
Paddy Varieties For Low Water: जैसे-जैसे मौसम में बदलाव हो रहा है, खेती के तौर-तरीकों को भी बदलने की जरूरत है. आज के किसान को चाहिए कि वह नई तकनीक और जलवायु-स्मार्ट किस्मों को अपनाकर अपनी खेती को न सिर्फ सुरक्षित करें बल्कि उसे लाभदायक भी बनाएं. मौसम की मार, पानी की कमी और मिट्टी की गुणवत्ता में बदलाव जैसे कई कारण किसानों की चिंता बढ़ा रहे हैं. खासकर धान की खेती, जो एशिया के करोड़ों लोगों का मुख्य आहार है, अब मौसम की अनियमितताओं का सबसे बड़ा शिकार बन चुकी है. ऐसे समय में वैज्ञानिकों ने किसानों की मदद के लिए कुछ ऐसी धान की किस्में तैयार की हैं जो कम पानी में भी अच्छी उपज देती हैं और कठिन परिस्थितियों को भी झेल सकती हैं.
अगर आप भी धान की खेती करते हैं और कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आइए कृषि जागरण के इस आर्टिकल में जानते हैं ऐसी 10 आधुनिक और जलवायु-स्मार्ट धान की किस्मों के बारे में, जो आपकी खेती को लाभकारी बना सकती हैं.
1. पूसा DST चावल 1 (Pusa DST Rice 1)
इस किस्म को IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. यह सूखा और लवणीय मिट्टी दोनों में बेहतर परिणाम देती है. यह किस्म कठिन परिस्थितियों में भी 20% ज्यादा उपज दे सकती है. इसकी पैदावार अच्छी होने के साथ-साथ यह पर्यावरण के अनुकूल भी है.
2. पूसा बासमती 1509 (Pusa Basmati 1509)
बासमती की यह किस्म केवल 15 दिनों में तैयार हो जाती है. यह पारंपरिक किस्मों की तुलना में 33% तक पानी की बचत करती है. गेहूं की समय पर बुवाई के लिए खेत जल्दी खाली हो जाते हैं, जिससे अगली फसल की तैयारी भी आसान होती है.
3. पूसा आरएच 60 (Pusa RH 60)
यह हाइब्रिड सुगंधित किस्म है जिसमें लंबा दाना होता है. इसकी बाजार में मांग अधिक है, जिससे किसानों को इसका बेहतर मूल्य मिल सकता है. खासतौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.
4. पूसा नरेंद्र KN1 और CRD KN2
ये दोनों किस्में पारंपरिक कालानमक चावल का उन्नत रूप हैं. ये किस्में रोग और कीट प्रतिरोधी हैं, जिससे किसान को कीटनाशकों पर खर्च कम करना पड़ता है और खेती की लागत घटती है.
5. पूसा 2090 (Pusa -2090)
यह किस्म 120 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इससे प्रति एकड़ 34 से 35 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है. यह किस्म पराली जलाने की जरूरत को कम करती है, जिससे यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है.
6. डीआरआर धान 100 (कमला) (DRR Paddy 100 - Kamala)
इसे भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म मीथेन गैस उत्सर्जन कम करती है और पारंपरिक किस्मों से 19% ज्यादा उत्पादन देती है. पर्यावरण के प्रति जागरूक किसानों के लिए यह एक बेहतरीन विकल्प है.
7. स्वर्णा-सब1 (Swarna-Sub1)
यह किस्म बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए आदर्श है, खासकर पूर्वी भारत के लिए. इसका पौधा 14 दिनों तक पानी में डूबा रह सकता है और फिर भी उपज देता है. इसके दाने छोटे और मोटे होते हैं, जो घरेलू उपयोग के लिए अच्छे हैं.
8. सीआर धान 108 (CR Paddy 108)
यह किस्म 112 दिनों में तैयार हो जाती है और वर्षा आधारित खेती के लिए उपयुक्त है. विशेष रूप से ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों के लिए फायदेमंद है, जहां बारिश का अनुमान लगाना मुश्किल होता है.
9. सामुलाई 1444 (Samulai-1444)
यह एक बेहतर क्वालिटी वाली किस्म है जो 140-145 दिनों में पकती है. इसकी बाजार और निर्यात में अच्छी मांग है, जिससे किसानों को इसका अच्छा दाम मिल सकता है. यह किस्म लंबे समय तक उगाई जा सकती है.
10. एराइज हाइब्रिड (Arise Hybrid)
यह किस्म खासतौर पर दक्षिण एशिया के किसानों के लिए उपयुक्त है. यह किस्म अधिक उपज देने के लिए जानी जाती है और बड़े स्तर पर व्यावसायिक खेती के लिए आदर्श है.
क्यों जरूरी हैं ये नई किस्में?
आज के समय में जब जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी और मिट्टी की गुणवत्ता जैसे अनेक संकट खेती को प्रभावित कर रहे हैं, ऐसे में धान की नई किस्मों को अपनाना बेहद जरूरी हो गया है. ये किस्में कम पानी में भी अच्छी पैदावार देने में सक्षम हैं, साथ ही इनमें रोग और कीटों से लड़ने की बेहतर क्षमता होती है, जिससे कीटनाशकों पर खर्च कम होता है. इसके अलावा ये किस्में बदलते मौसम की मार को भी सहने में सक्षम होती हैं, जिससे फसल की असफलता की आशंका कम होती है. इनसे न केवल खेती की लागत घटती है बल्कि किसान को बेहतर बाजार मूल्य और निर्यात का अवसर भी मिलता है. सबसे खास बात यह है कि ये किस्में पर्यावरण के अनुकूल होती हैं, जिससे खेती टिकाऊ और भविष्य के लिए सुरक्षित बनती है.
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