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संतरे के लिए मशहूर हुआ पंथ मध्य प्रदेश का पंथ पिपलौदा

कंजरों के नाम से पहचाने जाने वाला मध्य प्रदेश का ग्राम पंथ पिपलौदा अब पनी संतरे की खेती के लिए मशहूर हो गया है. यहां धार के जिला तहसील से लगभग 30 किमी दूर गांवों के लोगों ने संतरे की खेती से आर्थिक रूप से तो खुद को मजबूत बनाया ही है साथ ही ग्रामीणों से प्रेरित होकर अपराधों के लिए मशहूर कंजर समाज के 50 परिवार भी खुद संतरे की खेती को करके अब अपराध से हटकर समाज की मुख्यधारा से जुड़ते जा रहे है. आज से ठीक 15 साल पहले ग्रामीणों के द्वारा शुरू की गई खेती का ही नतीजा है

किशन

कंजरों के नाम से पहचाने जाने वाला मध्य प्रदेश का ग्राम पंथ पिपलौदा अब पनी संतरे की खेती के लिए मशहूर हो गया है. यहां धार के जिला तहसील से लगभग 30 किमी दूर गांवों के लोगों ने संतरे की खेती से आर्थिक रूप से तो खुद को मजबूत बनाया ही है साथ ही ग्रामीणों से प्रेरित होकर अपराधों के लिए मशहूर कंजर समाज के 50 परिवार भी खुद संतरे की खेती को करके अब अपराध से हटकर समाज की मुख्यधारा से जुड़ते जा रहे है. आज से ठीक 15 साल पहले ग्रामीणों के द्वारा शुरू की गई खेती का ही नतीजा है कि यहां का संतरा अब यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात सहित देश के अलग-अलग प्रातों में लोगों की पहली पसंद बन चुका है. यहां के ग्रामीणों का कहना है कि पारंपरिक फसलों से जहां पर खर्चे को काटने के बाद कुल 10 से 15 हजार रूपये हाथ में आते थे बाद में इसी संतरे की खेती को काटने के बाद लाखों की कमाई होने लगी है.

पहले नागपुर से आते थे संतरे

ग्रामीणों का कहना है कि यहां पर गांव में पानी की कमी है इसलिए पांरपरिक रूप से खेती करना संभव नहीं हो पाता है. यहां पर सोयाबीन, लहसुन, गेहूं का कम उत्पादन देखकर किसानों ने नागपुर से संतरे के पौधे लाना शुरू कर दिया था. इसमें से कुच पौधे वह अपने खेत में लगाते है तो कुछ पौधे अन्य ग्रामीणों को निशुल्क ही दे देते है. बाद में संतरे की खेती ग्रामीणों को समझ में आने लगी और लगभग 25 प्रतिशत गांव के निवासी संतरे की खेती करने का कार्य कर रहे है. संतरे का सौदा गांवों से ही होता है. दूसरे प्रांतों में व्यापारी संतरे की खेती का सौदा कर जाते है.

कम पानी लगता है

ग्रामीणों का कहना है कि संतरे की खेती में अन्य पांरपरिक फसलों के मुकाबले कम पानी लगता है. जबकि सोयाबीन, गेहूं, प्याज में कुल 7-8 बार पानी लग जाता है. संतरे की फसल में सर्दी और गर्मी के मौसम में महज 5-6 बार पानी लगता है जो कि सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है. संतरे की खेती के लिए 3-4 स्प्रे प्रति पौधा 1 किलो खाद, प्रति पौधे 5 रूपये गुड़ाई और पौधे को टिकाने के लिए बांस की जरूरत होती है. इतनी सारी मेहनत पर प्रति क्विंटल ढाई से तीन टन संतरे का उत्पादन होता है. कई बार तो सरकार की तरफ से भी कंजरो को न संतरों के उत्पादन करने पर मदद मिल जाती है.

English Summary: Famous orange cultivation in this village of Madhya Pradesh Published on: 17 May 2019, 05:37 PM IST

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