लेमनग्रास भारत के विभिन्न हिस्सों में उपजाई जाने वाली एक प्रमुख घास है, जिसका उपयोग चाय के साथ-साथ औषधीय कार्यों में भी किया जाता है. भारत में कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा आदि हिस्सों में इसकी खेती बड़े स्तर पर की जाती है.
लेमनग्रास में लगने वाले रोग
- लॉन्ग स्मट
- रेड लीफ स्पॉट
- लीफ ब्लाइट
- जंग
- लिटिल लीफ या ग्रासी शूट
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लॉन्ग स्मट
यह रोग लगने से पौधे के सभी फूल पतले, कमजोर और लंबे हो जाते हैं और इनकी पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है. पौधे के पूरे भाग पर पपड़ीदार परत लग जाती हैै जो इसके ऊपरी हिस्से से शुरू होकर पौधे के पूरे भाग में पहुंच जाती है.उपचार- पौधों को लगाने से पहले उनमें डायथेन जेड का छिड़काव करें और बीजों की बुवाई से पहले उनका सेरसान और ईमीसान से अच्छे से उपचार जरूर करें.
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रेड लीफ स्पॉट
पत्तियों की निचली सतह के आवरण और मध्यशिरा पर गाढ़ें धब्बे बन जाते हैं, जिनके केंद्र में गाढ़े रंग के छल्ले दिखाई देते हैं. धीरे-धीरे ये धब्बे आपस में मिलकर बड़े बन जाते हैं और प्रभावित पत्तियाँ पूरी तरह से सूख जाती हैं.
उपचार- रोग से बचने के लिए बाविस्टिन का छिड़काव रोग के होने के तुरंत बाद 20 दिन के अंतराल पर करें. इसके साथ-साथ डाइथेन-एम का भी छिड़काव 10 से 12 दिन के अंतराल पर जरूर करें.
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लीफ ब्लाइट
यह रोग पत्तियों के किनारों पर छोटे, गोल, लाल भूरे रंग के धब्बों के रूप में होता है और यह धीरे-धीरे आपस में मिलकर लाल एवं भूरे रंग के नेक्रोटिक घाव का रूप ले लेता है. इससे पत्तियां समय से पहले सूख जाती हैं.
उपचार- डाइथेन एवं कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के लगातार छिड़काव से लीफ ब्लाइट जैसे रोगों का उपचार किया जा सकता है.
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जंग
इस रोग में पत्त्तियों में भूरे रंग के यूरेडीनिया की परत बन जाती है. जो इसकी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा डालती है.
उपचार- जंग के छुटकारे के लिए डाइथेन, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड एवं प्लांटवैक्स का छिड़काव 10 से 12 दिनों के अंतराल पर करते रहना चाहिए.
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लिटिल लीफ या ग्रासी शूट
इस रोग में पौधे के पुष्पक्रम वाली जगह पर छोटे-छोटे पत्ते उग आते हैं. यह पौधों को बढ़ने में अवरोध उत्पन्न करता है.
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उपचार -
ग्रासी शूट से बचाव के लिए 10-12 दिनों के अंतराल पर पत्तियों पर डाइथेन Z-78 का छिड़काव करें.
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