कर रहा है. यह मूलतः बुल्गारिया का ही है. इस फूल का वैज्ञानिक नाम रोसा डेमिलिस्या है. इस फूल की खासियत है कि इसके फूल से गुलाब जल और तेल बनाया जाता है. करीब एक से डेढ़ हेक्टेयर क्षेत्र में इसको लगाने से किसानों को काफी लाभ मिलता है. 1 लीटर गुलाब तेल बाजार में सात से आठ लाख रूपये में बिक जाता है . गुलाब जल तीन सौ से चार सौ रूपये प्रति लीटर की दर से बाजार में मिलता है. जब गुलाब का फूल लग जाता है तो इसका लगाने के तीसरे साल फूल देना शुरू कर देता है जो कि 15 से 20 साल तक चलता है. सारे किसान इसको अपने खेतों में लगाने का कार्य कर रहे है.
गुलाब पर हो रहा शोध
यहां पर वर्ष 1990 से हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर ने गुलाब पर काम शुरू किया है. वर्ष 2017 में अरोमा मिशन के कारण देश की पांच सीएसआइआर लैबों में सुगंधित फसलों के लिए कार्य तेजी से शुरू हो गया है. यहां कट फ्लॉवर के रूप में गुलाब की प्रजातियों के लिए प्रदेश की हवा ठीक नहीं है. अब यहां पर कंटीली झाड़ियों वाले गुलाब पर तेजी से शोध हुआ है और इसके नतीजे काफी उत्साहवर्धक है. प्रदेश में कई जिले जैसे कि शिमला, कांगड़ा के पालमपुर, सिद्धबाड़ी, धर्मशाला और थुनाग में इसकी खेतीबाड़ी की जाती रही है.
सुगंधित फसलों पर काम कर रहीं सीएसआर लैब
देश की पांच सीएसआइआर लैब सुगंधित फसलों पर तेजी से काम कर रही है.यहां के किसानों को प्रशिक्षण के साथ-साथ बाजार भी उपलब्ध कराया जाता है. गुलाब जल और तेल निकालने के लिए प्रसंस्करण यूनिट लगाने में भी संस्थान की मदद करने का कार्य कर रहा है. यहां पर दो से चार क्विंटल वाली प्रसंस्करण यूनिट भी सात से आठ लाख रूपये में लगाई जाती है. एक हेक्टेयर भूमि में लगाने पर 25 से 30 क्विंटल उत्पादन होता है और इससे एक लीटर गुलाब का तेल निकाला जाता है. यह अप्रैल और मई में खिलता है इस फूल को सुबह के समय ही तोड़ा जाता है.
कंटीले गुलाब का इस्तेमाल
गुलाब जल को खाद्य प्रसंस्करण, सौंदर्य प्रसाधन, और स्वास्थयवर्धक के तौर पर आंखों में ताजगी लाने के लिए प्रयोग किया जाता है. शरीर की मसाज के लिए भी इसका काफी प्रयोग किया जाता है. बता दें कि धार्मिक आयोजन में इसका काफी ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.
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